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Wednesday, October 22, 2008

दीपावली के उपलक्ष पर...मेरी कविता...

एक बार एक था भक्त विक्रम आहूजा।
जो करता था बहुत पाठ और पूजा ॥
गरीब था मगर कोई न दुःख था ।
वो इतनी गरीबी में भी खुश था ॥

रोज़ सुबह उठकर बोलता था सबको जय राम जी की ।
करता था विधिवत पूजा श्री गणेश जी की और लक्ष्मी जी की ॥
कुछ न होकर भी उसके पास बहुत सा ज्ञान और तेज था ।
उधर वो मन से भी बहुत संतुष्ट और शांत था ॥

दिवाली के दिन को वो मनाता था इस उत्सव को विधिवत ।
दीयों की लड़ियाँ तो नहीं थी पर जलाता था दिया एक हर वक़्त ॥
विक्रम की भक्ति देख....एक दिन हुई लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न ।
दिया उन्होंने उसे खुश होकर वरदान में बहुत धन ॥
लक्ष्मी जी के आगमन से हुआ उसका घर धन्य और पवान ।
तिजोरी देख बने उसके कुछ मित्र जो दिल से बिलकुल थे काले और रावण

धीरे धीरे उस पर चड़ा धन से धन बनाने का नशा ।
मदमस्त हुआ वो खोला उसने व्यापार एक जिसमें बहुत था नफा ॥
खूब तिजोरी भरने लगी.. फिर उसके बने काफी मित्र बहुत था वो खुश ।
इस बीच वो भूल गया अपनी भक्ति और होने लगे सब देवगन उस से रुष्ट ॥

सब मित्रों संग उत्सव मनाता.. खूब खिलाता.. खूब पिलाता ।
दिवाली आती जब वो खूब धन आतिशबाजी में लगता ॥
नए नए यंत्रो से फिर वो खूब सारी रोशनियाँ दीयों सी सजाता ।
कितने बम, कितने पटाखे, कितने रोकेट, कितने अनार और कितना धुँआ फैलाता ॥

पूरी जवानी अब बीत चली थी उसका बुढ़ापा आ चूका था ।
कितने घर और कितने कीमती गहने.. वो तिजोरी खाली कर चूका था ॥
कमजोर तो हो गया था... उसको अब बहुत सा हो गया गम ।
उसके गले की हालत बहुत थी बुरी हो गया था उसे दम ॥

अब जब भी दिवाली आती ।
उसकी ख़ासी रुक नहीं पाती ॥
उसको अपनी गलती तब याद आती ।
क्या इतना था वो मदमस्त की इतनी समझ न उसको आती ॥
कितना धुँआ था वो उड़ाता ।
वही धुँआ अब वो है खाता ॥

बिमारी से उसे हुआ एहसास ।
अब तो रुक जाएगी जैसे उसकी साँस ॥
अपने प्रभु से रोज़ मौत मांगता ।
सबको पवन को दुषित न करने को कहता ॥
पर उसको मिलती इतनी आसान मौत कभी ना ।
अभी तो था उसे बहुत कुछ भुगतना ॥

सोचता था वह अकेला था न कोई मित्र और न साथी ।
कितना किया उसने दुषित पवन कितना था वह उधमाती ॥
कितनो को उसने यह दी बिमारी..कितनो की साँसे थी ली उसने छीन ।
धुए ने कितनो को मारा... कितनो को किया परेशान और कितना भयबीन ॥

सबको अब वह यही समझाता की यह दिवाली का पर्व है ।
जो है बहुत सुखमय और पावन और जिस पर हर व्यक्ति को गर्व है ॥
भाईओं मेरी तरह तुम ना धुँआ उडाना ।
बिन बात के धन को तुम यूँ ना गवाना ॥
यह दिवाली तुम दीयों से मानना ।
कम पटाखे और कम पीना पिलाना ॥
परिवार संग पाठ पूजा करवाना ।
लक्ष्मी जी को तुम घर अपने बुलाना ॥
सोच समझ कर तुम दिवाली मानना रावण जैसे मित्र न बनाना ।
उनकी किसी भी गलत बातो में खुद न शामिल तुम हो जाना ॥
घर को अपने खूब सजाना.. मगर मंदिर में भी दिए जलाना भूल न जाना ।
आतिशबाजी नहीं अब पूजा, मिठाइयों, दीयों और रंगोलियों से ही बस दिवाली मानना ॥

