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Friday, April 17, 2009

मसककली (part 6) (last part)

शिल्पा के बयान के बाद सभी सकते में थे... क्षितिज और सीमा ने शिल्पा के हस्ताक्षर के बाद अपने हस्ताक्षर किए। इंस्पेक्टर बयान ले कर चला गया....शिल्पा को सीमा ने संभाला....उसे बहुत सारा प्यार किया।


करीब एक घंटे बाद शिल्पा को ले कर वो लोग घर को चल दिए.....माँ ने शिल्पा को रोते रोते गले से लगाया.... पुचकारा....प्यार किया..और अपनी किस्मत को कोसा...और शाम को इंस्पेक्टर ने बताया की डॉक्टरों क मुताबिक शिल्पा के इनकार से अनिल एक मानसिक रोगी बन गया था। प्यार को पागलपन बना चुका था अनिल... लेकिन जब उसे लगा की अब शिल्पा कभी भी उसके साथ नही रह पायेगी..उसका सपना जो उसने शिल्पा के प्यार में देखा था की वो और शिल्पा एक साथ प्यार से रहेंगे....टूटता नज़र आया तो पहले उसने अपना गुस्सा टेलिविज़न पे निकला फिर वो suicidal case हो गया और उसने आत्महत्या कर ली... तो अनिल को किसी ने नही मारा था..उसने ख़ुद अपनी जान दी थी... इस तरह पुलिस ने case close कर दिया...यहाँ शिल्पा समझ क बनाये बेकार और बेबुनियाद नजरियों से लगने की कोशिश करने लगी.....मगर वो अपने अंदर छिपी आत्महीनता, डर और अपने लिए ही घृणा भावः को नही निकल पा रही थी.... सीमा ने बहुत कोशिश की उसे समझाने की उसे सहारा देने की.....मगर सीमा को भी काम पे जाना होता था..और फिर शिल्पा और माँ ही घर में होते थे.....सीमा माँ को समझा कर जाती थी...फिर भी माँ अपने दिल से मजबूर हो कर फिर वही बातें शुरू कर देती थी....शिल्पा ने कॉलेज जाना छोड़ दिया था....अब उसे किसी चीज़ में दिलचस्पी नही होती थी... माँ उसी के सामने उसकी बरबाद हुई ज़िन्दगी का रोना रोती रहती थी.... दो तीन बार शिल्पा भी suicide करने की कोशिश कर चुकी थी....क्षितिज और सीमा को भी समझ नही आ रहा था की क्या करे.....


नारी सशक्तिकरण संस्थान और नारी उत्थान संस्थान से सीमा को एक psycologist (मानसिक चिकित्सक) मिस्टर अजय का पता चला और उनके कहने पर ही सीमा ने शिल्पा को उन्ही के पास रहने क लिए माँ और क्षितिज को मनाया.... माँ तो बिल्कुल भी राज़ी नही थी..पर क्षितिज के कहने पर उनको भी मानना पड़ा....माँ इस बात से सीमा से बहुत नाराज़ भी रहने लगी थी...


शिल्पा भी जाने को राज़ी नही थी...पर सबकी मर्ज़ी के सामने उसकी एक न चली....वहां शिल्पा ने अपने जैसे कई केस देखे...और उनकी सेवा भावः से सेवा करने लगी...उसे वहां पता चला की न जाने कितनी लड़कियों को आज भी कितनी बेदर्दी से और बे वजह शिकार बनाया जाता है.....न सिर्फ़ बलात्कार बल्कि दहेज़, पति की मार से बेहाल, बेटे और बहु की बेरुखी, बेटी और दामाद के धोखे से लुटे जाने वाली, सास ससुर की साजिशों से शिकार और ओफ्फिसों में लड़कियों की मजबूरी का फ़ायदा उठाने वाले अफसरों की मासूम शिकार की कहानियों को सुन कर देख कर बहुत दुःख होता था...उनके दुःख को देख कर उसे अपना दुःख कम लगता था....


