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Tuesday, September 30, 2008

"निम्मो बुआ" (part 3)

निम्मो बुआ और उनके परिवार के बारे में सीमा जितना सोचती थी उतना कम था....रमेश उनका बड़ा बेटा सीमा के दोस्त जैसा था...बहुत सीदा साधा..और बहुत intelligent भी...ambitious तो था ही....मगर उसके पापा..यानि सीमा के फुफ्फाजी हमेशा उसे बिना बात के डांटते फटकारते रहते थे...रमेश बहुत ही अच्छा लड़का था...सीमा के घर में सब उसे पसंद करते थे....रमेश भी अपने मामाओं और मौसियों के बहुत करीब था..उसको जो प्यार उसके पापा से नहीं मिलता था वो प्यार वह यहाँ अपने ननिहाल में दूढ़ता था...उसकी दादी भी उसे उतना ही प्यार करती थी..मगर वो गों कम ही जाता था..सीमा को यह नहीं पता था..की आखिर क्या कारण था..जो रमेश अपने दादा दादी को पसंद नहीं करता था...

शायद उसका उसके पापा के उपर जो गुस्सा था वो ही उसे उसके दादा और दादी से दूर रखता था...खैर..सीमा और रमेश की पढ़ाई साथ साथ होती थी...कभी सीमा उनके घर चली जाती थी कभी रमेश आ जाता था सीमा के घर...दोनों मिलजुल के पढ़ते थे...सीमा भी पढ़ाई में तेज थी...मगर जहाँ बढों से बढों की तरह बात करने की बात आती तो रमेश हमेशा से ही बढों जैसी समझदारी की बातें किया करता था...सीमा को तो हमेशा बच्चो जैसा प्यार ही मिलता..क्योंकि वो बहुत चचल थी...उसका दिल हमेशा बच्चो जैसा था...सीमा समझदार थी पर वो किसी से समझदारी वाली बातिएँ नहीं किया करती थी.....वो सब समझती थी...वो अपने पाप की समझदारी वाली बातें सुन सुन कर ही तो बड़ी हुई थी...अक्सर सीमा के पापा उस से समझदारी वाली बातें किया करते थे...पर वो तो बच्चो की तरह ही अपने पापा से बात करती थी...कभी कुछ भी दिल में आया और पापा या माँ से मांग लेना..अब वो उसे मिले या न मिले...सीमा के पापा हमेशा उसकी हर ख्वाइश देर सवेर पूरी करते थे....सीमा अपने पापा की आर्थिक स्तिथि को देख कर ज्यादा जिद्द नहीं करती थी.....पर हाँ जो दिल में होता था..की यह चाहिए वो चाहिए बोल देती थी...उसे अपने पापा पे जो पुरा विश्वास था की जहाँ तक उसके पापा से हो सकेगा वो ज़रूर करेंगे...कभी न कभी वो चीज़ ज़रूर उसे मिलेगी...सीमा ने जब schooling ख़त्म की तब उसने पापा से कंप्यूटर माँगा...और उसके पापा ने 6 महीनो बाद ही उसको कंप्यूटर ला कर दे दिया...सीमा के भाई उस से इस बात पर चिढ गए थे..की उसकी हर मांग पूरी होती है..और वो कबसे bike के लिए पापा से बोल रहे है..पर पापा हर बार टाल देते थे..खैर रमेश भी उन् दिनों कॉलेज में ही पढ़ाई कर रहा था..वो कॉलेज के बाद tutions देने लगा...

सीमा को आज भी याद है जब उसकी निम्मो बुआ जी ने सीमा के घर फ़ोन किया था...सीमा ने ही फ़ोन उठाया था..बुआ ने बताया की रमेश बिना बताये कहीं चला गया है...शायद किसी दोस्त के घर...उसका tutions देना उसके पापा को पसंद नहीं था...उसके पापा को लगता था वो अपने दोस्तों के साथ कॉलेज के बाद मज़े करता है...और इस बात पर कई बार उसके पापा से उसकी कहा सुनी हो जाती थी...बुआ जी बहुत परेशान थी...किसी को नहीं पता था की रमेश कहाँ गया हुआ है...

फिर एक दिन सीमा के घर उसके सबसे छोटे चाचा का फ़ोन आया की उनको रमेश का फ़ोन आया था...वो अपने किसी दोस्त के साथ रहता है..उसने अपने पापा को बताने को मना किया था..बस उसकी माँ यानि निम्मो बुआ परेशान न हो इसलिए यह बताने के लिए फ़ोन किया है की वो ठीक ठाक है...फ़िक्र न करे....तब सीमा के पापा ने सीमा के चाचा को बोला की अगली बार अगर उसका फ़ोन आए तो उसे यहाँ सीमा के पापा के पास फ़ोन करने को कहना....

सीमा के पापा को पता था की ऐसी उमर में बच्चो से दोस्तों की तरह ही बात करनी चाहिए...एक दो बार रमेश ने अपनी माँ से फ़ोन पर ही बात की...मगर यह नहीं बताया की वो कहाँ है....फिर एक बार रमेश ने सीमा के घर फ़ोन किया...सीमा के पापा ने उस से बात की...उसे कुछ पैसो की ज़रूरत थी...सीमा के पापा न कहा "रमेश बेटे तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था..अगर कोई पेरशानी थी अपने घर पे तो तू यहाँ आ जाता..मगर बिना बताये किसी को कहीं भी रहना अच्छा नहीं"...रमेश ने बोला "मैं अब अपने पापा के साथ नहीं रह सकता"..तब सीमा के पापा ने कहा "तू अपनी माँ और छोटे भाइयो का सोच उन् पर क्या बीत रही है...तेरी माँ को तेरी कितनी चिंता है"...फिर सीमा के पापा ने उसे घर बुलाया और उधर निम्मो बुआ को भी बुला लिया..निम्मो बुआ फुफ्फाजी को बिना बताये आ गई..दोनों माँ बेटे मिले...माँ ने बेटे को कुछ पैसे दिए और कहा "तू जहाँ रहना चाहता है रह..मगर मुझसे दूर मत जा..मुझे तो तस्सली रहे की तू ठीक है"....इस पर सीमा के पापा ने कहा "तू यहाँ भी रह सकता है तेरे पापा को कोई कुछ नहीं बताएगा"...

रमेश बड़ी देर बाद मान गया..और दो तीन दिनों बाद वो सामान ले कर सीमा के यहाँ आ गया...सीमा के पापा, सीमा के चाचा, सीमा की दूसरी बुआ और फुफ्फाजी, सीमा की निम्मो बुआ..सबको पता था की रमेश सीमा के घर रहता है...मगर रमेश के पापा को नहीं पता चलने दिया...