Happy Diwali

Tuesday, October 21, 2008

लो आ गयी दीपावली

सजा दो हर तरफ .... लगाओ दीपो की माला.. लो आ गयी दीपावली ।
रावण का नाश कर राम-सीता जी घर लौट कर है आये... पूरी अयोध्या झूमे बन मतवाली ॥
वहां चाँद भी है गायब आसमान में... जैसे खो गया हो इस चमकती बिजलियों में ।
विजय पर्व के बाद अब आया खुशियों का त्यौहार... हर कोई है खुश यहाँ इन रोशनियों में ॥

फुलझड़ी, फिरकनी या हो अनार, रोकेट सब हो गए रौशनी में घूम ।
सब है खुशियों का प्रतीक, फिर भी है सबकी अपनी चमक अपना दूम ॥
यह पटाकों की लड़ी जली.. यह फूटा बड़ा बम ।
धूधूममम... धडाडाडाडाममम... बूमम बूमम ॥
कुछ है फुस्सी और कुछ धमाकेदार... कुछ है रंगीले... कुछ है चमकदार ।
शाम को होती मुहरत पे पूजा... सब गाते आरती गणेश जी की और लक्ष्मी जी की बार बार ॥

कितनो को शौक यहाँ बाजी लगाने का... हर कोई चाहे अपनी किस्मत को आजमाना ।
किस्मत के खेल हैं देखो कहीं दिवाली बोनस.. तो कहीं पर निकला किसी का दिवाला ॥
कहीं पर है लक्ष्मी जी की कृपा और है नए साल के अवसर पर शुभ करता गणेश जी की जय जयकार ।
सब जगह हो मंगलमय और खुशियाँ अपरमपार करके... सब दुष्टो का हो स्रंघार ॥

रंगोली है करती सब रंगों से इन खुशियों को सत सत नमस्कार ।
मिठाइयाँ है बाटते सभी..लोगो को कहते "आप पर हो प्रभु की कृपा अपरमपार" ॥
अनार की तरह सब और खुशहाली हम फैलाये, फिरकनी की भाँती हम सब जगह की सैर करके आये ।
रोकेट के सामान हम जाए बहुत दूर तक.. इन दीयों की रौशनी जैसी शुद्ध और स्वछ विचार ही मन में लाये ॥

कुछ लोग रावण के है भक्त यहाँ.. इस अवसर पर भी नहीं सोचते है भाला ।
खुद को इतना अहसाए और सही बताते.. और लेंगे कितने मासूमो की जान भला ॥
खुद तो मानव बोम्ब बन जाते.. और कितनो को यह दिवाली जैसे पावन पर्व पे दुःख है दे जाते ।
ज्यादा से ज्यादा लोगो को यह अपना निशाना बनाते.. पर अभी तक हमारी मानवता को नहीं है मिटा यह पाते ॥

रावण बहुत से है यहाँ.. मगर राम भी कम नहीं.. यह भूल जाते ।
कितना भी कुछ कर ले रावण राम की धर्म निति से कभी न वो जीत पाते ॥
आतंक के इस राक्षस को हम अपनी मानवता से ही मिटायेंगे ।
आज नहीं तो कल हम इस दिवाली को खूब धूम धाम से मनाएंगे ॥

यह लो रोकेट और candle kites फिर आसमान में दिखे ।
कितने लोगो के चेहरे पे दुःख और भय नहीं दिखे ॥
लो एक बार फिर है फुलझड़ी है जली कितने बिजली बोम्ब है फुठे ।
बस यही दुआ है मेरी की इस दिवाली लक्ष्मी जी किसी से न रूठे ॥