धीरे धीरे शिल्पा में आत्मविश्वास और सेवा भावना आ गई....और अब वो घर नही जाना चाहती थी..बल्कि डॉक्टर अजय जी के साथ मिल कर सभी क लिए कुछ करना चाहती थी...अजय जी ने उसे बिल्कुल ठीक कर दिया था.. इसलिए सीमा शिल्पा को पूरे एक साल बाद घर ले जाने क लिए आई....मगर जब सीमा ने शिल्पा का फ़ैसला सुना तो उसने भी उसे इसकी इजाज़त दे दी..क्यूंकि आज फिर शिल्पा की बातों में सीमा को वही पुरानी मसककली की झलक दिखायी दी। मगर सीमा ने शिल्पा से एक वादा ज़रूर लिया की वो अपनी पढाई फिर से शुरू करे..डाक्टरी नही तो क्या हुआ....वो कोई और कोर्स कर सकती है। शिल्पा भी मान गई और पत्राचार से उसने पढाई शुरू कर दी।


अब शिल्पा girls hostel में रह कर पढाई के साथ साथ सेवा संस्थान, नारी सशक्तिकरण संस्थान, नारी उत्थान संस्थान और अजय जी के साथ भी काम करती। पढाई पूरी करने क बाद उसने छोटी सी नौकरी भी कर ली...सीमा और क्षितिज अक्सर उस से मिलने आते थे....उसे घर भी बुलाते थे..पर शिल्पा ही नही जाती थी...बस सीमा और क्षितिज के बेटे पीयूष के होने पर एक दो बार शिल्पा गई भी...माँ शिल्पा को देख अब बहुत खुश थी...अब तो वो सीमा के ही गुणगान गाने लगी थी..क्यूंकि जो कुछ हुआ था वो सीमा के शिल्पा को अजय जी के पास भेजने वाले फैसले से ही हुआ था....


फिर सब ठीक ठाक चलने लगा....पर अब भी शिल्पा किसी भी लड़के पर वही भरोसा नही कर पाती थी.....कई बार लड़को ने उस से मेलजोल बढ़ाने की कोशिश भी की...मगर शिल्पा ही अपने आपको बंधा बंधा सा रखती थी... वो कभी किसी भी लड़के से उतना नही खुल पाती थी।

शिल्पा जैसे ही अपने हॉस्टल वापस पहुची उसकी नज़र उसके बंद कमरे के दरवाजे पे रखी देर सारी mails(पत्र) पे गई। उसने उन्हें उठाया और अंदर आ गई। थकान उतरने के लिए शिल्पा ने shower लिया। फिर अपना सामान खोलने लगी...unpacking करते करते वो सोचने लगी। "जिया की शादी अच्छी रही...उसे तो खुश होना चाहिए। जिया के लिए। उसे अनमोल मिल गया जो उस से इतना प्यार करता है और जिया भी उसी से प्यार करती है। फिर न जाने क्यूँ शिल्पा खुश नही थी।" सोचते सोचते उसकी नज़र फिर एक बार table पे रखे उसके mails पे गई। बेमन से उसने एक एक करके सारे mails पढ़े। फिर जल्द ही उसने दो चार फ़ोन किए। और न चाहते हुए भी उसने अपना सामान फिर से बाधना शुरू कर दिया।

अगले दिन airport से बाहर आते ही उसने वही पुरानी जानी पहचानी हवाओं को महसूस किया और एक लम्बी गहरी साँस ली। अपने शहर से एक बार फिर मिल कर उसे अच्छा लगा। काफ़ी कुछ बदल गया है और काफ़ी कुछ अभी भी वैसा का वैसा है जैसे पहले था। शिल्पा बहुत दिनों बाद अपने शहर आई है। पिछली बार वो पिहू के जन्म के समय अपने शहर आई थी। अब तो पिहू भी बड़ी हो गई होगी। खूब भइया भाभी को भागती होगी। खूब माँ को सताती होगी और पियूष भी 9-10 साल का हो गया होगा। पता नही पियूष को उसकी शिल्पा बुआ याद भी होगी की नही। एक आदमी उसके नाम का बोर्ड लिए खड़ा था। अपने नाम का बोर्ड पढ़ कर वो उसी ओर चल दी। फिर शिल्पा उसके साथ उसकी गाड़ी में बैठ गई। और गाड़ी होटल की ओर चलने लगी।

