About Me
Wednesday, June 24, 2009
नाज़ हो तुम मेरा
तुम बने मेरे रहगुजर मेरा साया।
वैसे तो तुम ही इस तरह हो लिपटे
दिल के करीब बन कर मेरा हमसाया।
धूल मिटटी में जो मैं कभी बाहर चली भी जाती
तो तुम मेरे सर से मेरे चेहरे तक मुझे यूँ है ढकते।
की कब सुबहे से दोपहर हुई और कब घर से निकले
हुई शाम कब दिन गया गायब तुम संग ढलते ढलते।
कहीं जो मुझे कभी कोई दूर खड़ा यूँही एकटक निहार कर
मुझे मेरे बचपन को भूल कर नई नई जवानी की याद है कराता।
न जाने कब हवा है चलने लगती और तुम अटखेलिया करते
जैसे तुमको मेरे दिल में चल रही हलचल का है पता चल जाता।
कभी हो तुम पीले कभी नीले तो कभी हो लाल
मेरे रंग रूप का तुमको है सदा ख्याल।
कभी जो भूली मैं घर पर अपना रुमाल
तुमने ही साथ दिया हमेशा साफ़ रखे मेरे गाल।
तुमको कोई मेरी लाज है कहता
कोई बताता तुम्हे मेरा नखरा।
पर सिर्फ़ तुम और मैं ही जानते है की
तुम सिर्फ़ मेरा दुपट्टा नही नाज़ हो तुम मेरा।
Friday, April 17, 2009
मसककली (part 6) (last part)
करीब एक घंटे बाद शिल्पा को ले कर वो लोग घर को चल दिए.....माँ ने शिल्पा को रोते रोते गले से लगाया.... पुचकारा....प्यार किया..और अपनी किस्मत को कोसा...और शाम को इंस्पेक्टर ने बताया की डॉक्टरों क मुताबिक शिल्पा के इनकार से अनिल एक मानसिक रोगी बन गया था। प्यार को पागलपन बना चुका था अनिल... लेकिन जब उसे लगा की अब शिल्पा कभी भी उसके साथ नही रह पायेगी..उसका सपना जो उसने शिल्पा के प्यार में देखा था की वो और शिल्पा एक साथ प्यार से रहेंगे....टूटता नज़र आया तो पहले उसने अपना गुस्सा टेलिविज़न पे निकला फिर वो suicidal case हो गया और उसने आत्महत्या कर ली... तो अनिल को किसी ने नही मारा था..उसने ख़ुद अपनी जान दी थी... इस तरह पुलिस ने case close कर दिया...यहाँ शिल्पा समझ क बनाये बेकार और बेबुनियाद नजरियों से लगने की कोशिश करने लगी.....मगर वो अपने अंदर छिपी आत्महीनता, डर और अपने लिए ही घृणा भावः को नही निकल पा रही थी.... सीमा ने बहुत कोशिश की उसे समझाने की उसे सहारा देने की.....मगर सीमा को भी काम पे जाना होता था..और फिर शिल्पा और माँ ही घर में होते थे.....सीमा माँ को समझा कर जाती थी...फिर भी माँ अपने दिल से मजबूर हो कर फिर वही बातें शुरू कर देती थी....शिल्पा ने कॉलेज जाना छोड़ दिया था....अब उसे किसी चीज़ में दिलचस्पी नही होती थी... माँ उसी के सामने उसकी बरबाद हुई ज़िन्दगी का रोना रोती रहती थी.... दो तीन बार शिल्पा भी suicide करने की कोशिश कर चुकी थी....क्षितिज और सीमा को भी समझ नही आ रहा था की क्या करे.....
नारी सशक्तिकरण संस्थान और नारी उत्थान संस्थान से सीमा को एक psycologist (मानसिक चिकित्सक) मिस्टर अजय का पता चला और उनके कहने पर ही सीमा ने शिल्पा को उन्ही के पास रहने क लिए माँ और क्षितिज को मनाया.... माँ तो बिल्कुल भी राज़ी नही थी..पर क्षितिज के कहने पर उनको भी मानना पड़ा....माँ इस बात से सीमा से बहुत नाराज़ भी रहने लगी थी...
शिल्पा भी जाने को राज़ी नही थी...पर सबकी मर्ज़ी के सामने उसकी एक न चली....वहां शिल्पा ने अपने जैसे कई केस देखे...और उनकी सेवा भावः से सेवा करने लगी...उसे वहां पता चला की न जाने कितनी लड़कियों को आज भी कितनी बेदर्दी से और बे वजह शिकार बनाया जाता है.....न सिर्फ़ बलात्कार बल्कि दहेज़, पति की मार से बेहाल, बेटे और बहु की बेरुखी, बेटी और दामाद के धोखे से लुटे जाने वाली, सास ससुर की साजिशों से शिकार और ओफ्फिसों में लड़कियों की मजबूरी का फ़ायदा उठाने वाले अफसरों की मासूम शिकार की कहानियों को सुन कर देख कर बहुत दुःख होता था...उनके दुःख को देख कर उसे अपना दुःख कम लगता था....
धीरे धीरे शिल्पा में आत्मविश्वास और सेवा भावना आ गई....और अब वो घर नही जाना चाहती थी..बल्कि डॉक्टर अजय जी के साथ मिल कर सभी क लिए कुछ करना चाहती थी...अजय जी ने उसे बिल्कुल ठीक कर दिया था.. इसलिए सीमा शिल्पा को पूरे एक साल बाद घर ले जाने क लिए आई....मगर जब सीमा ने शिल्पा का फ़ैसला सुना तो उसने भी उसे इसकी इजाज़त दे दी..क्यूंकि आज फिर शिल्पा की बातों में सीमा को वही पुरानी मसककली की झलक दिखायी दी। मगर सीमा ने शिल्पा से एक वादा ज़रूर लिया की वो अपनी पढाई फिर से शुरू करे..डाक्टरी नही तो क्या हुआ....वो कोई और कोर्स कर सकती है। शिल्पा भी मान गई और पत्राचार से उसने पढाई शुरू कर दी।
अब शिल्पा girls hostel में रह कर पढाई के साथ साथ सेवा संस्थान, नारी सशक्तिकरण संस्थान, नारी उत्थान संस्थान और अजय जी के साथ भी काम करती। पढाई पूरी करने क बाद उसने छोटी सी नौकरी भी कर ली...सीमा और क्षितिज अक्सर उस से मिलने आते थे....उसे घर भी बुलाते थे..पर शिल्पा ही नही जाती थी...बस सीमा और क्षितिज के बेटे पीयूष के होने पर एक दो बार शिल्पा गई भी...माँ शिल्पा को देख अब बहुत खुश थी...अब तो वो सीमा के ही गुणगान गाने लगी थी..क्यूंकि जो कुछ हुआ था वो सीमा के शिल्पा को अजय जी के पास भेजने वाले फैसले से ही हुआ था....
