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Tuesday, February 24, 2009

मसककली (part 2)

शिल्पा का कॉलेज का वो दूसरा ही दिन था. पहले दिन तो सिर्फ एक दुसरे का नाम ही जान पाए थे सब लोग....शिल्पा ने भी अपना नाम बताया और यह भी की स्कूल में सब उसे मसककली ही बुलाते थे। अभी वो अपनी नई नई सहेलियों से कॉलेज के मैदान में बैठी बातें ही कर रही थी की दुसरे विषय की क्लास के लिए घंटी बज उठी। सभी लोग उठे और बहुत उत्सकता से अपनी दूसरी क्लास की और चल दिए। शिल्पा भी उठी और चल दी। मगर चलते चलते उसकी एक
किताब जो उसके हाथ में थी नीचे गिर गई। वो उस किताब को उठाने के लिए झुकी ही थी की उसके पीछे से से एक आवाज़ आई....."excuse me.... सुनिए....माफ़ कीजियेगा....आपका रुमाल रह गया है...आप जहाँ बैठी थी ना...वहीँ रह गया....".....शिल्पा ने कई ऐसे किसे सुने थे जहाँ कॉलेज के लड़के लड़कियों को पटाने के लिए उल्टे सीधे तरीके अपनाते थे....यह तरीका भी उन्ही में से एक था....शिल्पा को ऐसे लड़को से सख्त नफरत थी.....जो अपनी पढ़ाई छोड़ कर लड़कियों के पीछे पढ़े रहते है...

शिल्पा को गुस्सा आया और पीछे मूड कर बिना कुछ देखे समझे बोल पड़ी....."देखिये....यह रुमाल मेरा नही है....और यह बेकार के लड़की को पटाने के टिप्स आप कहीं और जा कर इनका प्रयाग करे...यहाँ दाल नही गलने वाली समझे...." बिना रुके बिना देखे बस शिल्पा बोलती चली गई..."अभी मेरी क्लास है..मुझे देर हो रही है वरना अच्छे से आपको बताती की यह रुमाल किसका है.."...शिल्पा गुस्से से तनतनाती हुई क्लास की तरफ़ चल दी।

क्लास में भी शिल्पा थोडी देर तक यही सोचती रही....की कॉलेज में आके न जाने लोगो को क्या हो जाता है...पढ़ाई करने की जगह बेकार में लड़की या लड़के पटाने में अपना समय बरबाद करते है....खैर थोडी देर बाद उसका ध्यान क्लास में हो रही पढ़ाई की ओर चला गया....

घंटी बजते ही क्लास ख़त्म हुई तो उसकी एक सहेली ने बोला उसे भूख लगी है तो वो भी कॉलेज की कैंटीन की ओर चल दी। कैंटीन में खाते खाते मुह साफ़ करने के लिए उसे अपना रुमाल याद आया.... उसने अपना रुमॉल हर जगह देखा। बैग में, जींस की जेब में, किताबो के बीच में......फिर उसकी सहेली बोली...कहीं क्लास में ही तो नही गिर गया.....तभी शिल्पा को याद आया.... नही वो तो मैदान में ही रह गया था....जल्दी से कैंटीन से निकल कर वो वहीँ पहुंची... मगर वहां अब उसे वो लड़का कहाँ मिलने वाला था....और फिर उसे अपनी दूसरी क्लास में भी जाना था...सो वो चली गई...

सारी कक्षाएं(classes) ख़त्म होने पे शिल्पा बस स्टैंड पे खड़ी थी...धीरे धीरे उसकी सारी सहेलियों को बस मिल गई....अब वो अकेली बस स्टैंड पे खड़ी थी.....थोडी देर बाद....फिर वही पहचानी आवाज़ पीछे से आई...."यह आप ही का रुमाल है न.."...मगर इस बार पीछे से ही एक हाथ उसके सामने आया जिसमें उसका रुमाल था..शिल्पा अपना रुमाल भी पहचान गई....और शर्मिदा भी हुई। धीरे से पीछे देखा तो वही लड़का खड़ा मुस्कुरा रहा था...
"i am sorry..मैंने बिना रुमाल को देखे न जाने आपसे क्या क्या कह दिया था..."..शिल्पा के मुह से सिर्फ यही निकला.. "its ok"...उस लड़के ने मुस्कुरा कर जवाब दिया...तभी शिल्पा की बस आ गई...

बस में चढ़ने के बाद उसने उस लड़के को भी उसी बस पे चढ़ते देखा...पहले तो शिल्पा को थोड़ा शक हुआ..कहीं वो जानबुझ कर उसके साथ इस बस में तो नही चढा....फिर उसने सोचा नही फिर वो एक गलती नही करेगी....पहले ही उसे ग़लत समझ कर एक गलती कर चुकी है......वो यह सब सोच रही थी की उस लड़के ने बस कंडक्टर से कहा "मुझे जुहू तक की टिकेट दे दो...."....शिल्पा की सारी ग़लत फ़हमी दूर हो गई।

फिर वो लड़का शिल्पा की ओर देख कर बोला "आपकी कहाँ तक की टिकेट कटवाऊ"......
शिल्पा : "जी नही मैं खूब टिकेट ले लुंगी..."