होटल में भी उसे सारे दिन घर की याद आती रही। माँ, क्षितिज भइया और सीमा भाभी। घर जाने का उसका मन तो बहुत हो रहा था। पर पहले वो जिस काम के लिए आई है वो काम निबटाना चाहती थी।

अगले दिन वो उसी गाड़ी में एक बड़े से ऑफिस में पहुची। ऑफिस में आते ही उसने receptionist से कहा॥ "EXCUSE me... I am shailja...I am looking for Mr Devesh...He must be expecting me here..."

"Oh yeah...Mr। Devesh will be here at any moment. please make your self comfortable at our waiting room. you are shailja...am I right?..." receptionist ने waiting room की तरफ़ इशारा किया..."yeah...I am shailja..thank you"

शिल्पा ने जवाब दिया और waiting room की तरफ़ बढ गई। कमरे में बैठे हुए उसने दिवार पर लगी घड़ी को देखा जो 11 बज कर 25 मिनट टाइम दिखा रही थी।

"welcome after the break आप सुन रहे है देव को आपके अपने favorite show "ज़िन्दगी: एक कहानी" पे और समय हुआ 11 बज कर 40 मिनट...जी हाँ समय है हमारे मेहमान का। हमेशा की तरह आज भी हमारे मेहमान कुछ खास है...उनके साथ भी ज़िन्दगी ने कुछ ऐसे खेल खेले है की वो न तो जी सकती थी न मर सकती थी। उन्होंने जीने मरने के इस खेल में जीना ही बेहतर समझा और आज वो जिस तरह की ज़िन्दगी जी रही है वो दुसरो के लिए एक मिसाल है चलिए उन्ही से जानते है कहानी...." "नमस्कार शैलजा जी। आपका हमारे इस प्रोग्राम में स्वागत है" ..... "नमस्कार देव....मुझे यहाँ बुलाने का शुक्रिया....पहले तो मैं आपको और श्रोताओं को ये बताना चाहूंगी की मेरा नाम शैलजा नही शिल्पा है। शैलजा नाम तो मुझे मीडिया ने दिया था उस दर्दनाक हादसे के बाद...शायद मेरी बदनामी के डर से। मगर अब मुझे अपनी पहचान बताने में कोई जिज़क नही है..हाँ शायद उस वक्त मैं भी नही चाहती थी की मेरा नाम इस तरह से अखबारों में आए। पर अब मुझे कोई डर नही है..बदनामी का भी नही॥" "बिल्कुल ठीक कहा आपने शिल्पा जी....मुझे पूरा यकीन है अब श्रोताओं को आपकी शख्शियत, आपके आत्मविश्वास और आपके व्यक्तित्व की एक झलक मिल गई होगी....हम उस दर्दनाक हादसे की बातें आपसे विस्तार से करना चाहेंगे।"
फिर धीरे धीरे शिल्पा ने सभी कुछ बता दिया... एक एक सवाल का जवाब उसने बे जिज़क और बेतुकी से दिया।