रमेश सीमा के यहाँ 1+ साल तक रहा...मगर कोई कितना रमेश के पापा से छिपा सकता था..रमेश के पापा को पता चल गया था की रमेश सीमा के यहाँ रहता है....बस फिर क्या था...जब सुबह सुबह सीमा, सीमा के भाई और रमेश सब तैयार हो रहे थे...की फ़ोन की घंटी बजी..हमेशा की तरह सीमा ने फ़ोन उठाया..फुफ्फाजी(रमेश के पापा) का फ़ोन था...पूछने लगे "रमेश है न वहां...ज़रा रमेश को फ़ोन दो"....सीमा ने कहा "नहीं फूफ्फा जी वो यहाँ नहीं है"...सीमा के फूफाजी ज़ोर से चिलाने लगे...सीमा डर गई और हेल्लो हेल्लो करते करते उसने फ़ोन रख दिया...रमेश भी डर गया...फ़ोन की घंटी फिर बजी...सीमा ने फिर उठाया...उसके हेल्लो बोलने से पहले ही फूफ्फा जी बोले "तुम मुझको बेवकूफ समझते हो...रमेश वहां है मुझे पता है...उसको फ़ोन दो..."..सीमा चुप चाप सुनती रही.."तुमको सुनाई नहीं देता सीमा रमेश को फ़ोन दो"....सीमा ने रमेश को इशारा किया...रमेश ने फ़ोन ले लिया और सुन ने लगा...सीमा ने फूफ्फा जी का ऐसा रूप पहले कभी नहीं देखा था....फिर जब रमेश के पापा शांत हुए, रमेश धीरे से बोला "पापा मैं रमेश बोल रहा हूँ बोलो...".....उसके पापा ने उसे खूब सुनाया..और कहा "अगर तू घर आना चाहता है तो अभी दो चार दिन में आजा...मैं तुझे कुछ नहीं कहूँगा...वरना मैं कुछ कर बैठुगा"..रमेश डर गया...उसने कहा "ठीक है"...

उसी दिन शाम को जब सीमा के पापा घर आए तो रमेश ने उनको बताया...सीमा को तो पूरे दिन उसकी माँ और उसके भाइयों की डांट पड़ ही चुकी थी..वो भी सिर्फ़ फ़ोन उठाने पर....सीमा को भी लग रहा था अच्छा होता वो फ़ोन उठातीही नहीं....पर वो भी क्या करे उसे ही हमेशा फ़ोन उठानापड़ता था...कोई और फ़ोन उठाताभी नहीं था...वो नहीं उठात्ति तो कोई भी नहीं उठाता.....सीमा को लगा उसके पापा भी उसे खूब सुनायेंगे...पर इस पर सीमा के पापा बोले नहीं फ़ोन न उठाने से सीमा के फुफ्फाजी और नाराज़हो जाते उनका गुस्सा और बढ़ जाता...फिर सीमा के पापा रमेश से बोले.."तू देख ले बेटा अगर तुझे यहीं रहना है तो कोई बात नहीं हम तेरे साथ हैं..तू उनको बोल दे की तू यहीं रहेगा...हम हमेशा हर फैसले में तेरे साथ है..जाना चाहता है तो चला जा..."...रमेश बोला "मामा जी..पर अगर उन्होंने कुछ कर दिया तो...पुलिस में रिपोर्ट कर दी तो....फिर आप पर बात आ जायेगी अभी मैं 18 का नहीं हुआ हूँ....पापा कुछ भी कर सकते है...आप पर भी इल्जाम लगा देने से नहीं चूकेंगे वो.."..सीमा के पापा ने कहा...."हाँ अब बात तो वैसे भी मुझ पर ही आएगी बेटा कोई नहीं तू हमको प्यारा है..तू जो कहेगा हम करेंगे...हमने उनसे इतनी बड़ी बात छुपाई है..मुझे पहले ही पता था...वैसे भी वो बड़े गरम दिमाग के है....बिना सोचे समझे कुछ भी कह देते है...कुछ भी कर देते है...अब हमारा तो रिश्ता ही ऐसा है...वो दामाद है..हम तो वैसे भी सुनते है..और सुन लेंगे...उनके बच्चे को बहलाने फुसलाने का इल्जाम भी सुन लेंगे"...रमेश ने कहा "नहीं मामा जी..आप ने तो इतना साथ दिया है...मैं ही परेशानी से दूर भाग रहा था...मुझे अब उनका सामना करना ही पड़ेगा.."...तभी फ़ोन बजा..निम्मो बुआ का फ़ोन था..रमेश ने बात की.."बेटा रमेश अब तू घर आजा..नहीं तो यह आदमी न मुझे और न तेरे भाइयो को चैन से जीने देगा..पूरा घर सर पे उठा रखा है..पता नहीं क्या अनाप शनाप बोले जा रहा है...तू घर आ जा..वो तुझे कुछ नहीं कहेंगे..बस घर आजा.."

फिर रमेश ने घर जाने का फ़ैसला किया...सीमा के पापा और सीमा की माँ भी उसके साथ गए..ताकि रमेश को ज्यादा न सुन न पड़े....सीमा के पापा को रमेश के पापा ने खूब सुनाया और गन्दी-गन्दी गालियाँ दी...जो की सीमा की माँ को अच्छी नहीं लगी....पर वहां बोलने का कोई फ़ायदा नहीं था क्योंकि गलती तो सीमा के माँ और पापा की थी...उन्होंने बहुत बड़ी बात जो रमेश के पापा से छिपाई थी...और सीमा की माँ पहले से ही जानती थी की रमेश को अपने घर यूँ छिपा कर रखना ठीक नहीं था..पर सीमा के पापा के फैसले के आगे वो कुछ नहीं बोली थी..पर अब उनको लग रहा था की बोलना चाहिए था..कम से कम इतना सुन न तो न पड़ता...

सीमा की माँ घर आ कर सीमा के पापा को बोली अब वहां कोई नहीं जाएगा...आप बड़े हो और वो आपको इतना कुछ सुनायेंगे...तब सीमा के पापा बोले.."अगर रमेश अकेला जाता तो उसको खूब सुनना पड़ता..हम थे इसलिए उनका सारा गुस्सा हम पर उतर गया..."...सीमा की माँ बोली.."हाँ हमने उनको बहन दी है..गालियाँ और बातें सुन ने के लिए ..और अब हम ही गालियाँ सुने...निम्मो भी चुप चाप खड़ी थी कुछ नहीं बोली...ऐसे ही रोज़ सुनाता है क्या वो....और निम्मो को तो जैसे सुनने की आदत पड़ गई हो.....अरे यह निम्मो भी न जाने क्यों उस जैसे इंसान के साथ है..क्यों नहीं अलग हो जाती..." सीमा के पापा बोले.."वो उसका फ़ैसला है उसी पे छोड़ दो...हमें तो बस साथ देना है..."......"पर मैं नहीं सुनूंगी उनकी गालियाँ...नहीं सुन न चाहती इसलिए अच्छा होगा हम उनसे दूर ही रहे...अब उनके यहाँ नहीं जाना हमें...क्या गालियाँ ही सुनते रहे पूरी ज़िन्दगी...वैसे भी रोज़ ही सुनाता होगा गालियाँ निम्मो को...और हमें..."...सीमा की माँ गुस्से में यह भी भूल गई थी की वो उनके दामाद थे...उनका रिश्ता बड़ा था।

फिर क्या सीमा की माँ को बहुत गुस्सा था मगर रिश्तेदारी की वजह से कुछ नहीं कर सकती थी..बस अपने बच्चो और अपने पति को ही वहां जाने से मना ही कर सकती थी...सीमा को भी कॉलेज के बाद सीधे घर आने को कहती थी...कही सीमा कॉलेज के बाद रमेश या निम्मो बुआ से मिलने वहां न चली जाए..डरती थी...कुछ हफ्तों बाद रमेश उनके घर आया...सीमा की माँ ने उस से कम ही बात की...