सबको मेरी और से दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाए ।
सबका भविष्य हो जीवंत, खुशहाल और रौशनीमय ॥
कुल के दीपक ही दीयों की तरह जलते रहे और जगमगाए ।
चाहे दिए की लौ की तरह वो कितना डगमगाए ॥
पर कही भी उनकी रौशनी इस दिए को न आग लगाए ।
आज आप उनको और कल वो आपको सहारा दे और समझाए ॥

Sunday, October 19, 2008

"निम्मो बुआ" (part 5)

सीमा रसोई में आ कर उनके लिए cold drinks और snacks तैयार करने लगी...क्षितिज भी रसोई से सामन ले जा कर उनकी आव-भगत करने लगा...सीमा उनके सामने नही जाना चाहती थी...इसलिए वो क्षितिज से ही काम करवा रही थी...थोड़ा नाश्ते के बाद सीमा उनके लिए खाना तैयार करने लगी....सीमा की जैसे सोचने की शक्ति ही चली गई थी...उसे समझ नही आ रहा था की वो क्या करे..उनको कैसे face करे...क्यों वो उनसे दूर भाग रही थी उसे ख़ुद नही मालूम था..आख़िर सीमा ने कुछ भी ग़लत नही किया था..फिर क्यों वो उनसे नज़र चुरा रही है...पता नही सीमा को क्या बेकार की बातें तंग कर रही थी...उसको यह सोच कर भी डर लग रहा था...की उसकी सास यह सब सुनेगी तो क्या बोलेगी..अभी तक तो सीमा उनकी चहिती बहु है...उनको पता चला तो क्या होगा...????

सीमा यह सब सोच रही थी की उसके कंधे पे किसी ने हाथ रखा...सीमा यह सब सोच कर पहले ही डरी हुई थी..इस बात से वो और डर गई...उसने पीछे मुड कर देखा तो क्षितिज था...सीमा ने एक लम्बी और गहरी साँस ली...."क्या हुआ सीमा..तुम डर क्यों गई"..क्षितिज ने पुछा..."कुछ नही..." सीमा ने जवाब दिया...क्षितिज फिर बोला.."चलो वो लोग तुम्हे बुला रहे है....."...सीमा बोली " मुझे खाना तैयार करना है.."..क्षितिज ने बहुत धीमी आवाज़ में कहा.."क्या हो जाता है तुमको..मैंने तुम्हे कितनी बार बोला है वो एक पुरानी बात है...तुमको समझना चाहिए की तुम कितनी अलग तरह से behave करने लगती हो...आखिर problem क्या है.." सीमा बोली "शितिज मैं ख़ुद नही जानती...यह सब मैं क्यों करती हूँ...बस..मुझे उनके सामने जाना अच्छा नही लगता..i m feeling very uncomfortable..."

क्षितिज "ह्म्म्म्म"...कुछ सोच कर फिर बोला.."देखो सीमा मैंने तुमको इस बारे अपनी राये कभी नही दी...कभी नही कहा की राकेश को माफ़ करो..या उसको सज़ा दो...हमेशा सोचा की तुम इस सबको handle कर लोगी...but अब नही मुझे तुमको बताना होगा की तुम दो नवो पे सवार हो....न तो तुम राकेश को माफ़ करना चाहती हो और न ही तुम उसको कोई सज़ा दे रही हो....देखो सीमा अगर कोई नदी में बीच मझधार में डूब रहा है..तो उसे यह सोच कर की नदी के बहाव में वो कभी न कभी तो नदी के किसी न किसी किनारे पहुँच ही जाएगा अपने आपको इस तरह नदी के बहाव के हवाले नही करना चाहिए.....बल्कि उसे दोनों में एक किनारा जो उसको करीब लगता हो उस तरफ़ जाने की कोशिश करनी चाहिए...या तो इधर या उधर......इस फैसले पे ही उसे अपनी पूरी जान लगानी चाहिए फिर उसे अपने आप रास्ता मिल जाएगा..और वो किसी न किसी किनारे तक जो की उसके बहुत करीब है पहुँच ही जाएगा...बीच मझदार में फसे रहने से तो वो डूब जाएगा...तुमको भी एक किनारा सोचना ही पड़ेगा...तुम पास वाले किनारे तक पहुंचने की सोचो तो सही..फिर देखना तुम्हे उस किनारे तक कैसे पहुँचना है अपने आप पता चल जाएगा...रास्ता अपने आप सामने आएगा सीमा.."