करीब आधे घंटे बाद "दोस्तों देखा आपने कई बार ज़िन्दगी ऐसे मोड़ पे लाकर गधा कर देती है की इंसान सोचता रह जाता की उसके साथ ये क्या हुआ, क्यूँ हुआ और यह सब उसी के साथ क्यूँ हुआ....उसे अपनी आगे की ज़िन्दगी अंधेरे में नज़र आती है...जहाँ उसका साथ देने वाला कोई नही होता....मगर शिल्पा जी...जिन्हें हम अभी तक शैलजा जी के नाम से अखबारों में पढ़ते आए है...और जिनके बारे में टेलिविज़न में कई talk shows में सुनते आए है...लें आज हम उन्ही से उन्ही की जुबानी उनकी ज़िन्दगी की कहानी सुन रहे है...पहल बार वो सामने आई है...यह सफर उनके लिए भी आसान नही था....यकीन मानिये दोस्तों उन्होंने भी तकलीफे झेली है उन्हें भी डर लगा है..उन्हें भी भविष्य को ले कर कई बार चितांए हुई है....मगर वो अकेली नही थी दोस्तों उनके साथ था उनका परिवार...पुरा परिवार जिन्होंने उनका पुरा साथ दिया॥ वैसे कहा तो यूँ जाता है की एक सफल आदमी के पीछे एक सफल औरत का हाथ होता है। पर यहाँ मैं कहूँगा की इन सफल socialist के पीछे, इनकी इतनी दिलेरी और इतने सारे आत्म विश्वास के पीछे है इन्ही की परिवार की दो सफल औरतो का हाथ..और उनका साथ..."

"दो नही तीन औरते कहिंये...माँ और भाभी के इलावा एक और है जिनकी वजह से मैं आज यहाँ आ पायी हूँ वो है मेरी दोस्त जिया। जी हाँ उसी ने मुझे यहाँ आने से पहले फ़ोन पे इतनी हिम्मत दी की मैं अपना यह मुश्किल फ़ैसला ले सकू.........यकीन मानिये मैं कब से असमंजस में थी की क्या मैं अपनी आगे की ज़िन्दगी बिना किसी जीवन साथी के जी पाऊँगी...तो एक जिया ही थी जिसने मुझे मेरे जीवन का सार और मकसद याद कराया.....वो भी मेरे साथ ही समाज को सुधारने का काम कर रही है.....उस से बात कर के मैंने मेरी बाकी की दो मार्ग दर्शक माँ और भाभी से बात की......आज उन तीनो की वजह से ही मैं ऐसी हूँ जैसा आप अपने श्रोताओं को मेरा दर्पण दिखा रहे है...... आज की एक ससक्त महिला का दर्पण....एक रूप...... उन्ही की वजह से मैं आप सब लोगो से आँख मिला सकी हूँ यहाँ आ सकी हूँ ...आपके सवालो का जवाब दे सकी हूँ..."

"शिल्पा जी हम आपको और आपकी इन तीन supportors जो तीन pillars की तरह आप का साथ देती आई है शुक्रिया अदा करते है....आप जैसी महिलाए.....ही देश में सभी महिलाओं के लिए आदर्श नारी है.....चलते चलते एक आखिरी सवाल...अब आगे क्या?....अब आप अपने आने वाली ज़िन्दगी को कैसे देखती है..क्या आपको एक साथी की कमी महसूस नही होती...आपका मन नही करता की आपका भी कोई बहुत करीब हो..आपका भी अपना परिवार हो..."

"देव जी यह आपका पर्सनल सवाल तो नही है...हिहिहिहिही...क्यूंकि अक्सर लड़के लोग मुझसे ऐसे सवाल पूछ बैठते है...जी हाँ कई बार अकेलापन महसूस तो होता है पर फिर कुछ ही देर बाद वो लम्हा चला भी जाता है....ऐसा है देव जी यूह ही मान लिया है मैंने की मेरा अकेलापन ही सबसे बढ़िया साथी है मेरा...अब देखिये ऐसे कई रिश्ते होते है जहाँ बहुत प्यार होने पर भी कई बार ऐसे लम्हे या ऐसे दौर आते है जहाँ उस रिश्ते से दूर भाग जाने को मन करता है..पर हम प्यार की वजह से दूर हो नही पाते..बिल्कुल वैसे ही मुझे कभी कभी अपने अकेलेपन से दूर भाग जाने को मन करता है...पर मेरा दृढ़ फ़ैसला "शादी न करने का" दृढ़ ही रहता है और मुझ फिर अकेलेपन की और जाने को कहता है.....मेरा फ़ैसला बिल्कुल सही है...मुझे मेरे फैसले को फिर से सोचने की ज़रूरत नही है...जैसे अभी तक ज़िन्दगी कट गई है ऐसे ही आगे भी कट जायेगी....आज मेरी तीनो मार्गदर्शक मुझ पर नाज़ करेगी...मेरे फैसले को सहर्ष स्वीकार करेंगी मुझे पुरा यकीन है...."