सीमा ने जब रमेश से पुछा की अब सब वहां ठीक है की नहीं...तो वो बोला मैं यहाँ अपने पापा की गालियों की माफ़ी मांगने आया हूँ..उनकी तरफ़ से.....माफ़ कर दो...मैं नहीं चाहता यह सब हो...शायद घर से चुप चाप भाग जाना मेरा फ़ैसला ठीक नहीं था...सीमा के पापा शाम को घर आ गए...तब रमेश ने उनसे भी माफ़ी मांगी...सीमा के पापा ने कहा.."नहीं बेटा..ऐसा कुछ नहीं है... अगर तू अकेला जाता तो वो तुझ पैर बरसते...हम थे साथ में इसलिए उनका गुस्सा हम पर उतर गया..मैं तो बड़ा हूँ..हम तो शुरू से ही सुनते आए है..और हमेशा सुनते ही रहेंगे...हमारा रिश्ता भी कुछ ऐसा है...तुम बस अब अपनी माँ और अपने भाइयो का ध्यान रखो.."

रमेश अब अक्सर चुप चुप कर सीमा के घर आने लगा...उसको यहाँ आ कर अच्छा लगता था..क्योंकि यहाँ वो जो चाहे कर सकता था...अपने घर तो वो बस बूत बन जाता था न किसी से बोलना न किसी से हसना....बस अब उसके पापा उस से सवाल जवाब नही करते थे..की तू कहाँ गया था..क्यों गया था....पर अब इस सबका असर उसके भाइयो पर हो रहा था..अब वो कहीं आ जा नही सकते थे..उसके पापा ने जो मना किया हुआ था...उनको लगता था कही उनके दुसरे दोनों बेटे भी कुछ ऐसा न करें...रमेश सभी रिश्तेदारों के यहाँ बिना बताये चला जाता था...बस रात होते ही घर चला जाता था...अपने दादा दादी के यहाँ....अपने चाचा-चाची के यहाँ नही जाता था....जैसे उसके तो मामाओं और मौसाओं-मौसियों के इलावा कोई और रिश्तेदार हो ही नही।

धीरे धीरे समय बीतता गया...अब सीमा B।A. के बाद M.A. के first year में थी॥उधर रमेश भी post graduation कर रहा था...सीमा के दोनों भाई भी कॉलेज में आ गए थे...रमेश का छोटे भाई भी 11th और 12th में थे...राजेश भी एक दो बार project कंप्यूटर पे बनाने के लिए सीमा के यहाँ आ जाता था..एक दो दिन रह जाता था...वहां निम्मो बुआ फुफ्फाजी को बोल देती की वो अपने दोस्त के यहाँ है project complete करने गया है...कई बार राजेश भी PCO से फ़ोन कर देता की वो फलाना दोस्त के घर है...

सीमा अक्सर राजेश की मदद करती थी...क्योंकि सीमा को तो कंप्यूटर पर काम करने का शौक जो था॥उसके physics project में diagrams बनाना..उसके लिए project का layout बनाना..वगरह वगरह....और राजेश thank you कह कर चला जाता था....अब राजेश भी कॉलेज में आ गया था..सीमा का भी MA first year complete होने को था...अब बारी राकेश की थी वो भी सीमा से मदद मांगने उसके यहाँ आया....उसको भी किसी project में सीमा की मदद की ज़रूरत थी...

सीमा का भाई सूरज college tour पे जा रहा था उसको सुबह सुबह ही train पकड़नी थी...स्टेशन सीमा के मामा के घर के पास था इसलिए सीमा के पापा और उसका भाई सूरज सीमा के मामा के घर गए हुए थे...उसका दूसरा भाई नील भी किसी दोस्त की birthday party में गया हुआ था...अब घर में सिर्फ़ सीमा की माँ,सीमा और राकेश ही थे....सीमा को नील का फ़ोन आया की वो आज रात घर नही आएगा..उसके दोस्त ने बहुत बड़ी party दी है..और उसको party में देर हो जायेगी...इसलिए वो वही सो जाएगा...अगले दिन सीमा का birthday था..तो सीमा ने नील को कहा कल घर जल्दी आ जाना...

सीमा राकेश का काम खत्म करने लगी...राकेश उसे बताता जाता वो करती रहती..बहुत देर तक काम करने पर काम पुरा हो गया..सीमा ने राकेश को floppy में project की soft copy डाल कर दे दी....dinner time होने वाला था...राकेश ने कहा की वो यही रुक जाता है...सीमा ने कहा "ठीक है..मगर घर फ़ोन कर दो".... राकेश ने घर अपनी माँ को फ़ोन करके बता दिया..की वो सुबह आएगा..सीमा की माँ भी खाना बनने लगी...और सीमा और राकेश TV देखने लगे...सीमा राकेश को बीच बीच में समझाने भी लगती की उसको board के exams की कैसी तैयारी करनी चाहिए....राकेश थोड़ा सा डरा हुआ था..जैसा की उसके पापा ने उसको 80% से उपर marks लाने को कह रखा था...

TV पे गाने आते तो सीमा भी साथ साथ में गुनगुनाने लगती...फिर तीनो ने मिल कर खाना खाया...और फिर तीनो थोड़ा सा TV देखने लगे.....तभी सीमा की माँ ने कहा की वो कुछ ज़रूरी सामान लेने बाज़ार जा रही है और TV देखने के बाद सीमा को बर्तन साफ़ करने है....सीमा ने कहा ठीक है वो कर देगी...

सीमा की माँ चली गई...सीमा तो TV देख रही थी..वो सोच रही थी..की कल उसका birthday है..वो क्या क्या करेगी...इस बार वो अपना birthday दोस्तों के साथ नही...माँ और पापा के साथ मनाना चाहती थी..उसने राकेश को भी बोला की वो कल पूरा दिन यही रुक जाए...

सीमा यादों में इतना खो गई थी की कब पीहु ज़ोर ज़ोर से रोने लगी उसे पता ही नही चला...शायद पीहु को भूख लगी थी...सीमा रसोई में गई और उसके लिए ढूध बोत्तल में डाल कर ले आई...पीहु को ढूध की बोत्तल पकड़ा कर उसने टाइम देखा तो... 2:30 बज चुके थे...

to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.

Monday, September 29, 2008

"निम्मो बुआ" (part 2)

सीमा फ़ोन रख कर रसोई में काम करने चली गई..मगर दिमाग अभी भी वही अटका हुआ था..क्षितिज कब रसोई में आया उसे पता ही नही चला..क्षितिज बोला "क्या बात है. पापा क्या बोल रहे थे.....निम्मो बुआ जी कब आएँगी सुबह सुबह या शाम को"....क्षितिज की आवाज़ से सीमा चौक गई.."हाँ सुबह सुबह ही 11-11:30 बजे शायद"..सीमा ने जवाब दिया..।

रसोई का काम ख़त्म कर जब सीमा अपने कमरे में पहुची तो पीयूष सो चुका था...और पीहू को भी क्षितिज सुलाने की कोशिश कर रहा था....क्षितिज पीयूष को माँ के पास छोड़ कर आया और इधर पीहू को सीमा ने सुला दिया....