फिर सब ठीक ठाक चलने लगा....पर अब भी शिल्पा किसी भी लड़के पर वही भरोसा नही कर पाती थी.....कई बार लड़को ने उस से मेलजोल बढ़ाने की कोशिश भी की...मगर शिल्पा ही अपने आपको बंधा बंधा सा रखती थी... वो कभी किसी भी लड़के से उतना नही खुल पाती थी।
शिल्पा जैसे ही अपने हॉस्टल वापस पहुची उसकी नज़र उसके बंद कमरे के दरवाजे पे रखी देर सारी mails(पत्र) पे गई। उसने उन्हें उठाया और अंदर आ गई। थकान उतरने के लिए शिल्पा ने shower लिया। फिर अपना सामान खोलने लगी...unpacking करते करते वो सोचने लगी। "जिया की शादी अच्छी रही...उसे तो खुश होना चाहिए। जिया के लिए। उसे अनमोल मिल गया जो उस से इतना प्यार करता है और जिया भी उसी से प्यार करती है। फिर न जाने क्यूँ शिल्पा खुश नही थी।" सोचते सोचते उसकी नज़र फिर एक बार table पे रखे उसके mails पे गई। बेमन से उसने एक एक करके सारे mails पढ़े। फिर जल्द ही उसने दो चार फ़ोन किए। और न चाहते हुए भी उसने अपना सामान फिर से बाधना शुरू कर दिया।
अगले दिन airport से बाहर आते ही उसने वही पुरानी जानी पहचानी हवाओं को महसूस किया और एक लम्बी गहरी साँस ली। अपने शहर से एक बार फिर मिल कर उसे अच्छा लगा। काफ़ी कुछ बदल गया है और काफ़ी कुछ अभी भी वैसा का वैसा है जैसे पहले था। शिल्पा बहुत दिनों बाद अपने शहर आई है। पिछली बार वो पिहू के जन्म के समय अपने शहर आई थी। अब तो पिहू भी बड़ी हो गई होगी। खूब भइया भाभी को भागती होगी। खूब माँ को सताती होगी और पियूष भी 9-10 साल का हो गया होगा। पता नही पियूष को उसकी शिल्पा बुआ याद भी होगी की नही। एक आदमी उसके नाम का बोर्ड लिए खड़ा था। अपने नाम का बोर्ड पढ़ कर वो उसी ओर चल दी। फिर शिल्पा उसके साथ उसकी गाड़ी में बैठ गई। और गाड़ी होटल की ओर चलने लगी।
होटल में भी उसे सारे दिन घर की याद आती रही। माँ, क्षितिज भइया और सीमा भाभी। घर जाने का उसका मन तो बहुत हो रहा था। पर पहले वो जिस काम के लिए आई है वो काम निबटाना चाहती थी।
अगले दिन वो उसी गाड़ी में एक बड़े से ऑफिस में पहुची। ऑफिस में आते ही उसने receptionist से कहा॥ "EXCUSE me... I am shailja...I am looking for Mr Devesh...He must be expecting me here..."
"Oh yeah...Mr। Devesh will be here at any moment. please make your self comfortable at our waiting room. you are shailja...am I right?..." receptionist ने waiting room की तरफ़ इशारा किया..."yeah...I am shailja..thank you"
शिल्पा ने जवाब दिया और waiting room की तरफ़ बढ गई। कमरे में बैठे हुए उसने दिवार पर लगी घड़ी को देखा जो 11 बज कर 25 मिनट टाइम दिखा रही थी।
"welcome after the break आप सुन रहे है देव को आपके अपने favorite show "ज़िन्दगी: एक कहानी" पे और समय हुआ 11 बज कर 40 मिनट...जी हाँ समय है हमारे मेहमान का। हमेशा की तरह आज भी हमारे मेहमान कुछ खास है...उनके साथ भी ज़िन्दगी ने कुछ ऐसे खेल खेले है की वो न तो जी सकती थी न मर सकती थी। उन्होंने जीने मरने के इस खेल में जीना ही बेहतर समझा और आज वो जिस तरह की ज़िन्दगी जी रही है वो दुसरो के लिए एक मिसाल है चलिए उन्ही से जानते है कहानी...." "नमस्कार शैलजा जी। आपका हमारे इस प्रोग्राम में स्वागत है" ..... "नमस्कार देव....मुझे यहाँ बुलाने का शुक्रिया....पहले तो मैं आपको और श्रोताओं को ये बताना चाहूंगी की मेरा नाम शैलजा नही शिल्पा है। शैलजा नाम तो मुझे मीडिया ने दिया था उस दर्दनाक हादसे के बाद...शायद मेरी बदनामी के डर से। मगर अब मुझे अपनी पहचान बताने में कोई जिज़क नही है..हाँ शायद उस वक्त मैं भी नही चाहती थी की मेरा नाम इस तरह से अखबारों में आए। पर अब मुझे कोई डर नही है..बदनामी का भी नही॥" "बिल्कुल ठीक कहा आपने शिल्पा जी....मुझे पूरा यकीन है अब श्रोताओं को आपकी शख्शियत, आपके आत्मविश्वास और आपके व्यक्तित्व की एक झलक मिल गई होगी....हम उस दर्दनाक हादसे की बातें आपसे विस्तार से करना चाहेंगे।"
फिर धीरे धीरे शिल्पा ने सभी कुछ बता दिया... एक एक सवाल का जवाब उसने बे जिज़क और बेतुकी से दिया।
करीब आधे घंटे बाद "दोस्तों देखा आपने कई बार ज़िन्दगी ऐसे मोड़ पे लाकर गधा कर देती है की इंसान सोचता रह जाता की उसके साथ ये क्या हुआ, क्यूँ हुआ और यह सब उसी के साथ क्यूँ हुआ....उसे अपनी आगे की ज़िन्दगी अंधेरे में नज़र आती है...जहाँ उसका साथ देने वाला कोई नही होता....मगर शिल्पा जी...जिन्हें हम अभी तक शैलजा जी के नाम से अखबारों में पढ़ते आए है...और जिनके बारे में टेलिविज़न में कई talk shows में सुनते आए है...लें आज हम उन्ही से उन्ही की जुबानी उनकी ज़िन्दगी की कहानी सुन रहे है...पहल बार वो सामने आई है...यह सफर उनके लिए भी आसान नही था....यकीन मानिये दोस्तों उन्होंने भी तकलीफे झेली है उन्हें भी डर लगा है..उन्हें भी भविष्य को ले कर कई बार चितांए हुई है....मगर वो अकेली नही थी दोस्तों उनके साथ था उनका परिवार...पुरा परिवार जिन्होंने उनका पुरा साथ दिया॥ वैसे कहा तो यूँ जाता है की एक सफल आदमी के पीछे एक सफल औरत का हाथ होता है। पर यहाँ मैं कहूँगा की इन सफल socialist के पीछे, इनकी इतनी दिलेरी और इतने सारे आत्म विश्वास के पीछे है इन्ही की परिवार की दो सफल औरतो का हाथ..और उनका साथ..."
"दो नही तीन औरते कहिंये...माँ और भाभी के इलावा एक और है जिनकी वजह से मैं आज यहाँ आ पायी हूँ वो है मेरी दोस्त जिया। जी हाँ उसी ने मुझे यहाँ आने से पहले फ़ोन पे इतनी हिम्मत दी की मैं अपना यह मुश्किल फ़ैसला ले सकू.........यकीन मानिये मैं कब से असमंजस में थी की क्या मैं अपनी आगे की ज़िन्दगी बिना किसी जीवन साथी के जी पाऊँगी...तो एक जिया ही थी जिसने मुझे मेरे जीवन का सार और मकसद याद कराया.....वो भी मेरे साथ ही समाज को सुधारने का काम कर रही है.....उस से बात कर के मैंने मेरी बाकी की दो मार्ग दर्शक माँ और भाभी से बात की......आज उन तीनो की वजह से ही मैं ऐसी हूँ जैसा आप अपने श्रोताओं को मेरा दर्पण दिखा रहे है...... आज की एक ससक्त महिला का दर्पण....एक रूप...... उन्ही की वजह से मैं आप सब लोगो से आँख मिला सकी हूँ यहाँ आ सकी हूँ ...आपके सवालो का जवाब दे सकी हूँ..."
"शिल्पा जी हम आपको और आपकी इन तीन supportors जो तीन pillars की तरह आप का साथ देती आई है शुक्रिया अदा करते है....आप जैसी महिलाए.....ही देश में सभी महिलाओं के लिए आदर्श नारी है.....चलते चलते एक आखिरी सवाल...अब आगे क्या?....अब आप अपने आने वाली ज़िन्दगी को कैसे देखती है..क्या आपको एक साथी की कमी महसूस नही होती...आपका मन नही करता की आपका भी कोई बहुत करीब हो..आपका भी अपना परिवार हो..."
"देव जी यह आपका पर्सनल सवाल तो नही है...हिहिहिहिही...क्यूंकि अक्सर लड़के लोग मुझसे ऐसे सवाल पूछ बैठते है...जी हाँ कई बार अकेलापन महसूस तो होता है पर फिर कुछ ही देर बाद वो लम्हा चला भी जाता है....ऐसा है देव जी यूह ही मान लिया है मैंने की मेरा अकेलापन ही सबसे बढ़िया साथी है मेरा...अब देखिये ऐसे कई रिश्ते होते है जहाँ बहुत प्यार होने पर भी कई बार ऐसे लम्हे या ऐसे दौर आते है जहाँ उस रिश्ते से दूर भाग जाने को मन करता है..पर हम प्यार की वजह से दूर हो नही पाते..बिल्कुल वैसे ही मुझे कभी कभी अपने अकेलेपन से दूर भाग जाने को मन करता है...पर मेरा दृढ़ फ़ैसला "शादी न करने का" दृढ़ ही रहता है और मुझ फिर अकेलेपन की और जाने को कहता है.....मेरा फ़ैसला बिल्कुल सही है...मुझे मेरे फैसले को फिर से सोचने की ज़रूरत नही है...जैसे अभी तक ज़िन्दगी कट गई है ऐसे ही आगे भी कट जायेगी....आज मेरी तीनो मार्गदर्शक मुझ पर नाज़ करेगी...मेरे फैसले को सहर्ष स्वीकार करेंगी मुझे पुरा यकीन है...."