"जी बिल्कुल सिर्फ़ वो ही नही हम भी आपके इस फैसले को सहर्ष स्वीकारते है...और अंत में जाते जाते यही कहेंगे॥ आप सच में एक मसककली है। जो अपने फैसले आपने आप अपनी मर्ज़ी से लेती है। इसी के साथ हमारा वक्त ख़त्म होने को है। शिल्पा जी यहाँ हमारे शो में आने का आपका बहुत बहुत शुक्रिया और मुझे भी साथ साथ इजाज़त दीजिये दोस्तों अलविदा...."



THE END

Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.

मसककली (part 5)

शिल्पा ने जो बताया उसे सुन कर सभी दंग रह गए थे। अपने भइया की शादी के दिन शिल्पा ने अपने सभी दोस्तों को बुलाया था। अनिल को भी उसने निमंत्रित किया था। अनिल बार बार उसे फ़ोन कर के बोल रहा था की वो थोडी देर में पहुँच ही रहा है। शादी की सभी रस्में, रीती-रिवाज़ ख़त्म होते चले गए। शिल्पा भी शादी के हो हल्ला में अनिल को भूल गई। पर विदाई के समय उसे अनिल का ना आना याद आया। उसे अनिल पे बहुत गुस्सा आया। उसने अनिल को फ़ोन किया तो अनिल ने बताया की उसका एक दोस्त का accident हो गया है इसलिए वो आ नही पाया। मगर वो अभी शिल्पा से मिलना चाहता है। उसने कहा उसे थोड़े पैसो की भी ज़रूरत है उसके दोस्त के इलाज़ के लिए। शिल्पा ने एक दोस्त की मदद करने के इरादे से उसे बोला वो उस से आ कर पैसे ले जाए। पूरे तो नही पर जितने उसके पास है वो सारे अनिल को दे देगी। अनिल ने कहा की वो इतनी दूर अपने दोस्त को छोड़ कर नही आ सकता। शिल्पा को ही आना पड़ेगा। अनिल ने उसे अपने दोस्त के घर के पास ही बुलाया। शिल्पा ने फटाफट पैसे लिए और अपनी एक दोस्त को बताया की वो थोडी देर में वापस आ जायेगी अगर कोई पूछे तो बता देना।

ऑटो कर शिल्पा बताई जगह पर पहुँच के अनिल का इंतज़ार करने लगी। अनिल को फ़ोन करके बता दिया वो पहुँच गई है। अनिल ने थोडी देर बाद फ़ोन करके उसे बोला की वो वहां आ नही पायेगा क्यूंकि बाकी लोग जिन्होंने उसे पैसे देने है वो लोग उसके दोस्त के घर उसे पैसे देने आयेंगे। अनिल ने शिल्पा को भी वहीँ आने को कहा। शिल्पा ने फिर ऑटो लिया और बताये घर पे पहुँच गई। पर वहां उस घर में अनिल के इलावा कोई नही था। अनिल के मुह से शिल्पा को शराब की बू आई तो उसने अनिल से पुछा। अनिल ने बताया उसका दोस्त सहर छोड़ कर कहीं जा रहा था तो उसने पार्टी दी थी वही थोडी बहुत अनिल ने पी ली। मगर वही दोस्त थोडी दूर ही निकला था की उसका accident हो गया।