शिल्पा ने भी अपनी टिकेट ली और फिर बोली.."आप जुहू में रहते है...."...
लड़का बोला "जी हाँ मैं यहाँ अपने मौसा मासी के घर रहता हूँ....और उनका घर जुहू में ही है..."
शिल्पा : "मेरा घर तो बस जुहू के चार स्टाप बाद ही है...."
लड़का : "आप कॉलेज में नई है...."
शिल्पा : "जी...आज दूसरा दिन था...और आप"....
लड़का : "दूसरा दिन...... तो बताईये आपको हमारा कॉलेज पसंद आया या नही....जी मुझे तो तीन साल हो गए है.....बस दो साल बाद मैं डॉक्टर हो जाऊँगा यह सोच कर भी हसी आती है..."
शिल्पा: "हाँ.....कॉलेज तो बहुत अच्छा है....सभी lecturers अच्छे है.. तो आप मेरे सीनियर है..फिर तो मदद हो जायेगी....क्या specialisation ली है आपने"
लड़का: "मेरा interest तो eyes specialisation में है...और आपका.."
शिल्पा: "मैं child specialist बनना चाहती हूँ"

तभी दोनों को एक खाली सीट मिल गई.....और दोनों और ज्यादा अच्छे से बात करने लगे....शिल्पा को वो लड़का कॉलेज की कई खटी मीठी बातें बताने लगा....शिल्पा को भी खूब मज़ा आ रहा था सब सुनने में...

इतने में ही उस लड़के का स्टाप आ गया....तब उनको पता चला की बातों बातों में समय कैसे बीत गया पता ही नही चला......सीट से उठते ही उस लड़के ने पुछा.."लो बातों बातों में हम एक दुसरे का नाम पूछना तो भूल ही गए..मेरा नाम अनिल है और आपका.."

"शिल्पा...." शिल्पा ने जवाब दिया...तभी बस स्टाप पे रुकी और...वो लड़का अनिल बस से उतर गया। बाकी के सफर में भी शिल्पा उसकी की खटी मीठी बातें याद आती रही.....वो बहुत खुश थी....कॉलेज के किस्से सुन कर बहुत excitemet feel कर रही थी।

"शिल्पा....ओ मेरी मसककली...." एक आवाज़ आई तो शिल्पा ने मुह उठा कर देखा..तो वो उसकी स्कूल की सहेली थी....किरन....."अरे किरन तू....तू इस बस में कैसे...".....

"हाँ मैं....और कोन....तुझे मसककली बुलाएगा... मैं तो बस अभी एक कॉलेज में अपनी फीस जमा कर के आ रही हूँ....तू बता तेरा तो admission भी हो गया है मैंने सुना है बहुत अच्छा कॉलेज है....और तेरे क्षितिज भिया की भी शादी होने वाली है"

"हाँ तुने ठीक ही सुना है...बस कॉलेज से ही आया रही हूँ और क्षितिज भइया की भी शादी 8 महीने बाद है...और सगाई दो महीने बाद..तुझे आना है....तुझे कार्ड देने आउंगी मैं तेरे घर पे...." शिल्पा बोली।

"चल फिर तेरे भइया की शादी के बाद तेरी बारी आ जायेगी.... कॉलेज में कोई लड़का देख लेना....तेरी लाइफ तो सेट हो गई कुड़िये.....मसककली.... वो क्या बोलते थे हम तुझे....हाँ.....

मैं एक मसककली (कबूतरी) हूँ बैठने को एक मुंडेर ढूंढती हूँ..
बस जो मेरे हर वक्त साथ रहे एक ऐसा कबूतर ढूंढती हूँ..

याद रखना इसे...और जल्दी से एक लड़का पता लेना....hehehehehe..."


शिल्पा: "क्या किरन तू फिर शुरू हो गई...स्कूल में भी तू ऐसे ही करती थी...एक मौका नही छोड़ती तू ना....न जाने कब सुधरेगी....तू बता तेरा admission कहाँ हुआ है।"

शिल्पा के स्टाप आने तक वो लोग बातें करते रहे...फिर शिल्पा घर भी आ गई....पर उसके chehre से वो मुस्कान अभी तक थी और अपने addmission और क्षितिज भइया की सगाई और शादी को ले के तो पहले से ही खुश थी और आज उसका दिन भी तो बहुत अच्छा जो गया था.... पर सच में वो उस शेर को कभी नही भूल पायेगी..जो अक्सर स्कूल में लोग उसे सुनते थे उसे छेड़ने के लिए.....

मैं एक मसककली (कबूतरी) हूँ बैठने को एक मुंडेर ढूंढती हूँ.....
बस जो मेरे हर वक्त साथ रहे एक ऐसा कबूतर ढूंढती हूँ.....


to be continue....

Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.