"जी बिल्कुल सिर्फ़ वो ही नही हम भी आपके इस फैसले को सहर्ष स्वीकारते है...और अंत में जाते जाते यही कहेंगे॥ आप सच में एक मसककली है। जो अपने फैसले आपने आप अपनी मर्ज़ी से लेती है। इसी के साथ हमारा वक्त ख़त्म होने को है। शिल्पा जी यहाँ हमारे शो में आने का आपका बहुत बहुत शुक्रिया और मुझे भी साथ साथ इजाज़त दीजिये दोस्तों अलविदा...."
THE END
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
मसककली (part 5)
ऑटो कर शिल्पा बताई जगह पर पहुँच के अनिल का इंतज़ार करने लगी। अनिल को फ़ोन करके बता दिया वो पहुँच गई है। अनिल ने थोडी देर बाद फ़ोन करके उसे बोला की वो वहां आ नही पायेगा क्यूंकि बाकी लोग जिन्होंने उसे पैसे देने है वो लोग उसके दोस्त के घर उसे पैसे देने आयेंगे। अनिल ने शिल्पा को भी वहीँ आने को कहा। शिल्पा ने फिर ऑटो लिया और बताये घर पे पहुँच गई। पर वहां उस घर में अनिल के इलावा कोई नही था। अनिल के मुह से शिल्पा को शराब की बू आई तो उसने अनिल से पुछा। अनिल ने बताया उसका दोस्त सहर छोड़ कर कहीं जा रहा था तो उसने पार्टी दी थी वही थोडी बहुत अनिल ने पी ली। मगर वही दोस्त थोडी दूर ही निकला था की उसका accident हो गया।
उसने शिल्पा को बैठने को कहा। मगर शिल्पा ने मना कर दिया। अनिल ने शिल्पा को शुक्रिया कहा और कहा की आज उसे पता चल गया की शिल्पा उसे अपना साचा दोस्त मानती है। तब तक अनिल का व्यव्हार शिल्पा को ठीक लगा। पर फिर अचानक अनिल ने उसे बताया की वो उसे पसंद करता है। वो शिल्पा को अपना बनाना चाहता है। वो उसे प्यार करता है। शिल्पा को पहले कुछ देर तक तो कुछ समझ नही आया। पर फिर उसने अनिल को बताया की उसकी ज़िन्दगी में अभी इन सभी के लिए टाइम नही है। वो अपने पापा का सपना पूरा करना चाहती है। उसे मन लगा के पढ़ना है और खूब मह्न्नत कर अच्छे नम्बरों से डॉक्टर की डिग्री ले कर डॉक्टर बनना है। शिल्पा ने उसे मना कर दिया था।
अनिल थोड़ा सा दुखी तो था। पर थोडी ही देर में वो ठीक हो गया था। और बोला "ठीक है मगर मैं तुम्हे हमेशा प्यार करता रहूँगा। बस ये याद रखना तुम्हे पाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। मेरे दोस्त तो मुझे तुम्हारा दीवाना भी कहते है।"
शिल्पा को समझ नही आया की वो क्या कहे। शिल्पा अनिल को सिर्फ़ अपना दोस्त ही मानती थी। अनिल अच्छा लड़का था। मगर शिल्पा अभी इस समय प्यार के बारे में सोचना नही चाहती थी। उसने सोचा की क्या पता आगे आने वाले वक्त में कभी उसे अनिल से प्यार हो जाए। पता नही शायद...मगर अभी वो अनिल के बारें में ऐसा कुछ नही सोचती थी।
"चलो तुम्हे कहीं रस्ते में छोड़ देता हूँ मैं भी हॉस्पिटल जाना रहा हूँ दोस्त को देखने।" अनिल के बोलने पर शिल्पा उसके साथ चलने के लिए तयार हो गई। अनिल ने बताया की उसने एक कार किराये पे ली हुई है। शिल्पा जैसे ही बाहर जाने के लिए मुडी। अनिल ने झट से उसके आगे आ कर घर का दरवाजा ज़ोर से बंद कर दिया। शिल्पा को कुछ समझ नही आ रहा था की अनिल ने ऐसा क्यूँ किया। अनिल ने उस पर झट से हमला कर दिया। उसने शिल्पा को ज़ोर से पकड़ते हुए कहा "शिल्पा तुम मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती हो....क्या मैं तुम्हे पसंद नही .... पसंद नही तो क्यों तुम मेरे एक बार बुलाने पे अपने भइया की शादी छोड़ कर यहाँ चली आई। क्यूँ तुम मेरे साथ घूमती थी फिरती थी। बात किया करती थी। मैंने आज तक किसी लड़की से तरह बात नही की जिस तरह से मैं तुमसे बात करता था। तुम भी तो मुझसे इतने अच्छे से सभी बातें कर लेती हो। मेरे सभी दोस्त मुझे बोलते है की तुम भी मुझे पसंद करती हो। मुझसे प्यार करती हो। मैंने देखा है शिल्पा दुनिया की सभी लड़कियां एक सी ही होती है। वो लड़को के दिल के साथ खेलती है। पहले तो उनके साथ घूमती फिरती है हँस-हँस के बातें करती हो उसकी पसंद-नापसंद का ख्याल रखती हो....फिर जब उस लड़के को उस लड़की से प्यार हो जाता है और वो अपने घुटने टेक देता है॥प्यार का इज़हार करता है तो तुम लड़कियां बड़ी आसानी से बोल देती हो की यह सब दोस्ती है। प्यार व्यार नही.....बेचारा लड़का खड़े खड़े अपनी दिल को टूटते देखता रहता है....अपनी दुनिया में ही घुटता रहता है...."
अनिल शिल्पा को बोलने का मौका ही नही दे रहा था..बस बोले जाना रहा था...और उसकी तरफ़ बढता जाना रहा था। "मैंने नही सोचा था तुम भी बाकी सारी लड़कियों की तरह निकलोगी। सभी लड़कियां मुझसे बात करने से कतराती थी। उनको मेरी बातें boring लगती थी। पर तुम ही थी जो मुझे समझती थी। इसलिए मैंने तुम्हे अपने दोस्त के एक्सीडेंट का झूठा बहाना बना कर तुम्हे यहाँ बुलाया। ताकि मैं तुम्हे अपने प्यार के बारे में बता सकूं। मुझे लगा तुम मुझे मेरे प्यार को समझोगी। पर तुम भी यह दोस्ती का झूठा राग अलापने लगी। मैं तुम्हे ऐसे नही जाने दूंगा...तुम्हे मैं प्यार करता हूँ और तुम्हे भी मुझी से प्यार करना होगा। तुम मेरी नही हुई तो तुम किसी और की भी नही हो पाओगी। आज मैं तुम्हे इतना प्यार करूँगा की तुम्हे भी मुझसे प्यार हो जाएगा।"
अनिल की आखों में एक अजीब सा वेशिपन देख लिया था शिल्पा ने। शिल्पा यहाँ वहां बचने के लिए जगह ढूँढने लगी। उसे अंदर एक कमरा खुला मिला वो वहीँ चली गई....अनिल भी उसकी और लपका। और अंदर जाते ही शिल्पा दरवाजा बंद करने लगी। मगर अनिल भी दूसरी तरफ़ दरवाजा अपनी और खीचने लगा। बहुत देर तक दोनों इसी तरह दरवाजे की साथ अपनी ज़ोर अज्मायिश करते रहे। फिर अनिल ने ज़ोर से दरवाजा झटके से खोल दिया....और अंदर आते ही उसने उस दरवाजे को भी बंद कर दिया। अब शिल्पा और डर गई थी।
"अनिल मुझे जाने दो ..मुझे छोड़ दो...मैं तुम्हारी अच्छी दोस्त हूँ....तुम ऐसा नही कर सकते....तुम्हे शराब चढ़ गई है...." शिल्पा जानती थी की इस तरह अनिल के सामने बिलखने का भी कोई फायदा नही फिर भी वो बिना रुके बोली जा रही थी। और कमरे में यहाँ वहां देख रही थी की कहीं से जाने का बचने का रास्ता उसे मिल जाए..