उसने शिल्पा को बैठने को कहा। मगर शिल्पा ने मना कर दिया। अनिल ने शिल्पा को शुक्रिया कहा और कहा की आज उसे पता चल गया की शिल्पा उसे अपना साचा दोस्त मानती है। तब तक अनिल का व्यव्हार शिल्पा को ठीक लगा। पर फिर अचानक अनिल ने उसे बताया की वो उसे पसंद करता है। वो शिल्पा को अपना बनाना चाहता है। वो उसे प्यार करता है। शिल्पा को पहले कुछ देर तक तो कुछ समझ नही आया। पर फिर उसने अनिल को बताया की उसकी ज़िन्दगी में अभी इन सभी के लिए टाइम नही है। वो अपने पापा का सपना पूरा करना चाहती है। उसे मन लगा के पढ़ना है और खूब मह्न्नत कर अच्छे नम्बरों से डॉक्टर की डिग्री ले कर डॉक्टर बनना है। शिल्पा ने उसे मना कर दिया था।

अनिल थोड़ा सा दुखी तो था। पर थोडी ही देर में वो ठीक हो गया था। और बोला "ठीक है मगर मैं तुम्हे हमेशा प्यार करता रहूँगा। बस ये याद रखना तुम्हे पाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। मेरे दोस्त तो मुझे तुम्हारा दीवाना भी कहते है।"

शिल्पा को समझ नही आया की वो क्या कहे। शिल्पा अनिल को सिर्फ़ अपना दोस्त ही मानती थी। अनिल अच्छा लड़का था। मगर शिल्पा अभी इस समय प्यार के बारे में सोचना नही चाहती थी। उसने सोचा की क्या पता आगे आने वाले वक्त में कभी उसे अनिल से प्यार हो जाए। पता नही शायद...मगर अभी वो अनिल के बारें में ऐसा कुछ नही सोचती थी।

"चलो तुम्हे कहीं रस्ते में छोड़ देता हूँ मैं भी हॉस्पिटल जाना रहा हूँ दोस्त को देखने।" अनिल के बोलने पर शिल्पा उसके साथ चलने के लिए तयार हो गई। अनिल ने बताया की उसने एक कार किराये पे ली हुई है। शिल्पा जैसे ही बाहर जाने के लिए मुडी। अनिल ने झट से उसके आगे आ कर घर का दरवाजा ज़ोर से बंद कर दिया। शिल्पा को कुछ समझ नही आ रहा था की अनिल ने ऐसा क्यूँ किया। अनिल ने उस पर झट से हमला कर दिया। उसने शिल्पा को ज़ोर से पकड़ते हुए कहा "शिल्पा तुम मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती हो....क्या मैं तुम्हे पसंद नही .... पसंद नही तो क्यों तुम मेरे एक बार बुलाने पे अपने भइया की शादी छोड़ कर यहाँ चली आई। क्यूँ तुम मेरे साथ घूमती थी फिरती थी। बात किया करती थी। मैंने आज तक किसी लड़की से तरह बात नही की जिस तरह से मैं तुमसे बात करता था। तुम भी तो मुझसे इतने अच्छे से सभी बातें कर लेती हो। मेरे सभी दोस्त मुझे बोलते है की तुम भी मुझे पसंद करती हो। मुझसे प्यार करती हो। मैंने देखा है शिल्पा दुनिया की सभी लड़कियां एक सी ही होती है। वो लड़को के दिल के साथ खेलती है। पहले तो उनके साथ घूमती फिरती है हँस-हँस के बातें करती हो उसकी पसंद-नापसंद का ख्याल रखती हो....फिर जब उस लड़के को उस लड़की से प्यार हो जाता है और वो अपने घुटने टेक देता है॥प्यार का इज़हार करता है तो तुम लड़कियां बड़ी आसानी से बोल देती हो की यह सब दोस्ती है। प्यार व्यार नही.....बेचारा लड़का खड़े खड़े अपनी दिल को टूटते देखता रहता है....अपनी दुनिया में ही घुटता रहता है...."