क्षितिज का इतना बोलना था...सीमा में अचानक न जाने कहाँ से एक नई शक्ति की लहर आ गई...अब उसे साफ़ साफ़ नज़र आ रहा था की उसे क्या करना है...उसके चेहरे पे ही अजीबी सा तेज था..एक नया आत्मविश्वास उसके चेहरे से झलक रहा था...

क्षितिज भी उसके चेहरे पे यह सब पढ़ चुका था....और समझ चुका था की सीमा ने कोई बड़ा फ़ैसला तो ज़रूर ले लिया है...इसलिए वो चुप चाप रसोई से चला गया....

to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.

Wednesday, October 15, 2008

Women

Women have an extra edge of "WO" over the MEN
As a woman I am always proud to be one of them
Women like pinks, Men like Blue
Lets now know the Power of the "W"

Woman as a mother of the man
In this world of man she is the first who "Welcomes" the man
she nourish him, she cherish him,
she is always there for him
she feed him, she lead him,
she actaully a need for him

Woman as a sister of the man
Being grown up with him she is always a "Well Wisher" of the man
she is a competitive,she is supportive,
sometimes she fight with him without any motive
she sometimes talk like a friend,she is sometimes quite at her end,
sometimes she show some path like a guide

Woman as a Wife of the man
In the whole life of man she is true "Walking companion" of the man
she is tender, she is lover,
she is actually sacrifice for him every part of her
she understand him,she cares him,
she is actually inside him as she share him

Woman as a Daughter of the man
Holding her in his hand,she is a "Wish" of the man
she is a blossom,she is a awesome,
whenever he asked her she says he is handsome
she is ready to flew, where to go no clue,
she is for him just like dream come true

Women in these four different role in the life of the man
She done nothing but actually just give back to the man
the affection,care,love,passion,gentleness and the guardian
all which man gave to the women he all gets the same in return

Friday, October 10, 2008

How lonely I am here...

Me here you where, just here and there...
I hope you miss me there, I miss you alot here...
just going here and there, I will be on time there...

when I am feel lonely, you are always near...
when I thought you lovely, I just like you my dear...
when I dont found you with me, I feel i m in fear...
when I met you I feel that my life is on fivth gear...

you are always with me, that for sure....
I want to tell you, this feeling is so pure...
when I am fed of all the things here, I know only you can cure...
where ever I will go, you know and I know, I am always be your

wow I have written a poem, right now right here....
Its lovely that you are not here,but can read me direct from there...
just writing message here, I am sound like poetess here...
I think you got me right there, how lonely I am here...

Monday, October 6, 2008

"निम्मो बुआ" (part 4)

सुबह के 9 बज चुके थे....आज सीमा को देर हो गई थी नाश्ता तैयार करने में...वो देर से जो उठी थी....क्षितिज ने भी उसे उठाया नही था.... और वो jogging के लिए चला गया था.. क्षितिज जानता था.. वो रात को देर से सोयी थी.. इसलिए उसने उसे उठाया नही था....क्षितिज jogging से आने के बाद सीमा की रसोई में मदद करने लगा...क्षितिज बहुत ही अच्छा पति था... सीमा के मन में कब क्या चल रहा होता है वो उसे सीमा के बिना कहे ही समझ आ जाता था..... इसीलिए तो जब भी सीमा को उसकी मदद की ज़रूरत महसूस ही होती तभी क्षितिज उसके सामने होता..और मदद करने को तत्पर रहता....