"क्या बात है॥तुम निम्मो बुआ जी के आने की बात से परेशान हो..वो बस invitation ही तो देने आ रही है" क्षितिज ने पुछा। सीमा बोली "मगर क्षितिज वो...निम्मो बुआ जी..यहाँ क्यूँ आ रही है..पापा के घर invitation दे दिया तो यहाँ क्यूँ..तुम तो जानते हो निम्मो बुआ जी के सामने में बिल्कुल अजीब सा behave करने लगती हूँ"...क्षितिज सीमा को समझाने लगा.."हाँ मैं जानता हूँ तुमको वो अच्छी नही लगती...तुम क्यूँ बार बार पुरानी बातें सोचती हो...invitation ले लेना..अब शादी में जाना ना जाना तुम पर है ना..."

क्षितिज थोडी देर तक सीमा को समझाता रहा॥फिर वो ऑफिस से थका हारा घर आया था..इसलिए सीमा ने सोने को कह दिया....क्षितिज ने उसे भी सोने को कहा....सीमा और क्षितिज दोनों लेट गए...क्षितिज थोडी देर में सो गया....मगर सीमा की आंखों में नींद कहाँ थी..बार बार पुरानी यादें जो उसका पीछा नही छोड़ रही थी...हर बार जब भी निम्मो बुआ या उनके घर से कोई भी ख़बर उसके पास आती थी तो सीमा को बार बार वो बातें याद आती थी जिनको वो चाह कर भी भूला नही पाती थी..और अब इस बार तो निम्मो बुआ ख़ुद उसके घर आ रही थी...

निम्मो बुआ बहुत ही शांत सवभाव की थी...सीमा के पापा के बाद वही घर की बड़ी थी..उनकी शादी किसी गाँव के घर हुई थी....उनको शादी के बाद एक गाँव में ले जाया गया मगर वहां बुआ को अच्छा नही लगता था...और सीमा के फूफाजी भी बड़े ही गुस्सेल मिजाज़ के थे....फिर वो बार बार माँ के घर आ जाती थी...सीमा की माँ ने उसे बताया था की उसकी बुआ कितने महीनो-महीनो तक रह रह कर जाती थी..हर बार वहां से लड़ कर आ जाती थी..फुफ्फाजी भी बड़े नाटक किया करते थे.... उनको ले जाने आते थे...पर यहाँ कर लड़कर चले जाते थे....और सीमा के पापा बुआ को फुफ्फाजी के साथ समझा भुजा कर भेज देते थे॥

फिर वो यही शहर में ही किराये का मकान ले कर रहने लगे..बुआ जी ने आस पास ही कोई छोटी सी नौकरी ढूंढ ली थी...फूफ्फा जी भी बैंक में काम करने लग गए थे...दोनों यहाँ शहर में अपनी गृहस्थी चला रहे थे.....मगर बीच बीच में उनके बीच कहा सुनी होती रहती थी...बुआ जी जितने शांत सवभाव की थी उतने ही फुफ्फाजी गुस्सेल थे...बुआ का अपने मायके में आना जाना चालू था.. सीमा की माँ ने उसे बताया था..बुआ अपने बच्चो को भी सीमा की माँ के पास छोड़ कर बहार काम करने जाती थी....बुआ जी के तीन बेटे थे...रमेश, राजेश और राकेश..रमेश सीमा की उमर का ही था..वो रमेश से 6 महीने ही बड़ी थी...फिर राजेश जो की 2 साल छोटा था....और फिर राकेश जो 4 साल छोटा था...वैसे सीमा के भी दो छोटे भाई थे... सूरज 1 साल छोटा..और नील 3 साल छोटा....सीमा एक joint family में बड़ी हुई थी...उसके चाचा चाची के बच्चे भी थे...सब मिल जुल कर खेला करते थे..खूब मज़े करते थे..सीमा तो सबकी लाडली थी...माँ , पापा, दादा और चाचा सब उसे सबसे जयादा प्यार करते थे...पापा की लाडली तो थी ही...निम्मो बुआ भी बहुत लाड करती थी..निम्मो बुआ को तो हमशा से एक बेटी चाहती थी..सीमा बड़ी थी इसलिए वो सब बच्चो का अच्छे से ख्याल रखती थी॥

सीमा की चाची सीमा की माँ से हमेशा छोटी छोटी बातों पर कलेश करती थी... इसलिए सीमा के पापा ने अलग घर ले कर रहने का फ़ैसला किया और सीमा अपने माँ, पापा और भाइयो के साथ अलग रहने लगी...अब निम्मो बुआ के घर छुट्टियों में ही जाना होता था...बुआ के घर बदलते रहते थे...बुआ उसको प्यार से रखती थी....रमेश तो उसका दोस्त जैसा था...और बाकी दोनों राजेश और राकेश वो अपने भाइयो जैसे ही प्यार करती थी....सब साथ में खेलते रहते थे...इसलिए सभी सीमा को नाम से बुलाते थे..बस फूफाजी से थोड़ा डर लगता था...तीनो बच्चे बहुत डरते थे फूफ्फा जी से...सीमा को तो ऐसे डरे डरे माहोल में रहने की आदत नही थी..वो तो बिल्कुल बिना डरे फुफ्फाजी के साथ भी बात कर लेती थी...फूफ्फा जी भी उस से प्यार से बात करते थे..क्योंकि वो उनके घर मेहमान थी और लड़की थी....वो सीमा की छोटी छोटी बातों को नज़र अंदाज़ कर देते थे..मगर अगर वही चीजे अगर उनके बच्चो ने की होती तो उनको खूब सुनाते थे...

सीमा यह सब सोच रही थी की तभी अचानक रसोई में से आवाज़ आई....सीमा अपनी पुरानी यादों से बाहर आई...और रसोई में देखने चली गई...वहां माँ fridge से पानी ले रही थी.."अरे बहु तुम अभी तक सोयी नही...पीहू तंग कर रही है क्या"..माँ ने सीमा को देख कर पुछा...सीमा बोली "नही माँ वो तो सो रही है...बस रसोई की आवाज़ सुन कर नींद टूट गई...." सीमा वापस अपने कमरे में आई तो देखा 1:30 बज चुका था....सीमा को सुबह जल्दी उठाना था...इसलिए वो फिर सोने की कोशिश करने लगी...

to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.