अनिल शिल्पा को बोलने का मौका ही नही दे रहा था..बस बोले जाना रहा था...और उसकी तरफ़ बढता जाना रहा था। "मैंने नही सोचा था तुम भी बाकी सारी लड़कियों की तरह निकलोगी। सभी लड़कियां मुझसे बात करने से कतराती थी। उनको मेरी बातें boring लगती थी। पर तुम ही थी जो मुझे समझती थी। इसलिए मैंने तुम्हे अपने दोस्त के एक्सीडेंट का झूठा बहाना बना कर तुम्हे यहाँ बुलाया। ताकि मैं तुम्हे अपने प्यार के बारे में बता सकूं। मुझे लगा तुम मुझे मेरे प्यार को समझोगी। पर तुम भी यह दोस्ती का झूठा राग अलापने लगी। मैं तुम्हे ऐसे नही जाने दूंगा...तुम्हे मैं प्यार करता हूँ और तुम्हे भी मुझी से प्यार करना होगा। तुम मेरी नही हुई तो तुम किसी और की भी नही हो पाओगी। आज मैं तुम्हे इतना प्यार करूँगा की तुम्हे भी मुझसे प्यार हो जाएगा।"

अनिल की आखों में एक अजीब सा वेशिपन देख लिया था शिल्पा ने। शिल्पा यहाँ वहां बचने के लिए जगह ढूँढने लगी। उसे अंदर एक कमरा खुला मिला वो वहीँ चली गई....अनिल भी उसकी और लपका। और अंदर जाते ही शिल्पा दरवाजा बंद करने लगी। मगर अनिल भी दूसरी तरफ़ दरवाजा अपनी और खीचने लगा। बहुत देर तक दोनों इसी तरह दरवाजे की साथ अपनी ज़ोर अज्मायिश करते रहे। फिर अनिल ने ज़ोर से दरवाजा झटके से खोल दिया....और अंदर आते ही उसने उस दरवाजे को भी बंद कर दिया। अब शिल्पा और डर गई थी।

"अनिल मुझे जाने दो ..मुझे छोड़ दो...मैं तुम्हारी अच्छी दोस्त हूँ....तुम ऐसा नही कर सकते....तुम्हे शराब चढ़ गई है...." शिल्पा जानती थी की इस तरह अनिल के सामने बिलखने का भी कोई फायदा नही फिर भी वो बिना रुके बोली जा रही थी। और कमरे में यहाँ वहां देख रही थी की कहीं से जाने का बचने का रास्ता उसे मिल जाए..


कोई और जगह, कोई और रास्ता नही दिखाई देने पर शिल्पा ने सोच लिया की उसे क्या करना है.....और उसने वैसा ही किया...जैसे ही अनिल शिल्पा के करीब आया शिल्पा ने उसे ज़ोर दार धक्का दे दिया। अनिल नीचे लडखडा के गिर गया। अनिल के गिरते ही शिल्पा कमरे के उसी दरवाजे की और लपकी। दरवाज़े को खोल कर जैसे ही वो बाहर वाले कमरे में जाने लगी..अनिल ने उसे पकड़ लिया। शिल्पा भी अब नीचे गिर चुकी थी। गिरते ही शिल्पा के कंधे और घुटनों पे दरवाजा और उसकी चोखट ज़ोर से लगी.....नीचे गिरी शिल्पा को अनिल ने फिर दायें पैर को पकड़ कर अंदर की ओर खींच लिया...शिल्पा फिर वही उसी कमरे में आ चुकी थी। अनिल उसके उपर आ चुका था। मगर फिर भी शिल्पा ने हार नही मानी उसने अनिल के दोनों पैरो के बीच ज़ोर दार लात दे मारी। अनिल ज़ोर से चिला पडा...उसने दोनों हाथ दोनों पैरो के बीच रख लिए....और कहराने लगा...