सबका नाश्ता होने बाद... सीमा और क्षितिज नाश्ता करने लगे... क्षितिज ने सीमा को अपने एक project के बारे में बताया.. और उसकी advice भी मांगी.. सीमा को पता था क्षितिज उसका ध्यान उन बातों से दूर करने के लिए यह सब कर रहा है... सीमा ने उसे दो तीन बातें बताई...और कुछ advice भी दी... फिर शितिज ने अपने ऑफिस के कुछ किस्से भी सुनाये....

11 बजे तक सीमा का सब काम ख़तम हो गया था...सीमा drawing room में आके बैठ गई....क्षितिज भी पास बैठ कर laptop पे अपना कुछ काम कर रहा था...सीमा फिर से सोचने लगी सीमा का स्कूल और कॉलेज सब co-ed में हुआ था..राकेश हमेशा से boys स्कूल में पड़ा था वो लड़कियों के साथ बात नही कर पाता था... काफ़ी चुप चाप रहता था लड़कियों के बीच..

उस दिन भी वो चुप ही था...चुप चाप TV देख रहा था..सीमा भी TV के channels बदल बदल कर songs सुन रही थी....साथ ही साथ गा भी रही थी...उसने राकेश की और देखा...फिर ना जाने राकेश को क्या हुआ..वो सीमा की और जल्दी से लपका...उसने सीमा के दोनों गालो पे अपने दोनों हाथ रख दिए और अपना मुह उसके मुह के बिल्कुल सामने ले आया..सीमा कुछ समझ पाती की यह क्या कर रहा था..इतने में राकेश ने उसके होठो को अपने होठो से मिलाने की कोशिश की...उस वक्त सीमा बहुत कमज़ोर महसूस कर रही थी मगर फिर अचानक ना जाने उसमें अजीब सी शक्ति आ गई...उसने TV remote जो की उसी के हाथो में था ज़ोर की राकेश के मुह पे दे मारा....राकेश भी झून्झला उठा..सीमा ने उसको थोड़ा और ज़ोर की remote मारा... फिर अपने दोनों हाथो से उसके गालो में दो चार चांटे लगा दिए...राकेश और सीमा कुछ देर के लिए शांत हो गए.. फिर राकेश बोला..."i m sorry...सीमा...मुझे पता नही क्या हो गया था...बहन..i m sorry.."

सीमा की आँखों से ज़ोर ज़ोर से आंसू निकल रहे थे..वो समझ नही पा रही थी यह क्या हुआ और क्यूँ हुआ....शायद जो हुआ था उसका मन और दिमाग दोनों ही उसे स्वीकार नही कर रहे थे.....वो राकेश की और देखने लगी...कुछ न कह कर भी उसकी आँखें राकेश से यह सवाल ज़रूर कर रही थी की यह क्या था...क्यूँ किया उसने ऐसा..वो तो उसे हमेशा छोटा भाई समझती थी..वो ऐसा कैसे कर सकता है अपनी ही बहन के साथ...और sorry कहने से क्या सब कुछ ठीक हो जाएगा....उसके मुह से sorry सुन कर सीमा को और गुस्सा आ रहा था...उसे घृणा सी हो रही थी उस से...

राकेश की आँखों में भी आंसूओं और डर दोनों साफ़ साफ़ नज़र आ रहे थे सीमा को...राकेश बोला.."बहन किसी को मत बताना..जो हुआ उसे भूल जाओ...मुझे भी नही पता की यह कैसे हुआ..शायद पढ़ाई का pressure था या कुछ और..मुझे नही मालूम...sorry...तुम चाहो तो मुझे खूब मार लो..पीट लो...पर please यह बात किसी को नही बताना..मैं अब भी तुम्हे उसी तरह बहन मानता हूँ...तुम भी मुझे भाई ही मानना..." राकेश की जैसे हवायिआं ही उड़ गई थी.

सीमा को पता नही क्यों उसकी किसी भी बात पर विश्वास नही हो रहा था.....वो उसे और ज्यादा ज़ोर की मारना पीटना चाहती थी.....सीमा चुप चाप वहां से उठ कर रसोई में चली गई...रसोई में ज़ोर ज़ोर से रोने लगी...तभी उसकी माँ घर आ गई...सीमा ने जल्दी से आंसू पूछे...सीमा की माँ बोली.."सीमा मैं ice cream लायी हूँ खा लेना...अरे तुमने अभी कुछ भी नही किया..बोलके तो गई थी बाकी का काम कर लेना..तुम भी न सीमा...हे भगवान् TV के आगे कुछ नही करती यह लड़की.."....सीमा चुप चाप काम करने लगी....