Friday, September 26, 2008

"निम्मो बुआ" (part 1)

रात के 9 बजे थे और सीमा हर रोज़ की तरह खाने के लिए dinning table लगा रही थी. "क्षितिज, माँ, पीयूष..सभी लोग आ जाओ। खाना तयार है।" सीमा ने ज़ोर से आवाज़ लगाई।

"आ रहे है।" क्षितिज का जवाब आया। माँ भी पीयूष और पीहू के साथ आ गयी। माँ ने पीहू को सोफ्फे पर बिठा कर सीमा से कहा "पीहू को भी भूख लगी है। उसके लिए दूध की बोत्तल तैयार कर लो बहु।"

"जी माँ।" सीमा ने प्यार से कहा और दूध की बोत्तल तैयार करने रसोई में चली गई। क्षितिज भी हाथ मुह धो कर टेबल पे आ गया। फिर सभी टीवी देखते देखते खाना खाने लगे। "सीमा कहाँ हो..सुनो तुम भी टेबल पे आ जाओ।" क्षितिज ने कहा। सीमा रसोई से निकलते हुए बोली "आ रही हूँ।"

सीमा और क्षितिज की शादी हुए 8 साल हो चुके थे. पीयूष (5 साल) और पीहू (1+ साल) दो बच्चो के साथ उनकी ग्रहस्थी ठीक-ठाक चल रही है। क्षितिज की माँ सीमा को दिलोजान से चाहती है। दिनभर बस बहु के गुणगान करती रहती है।

सीमा पीहू को बोत्तल थमा कर खाना खाने के लिए आ गई। "पीयूष बेटे तुमने हलवा तो लिया ही नही। चलो जल्दी से इसे भी ख़त्म करो।" सीमा ने उसकी प्लेट में हलवा डालते हुए कहा। सीमा जानती थी की पीयूष को गाज़र का हलवा बिल्कुल पसंद नही पर वो चाहती थी पीयूष सभी कुछ खाए..बढ़ते बच्चो को सभी कुछ खाना चाहिए।

करीब 10 बजे सभी का खाना ख़त्म हो गया था। सीमा रसोई में कुछ काम करने चली गई। पीहू का दूध भी ख़त्म हो गया था और अब वो खेल रही थी। क्षितिज ने उसे उसके सारे खिलोने ला कर दे दिए थे। पीयूष भी ball से खेल रहा था।

"trin trin....trin" तभी फ़ोन की घंटी बजी। क्षितिज ने फ़ोन उठाया और बात करने लगा। फिर थोडी देर में बोला। "सीमा तुम्हारा फ़ोन है..पापा का।" सीमा रसोई से बाहर आ कर फ़ोन क्षितिज से लेकर बोली "हेल्लो! पापा। हाँ बोलो। आप कैसे हो? सब ठीक है ना...मम्मी की तबियत कैसी है..." बातों बातों में सीमा को पता चला की कल छुट्टी के दिन निम्मो बुआ उसके घर आ रही है। उनके छोटे बेटे राकेश की शादी है। वो उसी अवसर का निमंत्रण पत्र देने आ रही है।

निम्मो बुआ का नाम सुनते ही सीमा कुछ परेशान सी हो उठी। न जाने उसे क्या हो गया था। आगे की बातें भी उसने ध्यान से नही सुनी। राकेश की शादी!! राकेश की शादी!! निम्मो बुआ घर आ रही है!! निम्मो बुआ घर आ रही है!! बस बार बार यही शब्द दिमाग में घूमने लगे....

to be continue....

Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.

Monday, September 15, 2008

अब यह जहाँ रहने लायक कहाँ रहा

अब यह जहाँ रहने लायक कहाँ रहा
कहाँ वो भाई चारा कहाँ वो इंसान रहा
वो प्यार माँ के लिए पिता के लिए स्नेह अब कहाँ रहा
इतनी जमीन मेरी इतनी है तेरी धरती माता को बाँट इंसान रहा

जहाँ रहतें थे सब मिलजुल कर सब कहते थे हम एक है
वही परिवार अब बट गया बोले आधा-आधा ही ठीक है
यहाँ अब भाई भाई के खून का प्यासा है
सबका प्यारा दुलारा तो अब सिर्फ़ पैसा है

जियो और जीने दो जैसे नारा अब कहाँ
इंसानियत का कोई नही साथी हर मजहब के लोग जहाँ
सब है करते अपने अपने धर्म की बातें यहाँ
हिंदू रहे हिंदू मुस्लिम रह गए मुस्लिम यहाँ
अब गुरुनानक जी और इशु मसी के बोल कहाँ
सब इंसान कहते ख़ुद को पर इंसानियत है कहाँ

Sunday, September 14, 2008

"HUMANITY CAN'T BEATEN BY TERROR"

well on 13 Sept eve..i switched on the television....i was shocked to know that there r serial bomb blast in our own city....the heart of india.."Delhi"....I was very sad n angry ..i don't know there is mixed feeling..sad for the lost n injured people .... n angry on those inhuman n shameless people...
I mean they don't have any hearts ...dont they see how many innocent people r died..in these blast...how much blood they want....the small, little-little children who have a long life to live...who seen nothing in his/her life..they died in this inhuman act...you terrorist..your heart didn't told you that is a sin...this led you towards hell...you urself making a path towards hell...

i m very upset on these people..i mean if they see all that on television after doing that..what they r actually feels..r they happy to see all these...blood n dead people...

but i also saw the people helping each other.....i saw not even the helpless(can't stop the terror acts that y i said helpless) police but the common man also come front to help th injured people...well i think the terrorist r not happy..becoz they also see how the other people helping injured people...when these terrorist saw that how people r helping each other...how people actually oing a humanity act..which these terrorist doesn't have....


well i think that may be terror can make terrorist happy for some time....n led us to a fearful days, badly hurt, injuries, ruined many lives, lost many people...n losses hearted

but at the end we get united, alertness, courage to live, heal the wounded/injured people not with medicinesn bandages but with our love n humanity, make us more strong, a focus to be part of anti-terror n give us more than enough reasons n anger to find out these terrorists(to teach humanity to them too)....

"BAD TIMES MAKE US STRONG N UNITED"

"HUMANITY CAN'T BEATEN BY TERROR"

Monday, September 8, 2008

काम (work)

श्याम बहुत ही मेहनती और इमानदार था। उसके चर्चे आस-पास के गोवों तक फ़ैल गए थे। उसका एक मित्र था। वह आलसी और चालक था। वह दिनभर सोता रहता था और श्याम खेत में काम करता रहता था। फसल अच्छे से तयार हो गयी थी। श्याम ने अपने मित्र से कहा.."चलो, मेरे साथ फसल की कटाई का काम करो"। उसके मित्र ने कहा "भई! मैं फसल तो अकेला ही काट दूं पर मुझे बदले में मिलेगा क्या?" श्याम ने उसे आधी फसल देने का वचन दे दिया।

श्याम का मित्र श्याम के साथ खेत चल तो दिया पर वहां जाकर उसने कहा "मैं ज़रा थक गया हूँ। विश्राम कर लूं। तुम चाहो तो तुम भी मेरे साथ विश्राम कर सकते हो..बाद में हम दोनों मिल कर काम करेंगे।" श्याम ने उसे मना करते हुए कहा "नहीं मैं काम करूँगा..तुम थोडी देर आराम कर लो..फिर खेत में काम करने आ जाना।"

श्याम खेत की फसल काटने लगा.. उसका मित्र जमाई ले कर सो गया। शाम(संध्या) हो गयी..श्याम दिनभर काम करता रहा और उसका मित्र सोता रहा। दोनों मित्र घर लौट चले। फिर रात को सोते समय उसके मित्र ने वचन दिया की कल वह विश्राम नहीं करेगा और श्याम के साथ कटाई करेगा। श्याम उसका विश्वास कर के सो गया।

मगर उसे क्या पता था अगले दिन भी यही होना है...श्याम दिनभर काम करता रहा और उसका मित्र आराम करता रहा। फसल कट गयी..मगर अब वचन के अनुसार श्याम को आधी फसल अपने मित्र को देनी पड़ी॥

इसलिए यह ठीक कहा गया है की

"आलसी लोगो से मित्रत्ता नहीं करनी चाहिए"

THE END

Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.