कोई और जगह, कोई और रास्ता नही दिखाई देने पर शिल्पा ने सोच लिया की उसे क्या करना है.....और उसने वैसा ही किया...जैसे ही अनिल शिल्पा के करीब आया शिल्पा ने उसे ज़ोर दार धक्का दे दिया। अनिल नीचे लडखडा के गिर गया। अनिल के गिरते ही शिल्पा कमरे के उसी दरवाजे की और लपकी। दरवाज़े को खोल कर जैसे ही वो बाहर वाले कमरे में जाने लगी..अनिल ने उसे पकड़ लिया। शिल्पा भी अब नीचे गिर चुकी थी। गिरते ही शिल्पा के कंधे और घुटनों पे दरवाजा और उसकी चोखट ज़ोर से लगी.....नीचे गिरी शिल्पा को अनिल ने फिर दायें पैर को पकड़ कर अंदर की ओर खींच लिया...शिल्पा फिर वही उसी कमरे में आ चुकी थी। अनिल उसके उपर आ चुका था। मगर फिर भी शिल्पा ने हार नही मानी उसने अनिल के दोनों पैरो के बीच ज़ोर दार लात दे मारी। अनिल ज़ोर से चिला पडा...उसने दोनों हाथ दोनों पैरो के बीच रख लिए....और कहराने लगा...
शिल्पा को एक और मौका मिला वहां से भाग निकलने का...वो उठने की कोशिश करने लगी। वो बाहर वाले कमरे में पहुँची और घर से बाहर जाने वाला दरवाजा खोलने लगी....मगर कंधे की चोट उसे तंग कर रही थी। अचानक पीछे से अनिल ने उसे उसके पैरो से उठा लिया और अपने कंधो में रख कर उसे घर के बिस्तर पर पटक दिया। अनिल के चहरे पे गुस्सा और बोख्लाहत के साथ साथ उसकी हवस से भूख भरी नज़रे साफ़ दिखाई दे रही थी.....
अब शिल्पा के बहुत कोशिश करने पर भी शिल्पा अनिल को अपने उपर से हटा नही पा रही थी....
और अनिल अपने मंसूबो में कामयाब हो गया....और शिल्पा को उसी कमरे में बंद कर के चला गया....
अगले दिन शाम को वो फिर आया उसने शिल्पा से उस रात हुए हादसे के लिए माफ़ी मांगी और उसका फ़ैसला पुछा....शिल्पा ने अनिल से कोई बात नही की... वैसे भी जब से शिल्पा ने रो रो कर अपना बुरा हाल कर ही लिया था...अनिल ने उस से कहा की अगर वो अभी भी अनिल के प्यार को अपना ले तो अनिल उसकी गलती माफ़ कर देगा। और फिर वो खुशी खुशी इसी प्यार के बंधन में रहेंगे हमेशा.....
दो दिन तक अनिल इसी तरह शिल्पा के पास आ कर उसे अपने प्यार की दुहाही देता। फिर तीसरे दिन वो फिर शराब पी कर आया....और वही बातें दोहराने लगा......उसने शिल्पा को बताया की शिल्पा के घर वाले उसकी तलाश कर रहे है..अनिल के घर भी पुलिस पुछ्ताश के लिए आई थी.....
शिल्पा एक बार फिर वहां से निकले के लिए एक और कोशिश की....उसने अनिल से कहा की वो अनिल की हर कही बात मानने को तैयार है। पहले तो अनिल उसकी बातों में आ गया...मगर फिर उसने शिल्पा की चाल समझ ली और बोला..."नही तुम मुझे फिर से पागल बना रही हो तुम बाहर जाते ही पुलिस को सब सच बता दोगी....मैं तुम्हे इस तरह नही छोड़ सकता।"
फिर तो जैसे अनिल को वही दीवानेपन का असर हो गया हो...उसने शिल्पा को पुरी तरह से बाँध दिया....चादर, रसियाँ और तार अनिल को जो भी बाँधने की चीज़ मिली ....उसने उस से शिल्पा के हाथ, पैर और मुह सभी कुछ बाँध दिया... और बाँधते बाँधते बस बोले जा रहा था..."तुम यहाँ से कहीं नही जाओगी..तुम्हे मुझसे कोई अलग नही कर सकता...तुम सिर्फ़ मेरी हो....देखता हूँ कौन कैसे तुम्हे यहाँ से ले जाता है।" शिल्पा ने सोच लिया की वो अब यहाँ से नही निकल पायेगी...
फिर शाम को अनिल ने टेलिविज़न में कुछ कुछ खबरे सुनी...शिल्पा को भी कुछ कुछ सुनाई दे रहा था...शायद वहां उसी की ख़बर आ रही थी....नाम बदला हुआ था...फिर भी शिल्पा समझ गई थी की यह उसी की ख़बर है क्यूंकि ख़बर एक ऐसी लड़की के गुमशुदा होने की थी जो अपने भाई की शादी से गायब हो गई थी...फिर शिल्पा ने टेलिविज़न के टूटने की आवाज़ सुनी..और बाहर के दरवाजे के बंद होने की आवाज़ उसके बाद उसे ख़ुद नही पता की क्या हुआ...शायद एक दिन तक वो इसी तरह पड़ी रही और फिर बेहोश हो गई और उसे होश इस हॉस्पिटल में आया...
to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
Thursday, March 19, 2009
मसककली (part 4)
शाम को करीब 4 बजे इंस्पेक्टर ने घर आकर सबको बताया की अनिल का एक दोस्त अभी आज ही वापस लौटा है। उसी के घर से शिल्पा मिली थी। अनिल के दोस्त के कहने के मुताबिक अनिल और शिल्पा कॉलेज में ही मिले थे और अनिल को शिल्पा से प्यार हो गया था। कई बार अनिल ने शिल्पा को बताने की कोशिश की मगर हर बार वो शिल्पा से अपने दिल की बात नही बोल पाता था। उस दिन शिल्पा के भाई की शादी के दिन ही अनिल बहुत खुश था वो शिल्पा से अपने प्यार का इज़हार करना चाहता था। अनिल के दोस्त को उसी दिन किसी दुसरे शहर किसी काम से जाना था इसीलिए अनिल को उस घर की चाब्बियाँ दे दी ताकि वो वहां शिल्पा से अपने दिल की बात कह सके। इसके आगे अनिल के दोस्त को कुछ नही पता था की उस दिन क्या हुआ। कैसे अनिल की मौत हुई। और कैसे शिल्पा की यह हालत।
फिर इंस्पेक्टर ने बताया की शिल्पा की medical reports से पता चला है की शिल्पा के साथ बलात्कार (Rape) हुआ है। घर में जैसे सब जगह मातम सा ही छा गया हो। माँ को मामा और मामी ने संभाला और क्षितिज को सीमा को ने। इंस्पेक्टर के जाने के बाद भी घर का माहौल ख़राब हो चुका था। सब गुमसुम से हो गए थे। किसी से भी रात का खाना नही खाया गया। सीमा को भी समझ नही आ रहा था की आखिर हो क्या रहा है पहले ही उसकी शादी के दिन शिल्पा के इस तरह खो जाने से उसके मन में कैसे कैसे ख्याल आ रहे थे। सीमा को डर लगा हुआ था की कहीं कोई उसे ही कुछ बुरा न कह दे। आखिर उसके इस घर में कदम रखने से पहले ही इस घर के साथ इतना बुरा हो गया था। और घर के इस खामोश माहौल में तो वो और सहम सी गई थी। शिल्पा के साथ ऐसा कैसे हो सकता है वो तो बहुत ही हिम्मत वाली लड़की है। शिल्पा की मर्ज़ी के बिना शिल्पा को कोई छु भी नही सकता था फिर यह सब...शिल्पा ने अनिल के बारे में सीमा को बताया तो था। अनिल उसका सिर्फ़ एक दोस्त ही था और कुछ भी नही। फिर कैसे अनिल ने उसके साथ ज़बरदस्ती की। शिल्पा को कुछ पिलाया होगा। मगर फिर अनिल की मौत कैसे हुई। इतना कुछ सोचते सोचते सीमा अपने कमरे में आ गई।
वहां उसकी नज़र क्षितिज पे पड़ी जो चुपचाप कमरे के एक कोने में बैठा रो रहा था। उसके हाथो में एक फोटो एल्बम थी। सीमा क्षितिज के पास गबराए मन से गयी। उसने क्षितिज के कंधो पे अपना हाथ रखा तो क्षितिज फुट फुट के रोने लगा।
क्षितिज: "हमारी शिल्पा सीमा .....हमारी बच्ची... अभी तक उसने देखा ही क्या है... हमेशा बच्चो की तरह कोमल फूल की तरह पाला है उसे अब उसे इस तरह तडपता हुआ रोता भिल्खते हुए कैसे देख पाउँगा मैं।"
सीमा ने क्षितिज के सर को अपने कंधो पे रख कर प्यार से सहलाया। फिर बोली: "जानती हूँ मैं जानती हूँ क्षितिज वो मेरे लिए भी बच्ची की तरह ही है। मगर हमें माँ की तरफ भी देखना है क्षितिज। अभी तो मामा और मामी जी है उन्हें सँभालने के लिए। लेकिन एक बार उनके जाने के बाद हमको ही माँ और शिल्पा दोनों को संभालना है। मैं खुद....."