सीमा की माँ राकेश को ice-cream देने चली गई..और इधर सीमा सोचने लगी... "की जो हुआ वो उसे माँ को बताना चाहिए की नही...सोचते सोचते सीमा न जाने कहा तक पहुच गई...फिर उसको ध्यान आया की राकेश की करतूत न बता कर शायद सीमा राकेश का होसला बड़ा रही है...राकेश तो उसके चाचा के यहाँ भी आता जाता है और वहां भी उसकी दो छोटी बहने है....सीमा को उनकी चिंता होने लगी..क्या पता यह सब उनके साथ भी...नही नही...मुझे माँ को बताना चाहिए..और कल नही अभी इसी वक्त इस राकेश के सामने ही...ताकि राकेश का सच सामने आए..."

सीमा सब काम छोड़ कर माँ और राकेश के पास गई...वो राकेश को घूरने लगी...सीमा की माँ ने कहा.."क्या हुआ..." सीमा ज़ोर ज़ोर से रोने लगी...उसकी माँ ने फिर पुछा.."क्या हुआ..रो क्यों रही हो.."....सीमा ज़ोर से चिल्लाई.."इसी से पूछो इसने क्या किया है..."..राकेश सर झुकाए बैठा रहा...माँ भी परेशान हो गई....और राकेश की और देखने लगी...जब काफ़ी देर तक राकेश न नही बताया तो ..सीमा ने रोते रोते माँ को बता दिया....राकेश को कहा.."मैं नही बताती तो तुम्हारी हिम्मत और बढ़ जाती और तुम मेरे साथ या किसी और के साथ फिर ऐसा कुछ करते..."....राकेश सीमा की माँ के सामने गिडगिडाने लगा..."मामी मुझे माफ़ कर दो...मुझे पता नही क्या हो गया था.."

सीमा की माँ भी सदमे में थी..कुछ बोल नही पा रही थी...बस इतना ही बोला.."अगर तेरे मामा यहाँ होते तो तुझे जेल की हवा लगवा चुके होते..."..सीमा बोली.."माँ इसको बोलो यह अभी के अभी यहाँ से चला जाए और फिर यहाँ कभी न आए..."...सीमा की माँ ने राकेश को बोला "मुझे पता नही क्या करना चाहिए...बस अभी काफ़ी रात हो चुकी है इसलिए तुम जा कर सो जाओ...और सुबह सुबह ही यहाँ से चले जाना..."...राकेश चुप चाप चला गया....सीमा की माँ ने सीमा को कहा "मेरा मन कर रहा है इसको घर से बहार निकल दू...मगर आज न तेरे पापा यहाँ है न तेरे भाई.."

अगले दिन सुबह सुबह ही राकेश चला गया....रात भर सीमा को डर लगता रहा..वो सोचती रही..सो नही पायी थी वो ठीक से....दोपहर को उसके पापा आ गए....उसके लिए gift ले कर आए थे..सीमा नए कपड़े पहन रही थी...तभी उसकी माँ ने उसके पापा को सब कुछ बताया...फिर सीमा के पापा ने उसे उसका gift दिया और बोला सब भूल जाओ...बस आगे से उनसे हमारा कोई रिश्ता नही है...

धीरे धीरे यह बात सब रिश्तेदारों के यहाँ पहुच गई...सीमा के पापा ने फ़ैसला कर लिया था..की अब उनका रिश्ता वैसा नही रहेगा...सीमा जानती थी पापा सबके सामने नही बोल पा रहे है..मगर उनको बहुत गुस्सा आ रहा है...निम्मो बुआ कई बार बात करने सीमा के घर आई...शायद उनको इस सब पर यकीन नहीं था...मगर जब माँ ने उनको बताया की राकेश ने ख़ुद अपने आप यह बात कबूली थी उनके सामने..तब निम्मो बुआ को मानना पड़ा...