LOVE

In this social world LOVE is GOD,
In any relationship LOVE is a spinal Cord.
Love is a mixture of all feelings,
Love is compact pack of every things.
Love is a trust,
which never rust.
Love is a small nest,
where everyone want to rest.

Love make you on the Top of the world and then fall,
Love make you tough in difficult time like a wall.
Love make you rise at various time like a sun,
Love make you happy and enjoy lots of fun.


Love make you loyal,
Love make you royal.
Love make you dependable,
Love make you responsible.
Love make you lovable,
Love make you reliable

Love make you mad for someone,
Love make you cry for someone.
Love make you die for someone,
Love make you sad for someone.

Love make you live with someone,
Love make you dive with someone.
Love make you share with someone,
Love make you fair with someone.
Love make you enjoy with someone,
Love make you fly with someone.
Love make you flow with someone,
Love make you glow with someone.

Love make you serious,
Love make you spontaneous.
Love make you emotional fool,
Love make you special among the all.
Love make you honest,
Love make you confident.
Love make you dreaming,
Love make you caring.

Love make you naughty,
Love make you flirty.
Love make you hotty,
Love make you catty.

Love make you to do sacrifice,
Love make you to do romance.
Love make you to do dance,
Love make you to have a best chance.

Love make you keep your heart pure,
Love make you feel GOD for sure.
Love make you to open the door,
Love make you to say yeh dil maange more.

In this social world LOVE is GOD,
In any relationship LOVE is a spinal Cord.
Love is a mixture of all feelings,
Love is compact pack of every things.
Love is a trust,
which never rust.
Love is a small nest,
where everyone want to rest.

Saturday, September 6, 2008

घटना--जिसमें मुझे घबराना चाहिए था पर मैं नहीं घबराई..

यह बात 1990 की sept के किसी दिन की है। मेरे मम्मी-पापा किसी काम से बाहर गए हुए थे। मैं घर के बाहर ही अपने दोस्तों के साथ खेल रही थी। मैंने अपने दोस्तों से दौड़ लगाने को कहा। सब मान गए। फिर एक जगह से शुरू करते हुए कई गलियों से निकल कर बड़ी सड़क के उस ओर जा कर वापस आना था। यह हमारी दौड़ का रास्ता था। मगर मेरी एक सहेली बोली यह तो बहुत दूर है। फिर सबके कहने पर वो मान गई.

दौड़ शुरू हुई। मैं दौड़ते दौड़ते बहुत आगे निकल आई। मैं बड़ी सड़क तक पहुच गई मगर वहाँ दोपहर के समय पर कम भीड़ होती है। मैंने आराम से सड़क पार कर ली। जब मैं वापस सड़क पार करके आई तो मैं अपना रास्ता भटक गई। मुझे अपनी गली का पता ही नहीं चला और दूसरी गली में चली गई। आगे रास्ता न मिलने पर मैं गबरा गई। फिर एक आदमी मुझे मिला उसने मुझसे कहा कि वो मुझे मेरे घर तक पहूचा देगा। उसने मुझे मेरे और मेरे पापा के बारे पुछा। मैंने घर का पता बता दिया। जिस से वो मुझे घर पँहुचा सके। जैसे ही उसने सड़क पार की उसने मेरा मुह एक कपड़े से जोर से बंद कर दिया। मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी कि वो क्या कर रहा है। उसने कपड़े के उपर एक और कपड़े से उसे बंद दिया। मैंने बहुत कोशिश की उसके हाथो से निकल जाऊं मगर उसने मुझे बहुत कस के पकड़ा हुआ था। फिर उसने मुझे एक गाड़ी में बिठा दिया। गाड़ी चलने लगी। उस गाड़ी में एक और आदमी भी था जो गाड़ी चला रहा था। करीब एक घंटे बाद गाड़ी एक जगह रुकी। वो जगह बड़ी सुनसान सी थी।

फिर उस आदमी ने मुझे कई गलियों से निकालते हुए एक मकान में ला कर बंद कर दिया। थोडी देर बाद वो आया उसने मेरे मुह से कपड़ा हटाया और बोला " चीखना चिलाना नहीं। यहाँ कोई नहीं सुनेगा मकान बिल्कुल खाली है। तुमको भूख लगी होंगी। लो परांठे लाया हूँ। खा लो। मैंने कई घटनाएं सुनी थी जिसमें बच्चो को उठा कर ले जाते थे और फिर घर वालो से पैसो की मांग करते थे। जिसको पूरा न करने पर कई बच्चो को मार भी डाला था कई घटनाओ में। लेकिन कुछ घटनाओ में बच्चो ने अपनी सुझबुझ से ऐसे लोगो को चकमा दिया था और बच निकले थे। मैं समझ गई थी यह वैसे ही लोग हैं। मैं यह भी जानती थी मेरे मम्मी-पापा मुझे बहुत प्यार करते हैं मगर उनके पास इतने पैसे न हुए जितने यह लोग मांग करेंगे तो पापा पुलिस की मदत भी ले सकते है। मगर मुझे भी समझदारी से काम लेना होगा। मैं यहाँ से निकलने की तरकीबे सोचने लगी।

वो मुझे परांठे दे के जा चुका था। मैंने दरवाजा खोलने की खूब कोशिश की पर सब नाकामयाब थी। वो दरवाजा बहुत मजबूत था और उसने बाहर ताला लगा दिया था। मैं और कोई तरकीब सोचने लगी। बस एक मौका चाहिए था मुझे जो कि मुझे जल्द ही मिलने वाला था।

रात को करीब 7-8 बजे वो आदमी फिर खाना ले कर आया। मैंने देखा उसने दरवाजे से ताला और उसमें लटकी चाबी वहीँ दरवाजे पे ही छोड़ दी है। मुझे लगा यही अच्छा मौका है। मैं पेट को ज़ोर से पकड़ कर जोर से चिलाई "आआअ...... आहह....... मेरा पेट.....दर्द हो रहा है.....उफ़...आआहह्ह" वो गबरा गया था जैसा कि मैंने सोचा था। उसके हाथ में खाने की प्लेट थी। वो मेरी ओर बढने लगा। उसके कुछ कहने से पहले ही मैंने सोच लिया था की क्या करना है। जैसे ही वो मेरे करीब आया मैंने उसके हाथ की प्लेट पे ज़ोर से धक्का दिया और प्लेट उसके मुहँ पे जा लगी। वो बोखला गया था। मैं जल्दी से मकान से बाहर निकल गई और जल्दी से दरवाजा बंद करके ताला लगा दिया। मगर वो अंदर से दरवाजा हिला रहा था। तो चाबी मेरे हाथ से वहीँ गिर गई। मैंने इधर उधर देखा। समझ नहीं आ रहा था कि किधर जाऊं। फिर मैंने देखा सड़क गिली थी। शायद अभी अभी ज़ोर से बारिश हुई थी जिसकी वजह से सड़क बिल्कुल साफ़ थी। बस कुछ पेरों के निशान थे जो गिली मिटटी से बने हुए थे। मैं बस उस ओर चल दी। बहुत सी गलियों में घूमने लगी। वो जगह सच में सुनसान थी। शायद यहाँ कारखाने थे। कोई रहता नही था क्योंकि मैंने मकान में मशीनों के चलने की आवाजें सुनी थी। बहुत इधर उधर घूमने के बाद मुझे एक जगह दूर वो गाड़ी दिखाई दी। मैं एक जगह छुप गई। उस गाड़ी के पास वो दूसरा आदमी घूम रहा था। मैंने मौका देख कर वहाँ से भागने का सोचा। सो मैं वहीँ छुपी रही ताकि वो मुझे ना देख सके। मेरा दिल पकडे जाने के डर से जोरो से धड़क रहा था