कहते कहते रुक गयी सीमा ...क्षितिज ने उसकी आँखों में डर देख लिया था। उसने सीमा को अपनी बाँहों में भर लिया...फिर बोला..."हाँ जानता हूँ हमें ही अब सब हमें ही संभालना है मगर कैसे संभालना है ये सोच सोच कर....."
सीमा: "मैं समझ सकती हूँ की शिल्पा इस वक़्त क्या सोच रही होगी। उसपे क्या बीत रही होगी।" कहते ही सीमा रोने लगी। क्षितिज ने उसे संभाला...मगर क्षितिज को क्या पता था की उसे एक और कड़वा सच सुनना है....सीमा रो रो के बोलती चली गयी...क्षितिज से कुछ नहीं छिपाया उसने। (सीमा की कहानी पढिये >>>"निम्मो बुआ")
क्षितिज: "तुमने मुझे पहले ये सब क्यूँ नहीं बताया...." फिर थोडी देर बाद सोच कर खुद बोला "शायद में समझ नहीं पाता यह सब लेकिन अब अच्छे से समझ रहा हूँ। क्यूँ ऐसा होता है क्यूँ समाज हमेशा लड़कियों को ही दोषी ठहराता है। क्यूँ लड़कियों को इन बातों के लिए शर्मिदा किया जाता है। क्यूँ उनके आत्मविश्वास आत्मसमान को बार बार यूँ गिरा दिया जाता है। लड़के सब कुछ गलत करके भी साफ़ शरीफ होने का दावा करते है। और लड़कियां शरीफ हो कर भी जिल्लत की ज़िन्दगी जीती है। यह कैसा समाज है"
सीमा: "क्षितिज शायद मैं तुमको यह सब कभी नहीं बता पाती या फिर कभी न कभी तुमको बता देती। पर आज मुझे लगा की उस वक़्त जो मेरे साथ हुआ आज वो मुझे शिल्पा को समझने में और उसका पूरा साथ देने में मेरी मदद कर सकता है। मैं आज उसे वही आत्मविश्वास और आत्मसमान के साथ जीना सिखा सकती हूँ जिस पर उसका पूरा हक है। हम शिल्पा को कभी यह एहसास नहीं होने देंगे की उसकी ज़िन्दगी बर्बाद हो चुकी है पूरी दुनिया समाज कुछ भी कहे.....हमें पता है वो किस दौर से गुज़र रही है कोई उसे अपनाए या न अपनाए हम लोग उसे हमेशा उसके साथ रहेंगे। उसे पूरी हिम्मत देंगे इस समाज में रहने की" दोनों रात भर इसी तरह रोते रहे। एक दुसरे को सहारा देते रहे।
अगले दिन दोनों शिल्पा को लेने के लिए हॉस्पिटल गए। वहां इंस्पेक्टर पहले से ही मौजूद था।
इंस्पेक्टर: "मुझे शिल्पा जी का बयान लेना है। अनिल के दोस्त ने जो बताया है वो काफी नहीं है। हमें शिल्पा जी से भी उनकी आप बीती पूछनी होगी। मैं चाहता था की शिल्पा का बयान उसके घरवालो के सामने ही लिया जाए ताकि बाद में बयान को बदलने के लिए आप उसपे दबाब न डाले..आप लोग भी उसके दिए बयान पर अपने हस्ताक्षर करेंगे इसलिए मैं आपका इंतज़ार कर रहा था। देखिये मैं आपको बता दूं की शिल्पा जी कुछ दिनों तक नारी सशक्तिकरण संस्थान में कुछ दिन जाना पड़ेगा और मैं उम्मीद करता हूँ आप उसे पूरा सहियोग देंगे।"
सीमा: "आप चिंता ना करे इंस्पेक्टर साहेब हम लोग शिल्पा को पूरा support देंगे। उसे उसकी ज़िन्दगी वापस शुरू करने के लिए पूरा सहियोग"
इंस्पेक्टर: "सब यही कहते है मैडम...मगर फिर धीरे धीरे उनके घर वाले ही उन्हें mental torture करते है। वो कहते है ना कहना असान होता है करना मुश्किल ....और अगर कोई परिवार अपनों को ऐसे में सहियोग दे भी तो यह समाज उनके हाथ बांध देता है और उनका दिमाग भी समाज की सोच के साथ हो जाता है। और वो भी वही करते है जो समाज उनसे करवाना चाहता है।"
क्षितिज: "ये आप क्या कह रहे है इंस्पेक्टर...हम लोग पढ़े लिखे अच्छे घर से है। हमें अच्छी तरह पता है की क्या सही है क्या गलत। हम समाज के साथ अपनी सोच नहीं बदलेंगे। हम बिलकुल शिल्पा का साथ देंगे "
इंस्पेक्टर: "जी हाँ मैं जानता हूँ समाज आप जैसे पढ़े लिखे लोगो की सोच को किस तरह बदल देता है...क्षितिज साहब मत भूलिए इस देश में आज भी पढ़े लिखे लोग भी दहेज जैसी सामाजिक कुरीतियों को समाज से नहीं निकल पायी है..बल्कि आप जैसे पढ़े लिखे लोग भी समय आने पर खुद समाज जैसे हो जाते है।"
"आप लोग patient से मिल सकते है" नर्स की इस आवाज़ से क्षितिज और इंस्पेक्टर की बहस ख़त्म हो गयी।
तीनो शिल्पा के कमरे की और चल दिए....कमरे के बाहर से ही शिल्पा को देखा तो शिल्पा की हालत बहुत ख़राब थी उसके बदन में जहाँ तहां पट्टियां, चोट और खरोचें लगी हुई थी। न क्षितिज और न ही सीमा उसे अच्छे से देख पा रहे थे दोनों ने अपनी ऑंखें बंद कर ली और रोने लगे। इंस्पेक्टर बोला "इसकी हालत इस से भी ज्यादा ख़राब थी। आज फिर भी वो बोल पाएगी ऐसा डॉक्टर का कहना है। चलिए अंदर चलते है.."