सीमा के भाई सूरज जब college tour से घर वापस लौट के आया तो सीमा ने उसको ख़ुद दो चार दिन बाद यह बात बताई.....सूरज को भी बहुत गुस्सा आया.."हम लोग उनको कितना भाई भाई करते है..और उनके दिलो में ऐसा कुछ है...कितने काले दिल के है यह लोग..अपनी कोई अपनी बहन नही है..तो किसी की भी बहन की कोई इज्ज़त नही..."...सीमा बोली.."आगे से उनसे हमारा कोई वास्ता नही..बस यही एक सज़ा है....उनके लिए...".सीमा को उस वक्त भी बहुत गुस्सा आ रहा था...

फिर एक दिन रमेश सीमा के घर आया...तब सूरज ने उस से साफ साफ़ कह दिया.."अब तुम हमसे पहले की तरह रिश्ते की उम्मीद मत रखो..हम यह सब सहन नही करने वाले..उस दिन पापा और हम नही थे इसलिए वो जेल जाने से बच गया.." रमेश कुछ बोल नही पा रहा था...चुप चाप सुनता रहा..

अब भी अक्सर रमेश सीमा के घर आता..मगर यहाँ उस से कोई ठीक से बात नही करता था...फ़ोन पे बातें तो पहले ही बंद हो गई थी...किसी के यहाँ भी किसी की खुशियों में या किसी भी occassion पर कहीं सभी रिश्तेदार मिलते तो..निम्मो बुआ के परिवार से सीमा का परिवार कोई भी बात नही करता था...जहाँ तक हो सके निम्मो बुआ के परिवार से आमना सामना न हो इस बात का ख्याल हमेशा सीमा का परिवार रखता था....राकेश का तो कहीं आना जाना बंद हो ही गया था...अब वो बस आपने घर में ही रहता था....शायद निम्मो बुआ ने ही उसे कहीं जाने को मन किया हुआ था..या वो ख़ुद ही कहीं आता जाता नही था....उसे भी शायद पता था की जो उसने किया बहुत ग़लत किया....

सीमा की शादी,रमेश,राकेश,सूरज और नील की शादी.. सभी की शादियों में भी बस सब एक दुसरे को चुप चाप देखते रहते..आंखों में कई सवाल लिए..मगर होठो को तो जैसे किसी ने सील दिया हो...सीमा तो उनके किसी भी function में नही गई थी.....शादी के बाद तो वैसे भी नही...क्षितिज को भी उसने सब कुछ बता दिया था की उनका और सीमा की परिवार में बहुत सारी problems है...और सीमा के साथ जो हुआ वो भी क्षितिज को पता था...सीमा ने क्षितिज को सब बताया था....सीमा अंदर ही अंदर कभी कभी सोचती थी...की राकेश की गलती की सज़ा क्या उसके पुरे परिवार को देना ठीक है...क्या निम्मो बुआ, रमेश और राजेश का कोई कसूर है जो उनको सज़ा मिल रही है....क्या राकेश की गलती माफ़ी के लायक थी....क्या उसे बाकिओं को माफ़ कर देना चाहिए...

ting...tong..ting...tong..घर की घंटी की आवाज़ ने सीमा को उसकी सोच की गहराईओं से बाहर निकाला....करीब 1 बज चुका था...क्षितिज ने दरवाजा खोला.."नमस्ते...आईएं ना..." क्षितिज ने कहा। सीमा ने देखा निम्मो बुआ ही थी..बहुत ही थकी हुई और बूढी लग रही थी...साथ में रमेश भी था....सीमा ने भी दोनों हाथ जोड़े और सर हिलाया...निम्मो बुआ ने भी सर हिला कर और मुस्कुरा कर जवाब दिया...सीमा से वहां खड़ा नही हुआ जा रहा था...इसलिए वो कुछ मिनटों बाद ही रसोई में चली गई...

to be continue....

Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.