बहुत देर बाद वो आदमी कुछ परेशान सा हो गया और गाड़ी के अंदर बैठ गया। मैंने यह मौका ठीक समझा और नीचे झुकते हुए गाड़ी के पीछे तक चली गई। फिर 15 मिनट के बाद वो गाड़ी से निकल कर कुछ बडबडाता हुआ गली के अंदर चला गया। मैंने ज़ोर से चेन की साँस ली। इधर उधर देखा। मगर कुछ समझ नहीं आ रहा था। जैसा कि वो जगह मेरे लिए अनजान थी और वो जगह सुनसान होने क कारण मुझे काफ़ी डरा चुकी थी। फिर अचानक गली के अंदर से आवाज़ आयी। "वो भाग कैसे गई। तुमसे एक छोटी सी लड़की नहीं संभाली गई।"

मैं समझ गई वो दोनों यहीं आ रहे है। मैं थोड़ा और गबरा गई थी। मैं फिर झुक गई। फिर मैंने देखा गाड़ी की डिक्की खुली हुई थी। मैं चुपके से उसके अंदर बैठ गई। वहाँ अंदर डिक्की में बहुत अँधेरा था। मगर मुझे उन दोनों की आवाजे सुनाई दे रही थी। "मैंने तुमको सिर्फ़ खाना दे कर आने को कहा था..अब वो अंदर गलियों में भी नहीं मिली।" दूसरा आदमी बोला "...और अब यहाँ बाहर भी नहीं है। पता नहीं कहाँ तक चली गई होगी।" फिर दुसरे ने झट से बोखला के बोला "मगर मैं तो तब से यहीं खड़ा हूँ। मुझे तो वो यहाँ से बाहर आती नही दिखाई दी। यह सब तुम्हारी बेवकूफ़ी की वजह से हुआ है। तुमने ताला चाबी वहाँ ऐसे ही छोड़ दी, अब बॉस को क्या बोलेंगे।"

10-15 मिनट तक वो लोग वही मुझे ढूँढ़ते रहे। तभी एक ने कहा "कहीं वो वहीँ तो नहीं चली गई जहाँ से हमने उसे उठाया था। हो सकता है वो किसी और रास्ते से गलियों से निकल गई हो और उसको रास्ता पता हो। चलो वहीँ जा कर ढूढ़ते है।"...और वो गाड़ी में बैठ गए। गाड़ी चलने लगी। गाड़ी के रुकते ही एक आदमी ने कहा "तुम यहीं खड़े रहो मैं उसके घर के आस पास देख कर आता हूँ।" तब दुसरे ने कहा की "मैं बॉस को फ़ोन कर देता हूँ।"

जब थोडी देर तक उन दोनों की कोई आवाज़ नहीं आयी तो मैंने डिक्की खोली और देखा यह तो वही बड़ी सड़क थी जहाँ से मुझे उठाया गया था। मैं डिक्की से बाहर आयी और देखा एक दूकान में उन दोनों में से एक आदमी फ़ोन पे बात कर रहा था। मैं नीचे झुक गई ताकि उसे नज़र न आऊँ। इधर उधर देखा फिर एक दूकान में बहुत भीड़ देखी। सोचा अच्छी जगह है छुपने के लिए। मौका देख कर उस दूकान में चली गई। भीड़ के अंदर चली गई। फिर एक आवाज़ आयी "भईया ज़रा दो किलो चीनी देना।" मैंने देखा की जहाँ से आवाज़ आ रही थी। वहीँ एक आदमी खड़ा था जिसको जल्दी से पहचान गई थी। वो मेरे पड़ोस में ही रहते थे। उनका नाम मनोज था। मैं उनको आवाज़ देना चाहती थी मगर उस अप्रहनकर्ता के डर के कारण आवाज़ नहीं निकल पायी। वहीँ छुपी रही। मनोज अंकल बार बार दूकानदार से चीनी मांग रहे थे। मगर भीड़ होने के कारण दुकानदार उनको सुन नहीं रहा था। मुझे लगा कहीं मनोज अंकल चले न जाए।

फिर मैंने हिम्मत कर बाहर देखा तो वो दोनों आदमी जल्दी से गाड़ी में बैठ कर चले गए। तब जान में जान आयी और मैं दूकान के बाहर आ कर मनोज अंकल के करीब आ गई। वो मुझे देखते ही बोले.."अरे तुम यहाँ हो। तुम्हारे घर में तो सब तुमको लेकर बहुत परेशान है। पुलिस वाले भी तुमको ढूंढ रहे है। तुम्हारे
मम्मी-पापा का तो रो रो कर बुरा हाल है। चलो तुमको तुम्हारे घर छोड़ दूँ। वैसे तुम कहाँ चली गई थी।"

रास्ते में मैंने उनको सब रोते रोते बताया। घर पहुचते ही मम्मी-पापा मुझे देख कर मुझसे लिपट गए। बार बार रो रो कर मुझे गले लगा रहे थे और बीच बीच में मुझे प्यार भी कर रहे थे। मुझे पाकर घर वाले सब बहुत खुश थे और एक साथ इतने सवाल पूछ रहे थे। मैं बहुत कोशिश कर रही थी जवाब देने का, मगर उनके सवाल ख़त्म ही नहीं हो रहे थे। साथ ही साथ बार बार भगवान् और मनोज अंकल को धन्यवाद दे रहे थे। फिर मुझे पता चला की उन अप्रहंकर्ताओ घर के बाहर एक चिट्टी रख दी थी जिसमें उन्होंने 5 लाख की मांग की थी। मम्मी तो यह सब सुन कर बेहोश ही हो गई थी।

पापा ने भी मनोज अंकल को शुक्रिया कहा। मम्मी ने भगवान् को उनकी इस असीम कृपा के लिए शुक्रिया कहा। सब मेरी आप-बीती सुन ने लगे। बार बार अचम्भे से मुझे निहारने लगे और मेरी बहादुरी और समझदारी पर मुझे शाबाशी देने लगे। फिर पापा पुलिस को साथ ले कर आए और बोला "बेटे सब कुछ पुलिस अंकल को बताओ"..पुलिस अंकल ने मुझसे काफ़ी सवाल पूछे। पुलिस अंकल ने मुझे बताया की मैं अपने पापा की तरह समझदार और बहादुर हूँ। पुलिस अंकल ने बताया की आजकल इस इलाके में ऐसी बहुत सी घटनाएं हो चुकी है। मगर हर बार घर वाले डर की वजह से पुलिस को नहीं बुलाते थे। मगर पापा ने पुलिस को बता कर बहुत समझदारी दिखायी है। रात के खाने के बाद पुलिस वाले अंकल दो लोगो को साथ ले कर आए थे जिनको मुझे उन अप्रहंकर्ताओ का हुलिया बयां करना था। थोडी देर में मेरे बताते ही उन्होने तो तस्वीर बना दी। जो कुछ कुछ उन दोनों अप्रहंकर्ताओ से मिलती थी। पुलिस अंकल को मने यह भी बताया की उनका एक बॉस भी है और वो लोग मुझे एक ऐसी जगह ले गए थे जहाँ मशीन चलने की आवाजे आ रही थी।