शिल्पा को एक और मौका मिला वहां से भाग निकलने का...वो उठने की कोशिश करने लगी। वो बाहर वाले कमरे में पहुँची और घर से बाहर जाने वाला दरवाजा खोलने लगी....मगर कंधे की चोट उसे तंग कर रही थी। अचानक पीछे से अनिल ने उसे उसके पैरो से उठा लिया और अपने कंधो में रख कर उसे घर के बिस्तर पर पटक दिया। अनिल के चहरे पे गुस्सा और बोख्लाहत के साथ साथ उसकी हवस से भूख भरी नज़रे साफ़ दिखाई दे रही थी.....

अब शिल्पा के बहुत कोशिश करने पर भी शिल्पा अनिल को अपने उपर से हटा नही पा रही थी....

और अनिल अपने मंसूबो में कामयाब हो गया....और शिल्पा को उसी कमरे में बंद कर के चला गया....

अगले दिन शाम को वो फिर आया उसने शिल्पा से उस रात हुए हादसे के लिए माफ़ी मांगी और उसका फ़ैसला पुछा....शिल्पा ने अनिल से कोई बात नही की... वैसे भी जब से शिल्पा ने रो रो कर अपना बुरा हाल कर ही लिया था...अनिल ने उस से कहा की अगर वो अभी भी अनिल के प्यार को अपना ले तो अनिल उसकी गलती माफ़ कर देगा। और फिर वो खुशी खुशी इसी प्यार के बंधन में रहेंगे हमेशा.....


दो दिन तक अनिल इसी तरह शिल्पा के पास आ कर उसे अपने प्यार की दुहाही देता। फिर तीसरे दिन वो फिर शराब पी कर आया....और वही बातें दोहराने लगा......उसने शिल्पा को बताया की शिल्पा के घर वाले उसकी तलाश कर रहे है..अनिल के घर भी पुलिस पुछ्ताश के लिए आई थी.....

शिल्पा एक बार फिर वहां से निकले के लिए एक और कोशिश की....उसने अनिल से कहा की वो अनिल की हर कही बात मानने को तैयार है। पहले तो अनिल उसकी बातों में आ गया...मगर फिर उसने शिल्पा की चाल समझ ली और बोला..."नही तुम मुझे फिर से पागल बना रही हो तुम बाहर जाते ही पुलिस को सब सच बता दोगी....मैं तुम्हे इस तरह नही छोड़ सकता।"

फिर तो जैसे अनिल को वही दीवानेपन का असर हो गया हो...उसने शिल्पा को पुरी तरह से बाँध दिया....चादर, रसियाँ और तार अनिल को जो भी बाँधने की चीज़ मिली ....उसने उस से शिल्पा के हाथ, पैर और मुह सभी कुछ बाँध दिया... और बाँधते बाँधते बस बोले जा रहा था..."तुम यहाँ से कहीं नही जाओगी..तुम्हे मुझसे कोई अलग नही कर सकता...तुम सिर्फ़ मेरी हो....देखता हूँ कौन कैसे तुम्हे यहाँ से ले जाता है।" शिल्पा ने सोच लिया की वो अब यहाँ से नही निकल पायेगी...

फिर शाम को अनिल ने टेलिविज़न में कुछ कुछ खबरे सुनी...शिल्पा को भी कुछ कुछ सुनाई दे रहा था...शायद वहां उसी की ख़बर आ रही थी....नाम बदला हुआ था...फिर भी शिल्पा समझ गई थी की यह उसी की ख़बर है क्यूंकि ख़बर एक ऐसी लड़की के गुमशुदा होने की थी जो अपने भाई की शादी से गायब हो गई थी...फिर शिल्पा ने टेलिविज़न के टूटने की आवाज़ सुनी..और बाहर के दरवाजे के बंद होने की आवाज़ उसके बाद उसे ख़ुद नही पता की क्या हुआ...शायद एक दिन तक वो इसी तरह पड़ी रही और फिर बेहोश हो गई और उसे होश इस हॉस्पिटल में आया...


to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.