सीमा को तो लगा जैसे उसकी वो मसककली उसकी वो कबूतरी जो हमेशा मस्त गगन में खुली हवा में उड़ती रहती थी। हर वक़्त वही करती थी जो उसका मन करता था....यही चुलबुली लड़की....वो मसककली.....आज इस तरह लाचार गुमसुम खोयी खोयी जैसे किसी ने उसे एक कमरे में बंद कर दिया हो। उसे किसी डरवाने पिंजरे में रख दिया हो जैसे उसके पर किसी ने काट ही दिए हो....यकीन ही नहीं हो रहा था की यह वही मसककली है....क्या अब यह मसककली कभी पहले की तरह खुली हवा में मन चाहे गगन में उड़ पायेगी...क्या सीमा सच में शिल्पा को वो आत्मविश्वास और उसका खोया आत्मसमान फिर उसे लौटा पायेगी। सीमा को जैसे हर जगह बस प्रशन चिन्ह ही दिख रहा था।
to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
Tuesday, March 17, 2009
First manager paid by none
He created water to drink, sun to light and air to breath
then he created plants, animals and all other beautiful nature
He took a break while he wanted to make his best creature
He was tired He just for fun gave all his emotions, values and brain
He thought its enough time for that break and back to his work again
He make its best creature and named all it human who live in his world with peace
after that he turned to his other creation which he make in break is really a masterpiece
He take a look and smile over it as he just sight his most beautiful, stunning and best production
He knew it he can't make it over again and again thats why he introduced new concept of reproduction
His masterpiece is indeed a masterpiece but the other creature of its own doesn't know how to treat her
they think she is a GOD gift for them to have a fun, they can use her as they want to so they take her
the man took the woman and greet her as his wife,
he promised GOD that she will be with him for his whole life
he promised to care of her, love her, understand her and never to be harsh with her
first he take care of her as he promised he is always busy to treat her and fun with her
GOD was confused that He make human to take care of his whole world
But human is always busy with the Gift GOD has gifted to him as a award
Now he wanted to add some business in this world
he ask from all to be managed and organised his world
Man was asked too but he is busy in his own work
Woman listen the GOD and say yes for that work
She asked to be a first manager and the man's bosses
she said yes and proudly accepted all the Gain and Loses
GOD make man to be her labour
she can ask to man for her any favour
but she already falled in love of her man
how can she ask a favour from her man
she has to do all her stuff's her own
so she ask her man to go and earn
man go to forest to find some food but he was always busy to see all the world and explored it more
she worked whole day she washing, cooking, child caring, farming, peting, water fetching and more
when man came with little food he earned by exploring the world
she was the happiest one to know how hard her man has worked
she ask him to take a rest after they had some talk, drink and food
but he never ask her what she had done and he never in that of mood
she knew she has to manage it herself with out asking him to do so
becoz he already say no to GOD he never can organise manage the same though
she know she is not gaining anything except the pain
but she is happy when he loved her for his own fun gain
she never complaint it as she knew she can't complaint to anybody
she herself took initiative to be manager she ask him when he is ready
but he never ready to be asked even when he is to be asked he said
he is not here to do all these things he has to be in that outside world
he said to her that she is gentle, she is beautiful she has to be in his carness
there is nothing in outside world for her as he knew it is nothing a selffishness
he doesn't want to loose his freedom, his enjoyment, his adventuresness
he just say to her that she is too soft, gentle and tendered to be seen all that harshness
Is really a woman is too weak as she looked
No she is much stronger in inner as she tooked
GOD knows what she faced what she has done
since from starting She is the first manager paid by none
Monday, March 9, 2009
मसककली (part 3)
ting tong....ting tong.... घंटी बजी क्षितिज के मामा ने दरवाजा खोला...."आईये इंस्पेक्टर साहेब.....कुछ पता चला उस अनिल का...कहाँ है वो....पकड़ में आया वो...शिल्पा उसी के साथ है ना.... ठीक है न शिल्पा..."
इंस्पेक्टर: "देखिये हम लोग बहुत कोशिश कर रहे है शिल्पा को ढूँढने की.....और रही अनिल की बात तो अनिल भी दो दिनों से घर नही आया है ऐसा उसका मामा का कहना है....और अभी हमें एक लाश मिली है... अनिल के मामा को बुलाया है.....वो अनिल की लाश हो सकती है....."
क्षितिज: "तो आप यहाँ क्यूँ आए है...पता कीजिये की वो अनिल की लाश है की नही...क्या शिल्पा सच में उसी के साथ थी .....आखिर शिल्पा कहाँ है....." क्षितिज रोने ही लगा...सीमा ने उसे संभाला...और मन ही मन सोचा शुक्र है माँ अपने कमरे में सो रही है। पहले ही कितना गहरा शोक लगा है उन्हें। यह सब सुन के तो उनकी और हालत ख़राब हो जायेगी।
इंस्पेक्टर: "देखिये हम लोग शिल्पा के कॉलेज में उसके और दोस्तों से पूछ ताश कर रहे है....और इधर शिल्पा को जगह जगह ढूँढा जा रहा है। अपने उसकी गुमशुदा का इश्तहार(advt) भी अखबारों में दे दिया है.... इधर अनिल के मामा भी परेशान है। वो भी पूरा सहयोग दे रहे है....अनिल की फोटो भी जगह जगह लगी जा रही है।"
क्षितिज के मामा: "इंस्पेक्टर वो सब हम लोगो को नही पता बस आप हमारी बिटिया को ढूंढ कर वापस लाईये..और मीडिया में यह सब बातें नही आने दीजिये.... यहाँ मीडिया में न्यूज़ देख देख कर और हम लोगो की हालत ख़राब होती है...पता नही क्या क्या कहानी बना देते है.....हमारी बेटियाँ ऐसी नही थी...वो बहुत होंन्हार होशियार और सुशिल लड़की थी....वो किसी के साथ नही भाग सकती...उसके कई सपने थे...डॉक्टर बनाना चाहती थी...अपने पापा का नाम रोशन करना चाहती थी..."
इंस्पेक्टर: "हाँ हम जानते है कॉलेज में भी वो सबकी चाहिती है। सब यही बोल रहे है....आप फ़िक्र न करे हम लोग मीडिया में यह सब नही आने देंगे। बस आप मुझे उसकी स्कूल की कुछ सहेलियों या दोस्तों के बारे में थोड़ा और कुछ बताइए"
कुछ पूछ ताश के बाद इंस्पेक्टर चले गए....पूरा दिन बस इसी इंतज़ार में बीत गया की कोई ख़बर आयेगी...शाम को इंस्पेक्टर का फ़ोन आया की वो लाश अनिल की ही है। सब के सब दंग रह गए थे कहीं सच में तो शिल्पा ने उनसे सब कुछ छिपा नही रखा था...सीमा सोचती रही....कहीं अनिल को सचमुच में तो शिल्पा नही चाहती थी....नही नही अगर ऐसा कुछ होता तो ज़रूर शिल्पा उसे बताती.. आखिर सीमा शिल्पा की दोस्त जो बन गई थी....सीमा और शिल्पा दोनों एक दुसरे से कुछ नही छिपाते थे......अरे सीमा तो कभी कभी क्षितिज से की हुई बातें भी शिल्पा को बता देती थी...फिर शिल्पा उस से क्यों सब छिपाएगी....मगर शिल्पा उसकी छोटी ननद है। हो सकता है शिल्पा को सब बताते हुए शर्म आती हो क्यूंकि सीमा उसकी होने वाली भाभी थी....ज़रूरी तो नही की वो सब कुछ सीमा को और सीमा सब कुछ शिल्पा को बताये...सीमा के मन में न जाने क्या क्या विचार आ रहे थे...की अचानक क्षितिज की आवाज़ ने जैसे उसे गहरी कुए से बाहर खीच लिया हो।
क्षितिज: "सीमा मुझे माफ़ कर दो...."
सीमा: "ये तुम क्या कह रहे हो क्षितिज"
क्षितिज: "नही मुझे बोलने दो....शादी के बाद से ही एक भी पल मैंने तुमको एक भी खुशी नही दी...तुम्हारे कितने अरमान होंगे...तुम्हें कितने सपने देखे होंगे शादी को ले कर...reception को लेकर... honeymoon को लेकर...मुझे माफ़ कर दो....बस एक बार सब ठीक हो जाए...फिर मैं तुम्हे तुम्हारी सब खुशियाँ लौटा दूंगा॥"
सीमा: "क्षितिज मैं तुम्हारी पत्नी हूँ....मैंने तुमसे शादी की है....जीवन भर साथ निभाने का वादा किया है। और जो कुछ हुआ है सब के सामने हुआ है...सभी जानते है की क्या हुआ है....और क्या शिल्पा मेरी कुछ नही है.....क्या मैं उसकी कुछ नही हूँ....सब कुछ गडबडा गया है...माँ की हालत भी बिगडती जा रही है....जब सब ठीक हो जाएगा तब हम अपने बारे में सोचेंगे...अभी तो हम लोगो को शिल्पा और माँ के बारे में सोचना है....."
दो दिन बाद ही इंसपेक्टर ने बताया की अनिल की फोटो देख कर किसी ने उन्हें फ़ोन किया था....और उनके बताये पते पे जाने पे उन्हें शिल्पा मिल चुकी है...सभी ने गहरी साँस ली...और पुलिस स्टेशन चल दिए...शिल्पा से मिलने....