करीब एक हफ्ते और चार दिनों बाद पुलिस वालो ने बताया की वो लोग यहाँ शहर से दूर किसी दूसरे शहर में पकड़े गए है। बस अब उनसे उनके बॉस के बारे पूछताश हो रही है। मैं अपने दोस्तों,स्कूल,आस-पड़ोस और घर में सबके बीच बहुत मशहूर हो गई थी। हर कोई मुझे समझदार और बहादुर लड़की बता रहा था मगर मैं तो उन अप्रहंकर्ताओ के पकड़े जाने पर और घर वालो इतना प्यार पाकर बहुत खुश थी।

so hows it??
criticism also invited here..:-)

Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.

भगवान्(GOD)

तुम अगर जिंदगानी का सफर न देते तो कहाँ जाता इंसान.
तुम अगर विश्वास की किरण न देते तो राह में खो जाता इंसान.
तुम अगर रिश्तेदारो से हमसफ़र न देते तो अकेला रह जाता इंसान.
तुम अगर मौत जैसी मंजिल न देते तो पहले ही थक जाता इंसान.
तुम अगर मुश्किल भरे दिन न देते तो तुम को भूल जाता इंसान.
तुम अगर खुशियों भरे उत्सव न देते तो जीवन के सारे तत्व भूल जाता इंसान.
तुम अगर साहस न देते तो इतनी ताकत कहाँ से लाता इंसान.
तुम अगर मन न देते तो प्यार की चाहत कहाँ से लाता इंसान.
तुम अगर हरा भरा जहाँ न देते तो कबका विलुप्त हो जाता इंसान.
तुम अगर दिमाग न देते तो जानवर ही रह जाता इंसान.
तुम अगर गीता कुरान जैसे ग्रन्थ न देते तो बहक जाता इंसान.
तुम अगर इतने अवतार न लेते तो जीवन का सार कैसे जान पाता यह इंसान।

Thursday, September 4, 2008

दोस्त

मेरे दोस्त मेरे यार, याद है मुझे वो तेरा निछल प्यार.
गाता है मेरा तार तार, करती हूँ मैं तुम्हे याद बार बार.

कभी कभी मैं सोचा करती थी, तुम धोखेबाज...हो,
जो तुम मेरे पीठ पीछे, मेरी बातें करते किया करते हो.
उन्हें चुपके से एक टेप में रिकॉर्ड करू,
फिर कभी फुर्सत में उसे सुनु.

सुना तो ऐसा लगा कितना ग़लत थी मैं,
तुम ही मेरे सचे यार हो, स्वार्थी थी मैं.

याद है मुझे वो रूठना मानना,
कई बार एक दूजे के साथ कोई फिल्मी गाना गुनगुनाना.

तुम हो मेरे मन के एक तार,
तुम ही मेरे जीवन के हो सार.
मेरे दोस्त मेरे यार
याद है मुझे वो तेरा निछल प्यार.

पिता(Dad)

पिता, एक ऐसा शब्द है,
जो आता माँ के बाद है.

पिता तुम मेरे करता हो,
तुम ही जीवन के धरता हो.
तुम्हारे बिना जीवन निर्जीव है,
क्या यह संसार तुम बिन सजीव है?

सभी जगह तुम मेरे छात्र हो,
तुम ही मेरे मन के भाव मात्र हो.
पिता तुम मेरे करता हो,
तुम जीवन के धरता हो.

माँ तो जीवन का आरम्भ है,
पर तुम तो आरम्भ से अंत तक हो.
संसार का आरम्भ , तुम ही अन्यत्र हो,
तुम ही संसार का आदि और अंत हो.
मेरी अभिलाषा है यही कि तुम मेरे सदा रहो,
दीया के संग बाती के भांति मेरे साथ सदा रहो.

पिता, एक ऐसा शब्द है,
जो आता माँ के बाद है.

My first blog

I m never feeling exciting n encouraging before to write a blog before on any community, but today while I m arranging my stuff in my book self I find my old dairy i used write at time of schooling. I open it ..perhaps i open the door of all my dreams, fantasy world, crazy n funny creative world..

I find it so funny that I was used to write poetry, stories on such silly topic but I also find some topics are very relative to todays world...some topics are based on fiction...some with some good things to learn....I want it to keep more safe as they are written by me..more precious than any other creative things I used to do. They have my inner side..what my mind used to think..what I was feel about any thing by heart at that time of period..so I thought to type it on my lappy..then I thought why not on Blog..

So My all these creative words make me to write this blog..As I remember my Hindi teacher was playing important role in my life..when i was very weak in hindi she came in my school or I must say in my life...to make a change in me...she encourage me to understand Hindi Grammer just like i understand sanskrit..(sanskrit was one of my fav subject...which was out of my interest after 10th std)...she actually directed my interest in Hindi..she gave us to write an descriptive story on "Gatna--jismein mujhe gabrana chahiye tha par main nahi gabraayi". she said it should be involving around urself and it may be most fearful nightmare you have...and it frightened you....but you have to write it...

I dont know the story in my dairy is the one which I was submitted to her as an assignment or not but yes I write it on that time..well i want to type it here but i think its better to have a funny poetry (very first one thats I m sure) which I just read from my dairy..Its sound silly I Dont know at that time What I was thinking...but ..ok...here it goes...

Poetry on Nimbu

निम्बू की रचना

जब भगवान् ने मिठास और कड़वे स्वाद बना दिए,
उन का निरक्षण कर पृथ्वी में फैला दिए.

शायद उन्होंने सोचा होगा कुछ कमी है अभी,
जब शिव सोच में पड़ गए इन्द्र भी विचार रहे थे तभी.
विष्णु ने सोचा क्यों न कुछ किया जाए,
सब के मुख पर आश्चर्य का भावः लाया जाए.

देव ऋषि ले चले संदेश ब्रह्मा के पास,
ब्रह्मा को भी अपनी शक्ति की शीधता का हुआ एहसास.
बहुत सोचा गया, बहुत विचार गया.

सभी विध्व्जनो ने लगे अपनी अपनी प्राग्य और ताकत,
विनम्रता से बोली "नवरत्न" अप्सरा आ कर.
क्यों न सभी स्वादों को मिलाया जाए,
एक नए स्वाद की रचना की जाए.

सबको आया विचार पसंद,
सभी प्रफुलित हो गए देवगण.
मिठास, कड़वाहट, तीखा, फिक्का,
सभी स्वादों मिलाये गए बनाया गया एक नया स्वाद,
तब सब ने नाम विचार, विचार कर रखा गया कट्ठा स्वाद.

यही है दास्तान कट्ठेपन की,
यही है कहानी निम्बू की रचना की.

BY HEMA....(Written in 6-8 Std I dont actually remember)

Tell me hows it....Next Blog will include that story..and some more poetry..