Thursday, February 19, 2009

मसककली (part 1)

जिया और अनमोल बहुत खुश लग रहे थे। शिल्पा भी उन्हें शादी के जोड़े में देख बहुत खुश थी...पर फिर भी ना जाने उसके मन में एक उदासी सी थी.....वही उदासी जो उसके मन में बहुत सालो से है...

आज वो एक शादी में शामिल हुई है और एक दिन पहले भी वो एक ऐसी ही शादी में शामिल हुई थी। जहाँ उसने नही सोचा था की उसके साथ क्या क्या होने वाला था।


हाँ उसके भाई क्षितिज की शादी....वो क्षितिज से चार साल छोटी थी... उसकी लाडली बहन। क्षितिज पहले से ही उसे बहुत प्यार करता था। और शिल्पा और क्षितिज के पापा के स्वर्गवास होने बाद तो उनका रिश्ता और मजबूत हो गया था। अब क्षितिज एक भइया या एक दोस्त नही वो अब एक बाप की तरह शिल्पा की देख भाल करता था। अपने भाई को दुल्हे बना देख बहुत खुश थी शिल्पा। उसकी होने वाली भाभी सीमा भी बहुत ही अच्छी थी। शिल्पा से सीमा की बहुत बनती थी। दोनों सहेलियों की तरह तो कभी माँ-बेटी की तरह बातें किया करते थे। शिल्पा की माँ भी शिल्पा को बहुत प्यार करती थी। वो अक्सर कहा करती थी...."एक दिन मेरा बच्चा अपने पापा का नाम खूब रोशन करेगा।" हाँ शिल्पा के पापा का सपना था की वो एक बहुत बड़ी डॉक्टर बने.... अभी तो शिल्पा डाक्टरी के कॉलेज में ही गई थी। पहला ही साल था उसका।


खैर शादी के शोर शराबे में शिल्पा को बहुत मज़ा आ रहा था....सभी रिश्तेदार जो आए थे..घर खूब भरा भरा लग रहा था। उसकी माँ और उसके मामा जी ने सब काम संभाल लिए थे....तो अब उसे तो बस मस्तियाँ ही करनी थी। उसकी खूब सारी मस्तियाँ देख लोग बार बार उसे मसककली कह के बुलाते थे। वो थी ही मसककली जब देखो हवा में उड़ती रहती थी....चंचल, मस्त और हमेशा अपने में खुश रहने वाली लड़की। जो चाहे करती जो चाहे बोलती बिल्कुल खुले परिंदे की तरह। शादी के शोर शराबे में उसके इस खुले मिजाज़ और मस्तियों को देख कर तो लोग उसे और उसकी माँ को बोलने लगे "अब तो अगला नम्बर इस मसककली शिल्पा का ही है। भाई के बाद तो इसी की शादी होगी।" यह सब सुन कर शिल्पा को थोडी हसी भी आई और शर्म भी। उसकी माँ का जवाब आता "नही अभी तो इसकी उमर पढने की है..कहाँ शादी...नही अभी तो छोटी है..".....शिल्पा अपनी माँ की इस बात पर थोडी सी नाराज़ हो जाती.."क्या माँ इतनी भी छोटी नही हूँ मैं.."

गहरी सोच और यादों में डूबी शिल्पा को एक अनजानी कड़क रोबदार मर्दानी आवाज़ ने बाहर निकला....."माफ़ कीजियेगा... क्या यह रुमाल आपका है..." शिल्पा बिल्कुल सहम सी गई... फिर थोडी देर बाद जब शिल्पा थोड़ा अपने होश में आई तो वो आवाज़ फिर आई "शायद यह वहां रह गया था। आप ही का हैं ना। देखिये तो...आप का ही रुमाल है..ना।".....
शिल्पा ने सुना तो पाया आवाज़ पीछे से आ रही थी...वो मुडी और उसने देखा उस का रुमाल लिए एक हाथ उसकी तरफ़ बढ़ा हुआ था। शिल्पा ने अपना रुमाल पहचान लिया था। तो उसने शुक्रिया बोल के रुमाल ले लिया। रुमाल लेते हुए उसका हाथ उस हाथ को छु गया...उस छुवन से वो गबरा सी गई और बिन उस आदमी की और देखे वापस मूढ़ कर चल पड़ी.....पता नही उसे क्या हो गया था.....चलते चलते वो फिर सोच में डूब गई.....

मन ही मन सोचने लगी...कई सवाल मन में उठ रहे थे। ऐसा उस के साथ पहले भी हुआ है..जिसे वो कभी भूला नही पायी थी.....और शायद ना पायेगी...वही उसका रुमाल खो जाना और किसी अनजान शख्स का रुमाल वापस करना...और फिर हमेशा के लिए उसकी ज़िन्दगी का बदल जाना......... जो उसने सोचा नही था उसे अपनी ज़िन्दगी में इतना सब कुछ ..इतनी जल्दी एक के बाद एक इतने भयानक हादसों को उसे सहना पड़ेगा..वो भी इतनी छोटी उमर में...

to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.