पुलिस स्टेशन में इंसपेक्टर ने बताया की शिल्पा को मेडिकल टेस्ट के लिए ले जाया गया है....अगले दिन तक उसे वही रहना है.....पर शिल्पा की माँ तो जिद्द ले के बैठ गई थी की उसे शिल्पा से अभी मिलना है...सीमा ने बहुत मुश्किल से उनको समझाया जहाँ इतना इंतज़ार किया है एक दिन और इंतज़ार कर लेते है....और फिर हमें ये तो पता है ना की वो सुरखित है....मिल गई है....ठीक है...वापस अपनों के पास वापस आने वाली है....खैर क्षितिज और उसके मामा के समझाने पे माँ मान गई...
to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
Tuesday, February 24, 2009
मसककली (part 2)
किताब जो उसके हाथ में थी नीचे गिर गई। वो उस किताब को उठाने के लिए झुकी ही थी की उसके पीछे से से एक आवाज़ आई....."excuse me.... सुनिए....माफ़ कीजियेगा....आपका रुमाल रह गया है...आप जहाँ बैठी थी ना...वहीँ रह गया....".....शिल्पा ने कई ऐसे किसे सुने थे जहाँ कॉलेज के लड़के लड़कियों को पटाने के लिए उल्टे सीधे तरीके अपनाते थे....यह तरीका भी उन्ही में से एक था....शिल्पा को ऐसे लड़को से सख्त नफरत थी.....जो अपनी पढ़ाई छोड़ कर लड़कियों के पीछे पढ़े रहते है...
शिल्पा को गुस्सा आया और पीछे मूड कर बिना कुछ देखे समझे बोल पड़ी....."देखिये....यह रुमाल मेरा नही है....और यह बेकार के लड़की को पटाने के टिप्स आप कहीं और जा कर इनका प्रयाग करे...यहाँ दाल नही गलने वाली समझे...." बिना रुके बिना देखे बस शिल्पा बोलती चली गई..."अभी मेरी क्लास है..मुझे देर हो रही है वरना अच्छे से आपको बताती की यह रुमाल किसका है.."...शिल्पा गुस्से से तनतनाती हुई क्लास की तरफ़ चल दी।
क्लास में भी शिल्पा थोडी देर तक यही सोचती रही....की कॉलेज में आके न जाने लोगो को क्या हो जाता है...पढ़ाई करने की जगह बेकार में लड़की या लड़के पटाने में अपना समय बरबाद करते है....खैर थोडी देर बाद उसका ध्यान क्लास में हो रही पढ़ाई की ओर चला गया....
घंटी बजते ही क्लास ख़त्म हुई तो उसकी एक सहेली ने बोला उसे भूख लगी है तो वो भी कॉलेज की कैंटीन की ओर चल दी। कैंटीन में खाते खाते मुह साफ़ करने के लिए उसे अपना रुमाल याद आया.... उसने अपना रुमॉल हर जगह देखा। बैग में, जींस की जेब में, किताबो के बीच में......फिर उसकी सहेली बोली...कहीं क्लास में ही तो नही गिर गया.....तभी शिल्पा को याद आया.... नही वो तो मैदान में ही रह गया था....जल्दी से कैंटीन से निकल कर वो वहीँ पहुंची... मगर वहां अब उसे वो लड़का कहाँ मिलने वाला था....और फिर उसे अपनी दूसरी क्लास में भी जाना था...सो वो चली गई...
सारी कक्षाएं(classes) ख़त्म होने पे शिल्पा बस स्टैंड पे खड़ी थी...धीरे धीरे उसकी सारी सहेलियों को बस मिल गई....अब वो अकेली बस स्टैंड पे खड़ी थी.....थोडी देर बाद....फिर वही पहचानी आवाज़ पीछे से आई...."यह आप ही का रुमाल है न.."...मगर इस बार पीछे से ही एक हाथ उसके सामने आया जिसमें उसका रुमाल था..शिल्पा अपना रुमाल भी पहचान गई....और शर्मिदा भी हुई। धीरे से पीछे देखा तो वही लड़का खड़ा मुस्कुरा रहा था...
"i am sorry..मैंने बिना रुमाल को देखे न जाने आपसे क्या क्या कह दिया था..."..शिल्पा के मुह से सिर्फ यही निकला.. "its ok"...उस लड़के ने मुस्कुरा कर जवाब दिया...तभी शिल्पा की बस आ गई...
बस में चढ़ने के बाद उसने उस लड़के को भी उसी बस पे चढ़ते देखा...पहले तो शिल्पा को थोड़ा शक हुआ..कहीं वो जानबुझ कर उसके साथ इस बस में तो नही चढा....फिर उसने सोचा नही फिर वो एक गलती नही करेगी....पहले ही उसे ग़लत समझ कर एक गलती कर चुकी है......वो यह सब सोच रही थी की उस लड़के ने बस कंडक्टर से कहा "मुझे जुहू तक की टिकेट दे दो...."....शिल्पा की सारी ग़लत फ़हमी दूर हो गई।
फिर वो लड़का शिल्पा की ओर देख कर बोला "आपकी कहाँ तक की टिकेट कटवाऊ"......
शिल्पा : "जी नही मैं खूब टिकेट ले लुंगी..."
शिल्पा ने भी अपनी टिकेट ली और फिर बोली.."आप जुहू में रहते है...."...
लड़का बोला "जी हाँ मैं यहाँ अपने मौसा मासी के घर रहता हूँ....और उनका घर जुहू में ही है..."
शिल्पा : "मेरा घर तो बस जुहू के चार स्टाप बाद ही है...."
लड़का : "आप कॉलेज में नई है...."
शिल्पा : "जी...आज दूसरा दिन था...और आप"....
लड़का : "दूसरा दिन...... तो बताईये आपको हमारा कॉलेज पसंद आया या नही....जी मुझे तो तीन साल हो गए है.....बस दो साल बाद मैं डॉक्टर हो जाऊँगा यह सोच कर भी हसी आती है..."
शिल्पा: "हाँ.....कॉलेज तो बहुत अच्छा है....सभी lecturers अच्छे है.. तो आप मेरे सीनियर है..फिर तो मदद हो जायेगी....क्या specialisation ली है आपने"
लड़का: "मेरा interest तो eyes specialisation में है...और आपका.."
शिल्पा: "मैं child specialist बनना चाहती हूँ"
तभी दोनों को एक खाली सीट मिल गई.....और दोनों और ज्यादा अच्छे से बात करने लगे....शिल्पा को वो लड़का कॉलेज की कई खटी मीठी बातें बताने लगा....शिल्पा को भी खूब मज़ा आ रहा था सब सुनने में...
इतने में ही उस लड़के का स्टाप आ गया....तब उनको पता चला की बातों बातों में समय कैसे बीत गया पता ही नही चला......सीट से उठते ही उस लड़के ने पुछा.."लो बातों बातों में हम एक दुसरे का नाम पूछना तो भूल ही गए..मेरा नाम अनिल है और आपका.."
"शिल्पा...." शिल्पा ने जवाब दिया...तभी बस स्टाप पे रुकी और...वो लड़का अनिल बस से उतर गया। बाकी के सफर में भी शिल्पा उसकी की खटी मीठी बातें याद आती रही.....वो बहुत खुश थी....कॉलेज के किस्से सुन कर बहुत excitemet feel कर रही थी।
"शिल्पा....ओ मेरी मसककली...." एक आवाज़ आई तो शिल्पा ने मुह उठा कर देखा..तो वो उसकी स्कूल की सहेली थी....किरन....."अरे किरन तू....तू इस बस में कैसे...".....
"हाँ मैं....और कोन....तुझे मसककली बुलाएगा... मैं तो बस अभी एक कॉलेज में अपनी फीस जमा कर के आ रही हूँ....तू बता तेरा तो admission भी हो गया है मैंने सुना है बहुत अच्छा कॉलेज है....और तेरे क्षितिज भिया की भी शादी होने वाली है"
"हाँ तुने ठीक ही सुना है...बस कॉलेज से ही आया रही हूँ और क्षितिज भइया की भी शादी 8 महीने बाद है...और सगाई दो महीने बाद..तुझे आना है....तुझे कार्ड देने आउंगी मैं तेरे घर पे...." शिल्पा बोली।
"चल फिर तेरे भइया की शादी के बाद तेरी बारी आ जायेगी.... कॉलेज में कोई लड़का देख लेना....तेरी लाइफ तो सेट हो गई कुड़िये.....मसककली.... वो क्या बोलते थे हम तुझे....हाँ.....
मैं एक मसककली (कबूतरी) हूँ बैठने को एक मुंडेर ढूंढती हूँ..
बस जो मेरे हर वक्त साथ रहे एक ऐसा कबूतर ढूंढती हूँ..
याद रखना इसे...और जल्दी से एक लड़का पता लेना....hehehehehe..."
शिल्पा: "क्या किरन तू फिर शुरू हो गई...स्कूल में भी तू ऐसे ही करती थी...एक मौका नही छोड़ती तू ना....न जाने कब सुधरेगी....तू बता तेरा admission कहाँ हुआ है।"
शिल्पा के स्टाप आने तक वो लोग बातें करते रहे...फिर शिल्पा घर भी आ गई....पर उसके chehre से वो मुस्कान अभी तक थी और अपने addmission और क्षितिज भइया की सगाई और शादी को ले के तो पहले से ही खुश थी और आज उसका दिन भी तो बहुत अच्छा जो गया था.... पर सच में वो उस शेर को कभी नही भूल पायेगी..जो अक्सर स्कूल में लोग उसे सुनते थे उसे छेड़ने के लिए.....
मैं एक मसककली (कबूतरी) हूँ बैठने को एक मुंडेर ढूंढती हूँ.....
बस जो मेरे हर वक्त साथ रहे एक ऐसा कबूतर ढूंढती हूँ.....
to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
Thursday, February 19, 2009
मसककली (part 1)
आज वो एक शादी में शामिल हुई है और एक दिन पहले भी वो एक ऐसी ही शादी में शामिल हुई थी। जहाँ उसने नही सोचा था की उसके साथ क्या क्या होने वाला था।
हाँ उसके भाई क्षितिज की शादी....वो क्षितिज से चार साल छोटी थी... उसकी लाडली बहन। क्षितिज पहले से ही उसे बहुत प्यार करता था। और शिल्पा और क्षितिज के पापा के स्वर्गवास होने बाद तो उनका रिश्ता और मजबूत हो गया था। अब क्षितिज एक भइया या एक दोस्त नही वो अब एक बाप की तरह शिल्पा की देख भाल करता था। अपने भाई को दुल्हे बना देख बहुत खुश थी शिल्पा। उसकी होने वाली भाभी सीमा भी बहुत ही अच्छी थी। शिल्पा से सीमा की बहुत बनती थी। दोनों सहेलियों की तरह तो कभी माँ-बेटी की तरह बातें किया करते थे। शिल्पा की माँ भी शिल्पा को बहुत प्यार करती थी। वो अक्सर कहा करती थी...."एक दिन मेरा बच्चा अपने पापा का नाम खूब रोशन करेगा।" हाँ शिल्पा के पापा का सपना था की वो एक बहुत बड़ी डॉक्टर बने.... अभी तो शिल्पा डाक्टरी के कॉलेज में ही गई थी। पहला ही साल था उसका।
खैर शादी के शोर शराबे में शिल्पा को बहुत मज़ा आ रहा था....सभी रिश्तेदार जो आए थे..घर खूब भरा भरा लग रहा था। उसकी माँ और उसके मामा जी ने सब काम संभाल लिए थे....तो अब उसे तो बस मस्तियाँ ही करनी थी। उसकी खूब सारी मस्तियाँ देख लोग बार बार उसे मसककली कह के बुलाते थे। वो थी ही मसककली जब देखो हवा में उड़ती रहती थी....चंचल, मस्त और हमेशा अपने में खुश रहने वाली लड़की। जो चाहे करती जो चाहे बोलती बिल्कुल खुले परिंदे की तरह। शादी के शोर शराबे में उसके इस खुले मिजाज़ और मस्तियों को देख कर तो लोग उसे और उसकी माँ को बोलने लगे "अब तो अगला नम्बर इस मसककली शिल्पा का ही है। भाई के बाद तो इसी की शादी होगी।" यह सब सुन कर शिल्पा को थोडी हसी भी आई और शर्म भी। उसकी माँ का जवाब आता "नही अभी तो इसकी उमर पढने की है..कहाँ शादी...नही अभी तो छोटी है..".....शिल्पा अपनी माँ की इस बात पर थोडी सी नाराज़ हो जाती.."क्या माँ इतनी भी छोटी नही हूँ मैं.."
गहरी सोच और यादों में डूबी शिल्पा को एक अनजानी कड़क रोबदार मर्दानी आवाज़ ने बाहर निकला....."माफ़ कीजियेगा... क्या यह रुमाल आपका है..." शिल्पा बिल्कुल सहम सी गई... फिर थोडी देर बाद जब शिल्पा थोड़ा अपने होश में आई तो वो आवाज़ फिर आई "शायद यह वहां रह गया था। आप ही का हैं ना। देखिये तो...आप का ही रुमाल है..ना।".....
शिल्पा ने सुना तो पाया आवाज़ पीछे से आ रही थी...वो मुडी और उसने देखा उस का रुमाल लिए एक हाथ उसकी तरफ़ बढ़ा हुआ था। शिल्पा ने अपना रुमाल पहचान लिया था। तो उसने शुक्रिया बोल के रुमाल ले लिया। रुमाल लेते हुए उसका हाथ उस हाथ को छु गया...उस छुवन से वो गबरा सी गई और बिन उस आदमी की और देखे वापस मूढ़ कर चल पड़ी.....पता नही उसे क्या हो गया था.....चलते चलते वो फिर सोच में डूब गई.....
मन ही मन सोचने लगी...कई सवाल मन में उठ रहे थे। ऐसा उस के साथ पहले भी हुआ है..जिसे वो कभी भूला नही पायी थी.....और शायद ना पायेगी...वही उसका रुमाल खो जाना और किसी अनजान शख्स का रुमाल वापस करना...और फिर हमेशा के लिए उसकी ज़िन्दगी का बदल जाना......... जो उसने सोचा नही था उसे अपनी ज़िन्दगी में इतना सब कुछ ..इतनी जल्दी एक के बाद एक इतने भयानक हादसों को उसे सहना पड़ेगा..वो भी इतनी छोटी उमर में...
to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
Tuesday, January 6, 2009
प्रिय पाठकों
प्रिय पाठकों (readers)
मैं आज अपने सभी पाठकों को तह दिल से अपना बहुत बहुत आभार प्रकट करना चाहती हूँ। मेरी दोनों नारी जीवनों के उपर लिखी गई कहानियो को खूब सराहा गया। सबने उसे बड़ी ही प्रेम भावः से स्वीकार किया। मैं जानती हूँ की सीमा और जिया जैसे पात्रों को यहाँ मेरे पाठकों ने खूब पसंद किया है। उनके इस प्यार और इस सहयोग के लिए मैं और मेरी कहानियो के पात्र बहुत बहुत प्रसन्न है। मैं जानती हूँ मेरे कई मित्र(पाठक) मेरी इस बात को नही मानेंगे और मेरी इस प्रसंता को प्रकट करने की छोटी सी कोशिश को सह भावः से नही स्वीकारेंगे। मेरी इस उपलब्धि को वो मेरे ही लेखन को महान बता कर बचने की भर पूर कोशिश करेंगे। जबकि सच तो यही है की लेखक अपने लेखों को तभी अच्छे से जान सकता है जब वो अपने लेखों को अपने पाठकों की नज़र से देखे। और जब मैंने अपनी कहानियो की प्रसंता आप लोगो के प्यार भरे comments में देखी तभी सच मानिए मुझे अपने ही लेखों से और प्यार हो गया। मेरे हर लेख को अपने सहर्ष स्वीकारा है। और अब यही उम्मीद करती हूँ की इस लेख को भी आप अपना प्यार देंगे।
जैसा की आप सबको याद होगा... मेरी दो कहानियाँ "nimmo bua" और "जीवनसाथी" जिनको अपने अपना बहुत प्यार दिया। उनके प्रमुख पात्र "सीमा" और "जिया" को भूले नही होंगे यही उम्मीद करती हूँ। क्योंकि मेरी अगली कहानी भी एक ऐसी ही नारी की है। "शिल्पा" जी हाँ...शिल्पा जिया के साथ उसके हॉस्टल में रहने वाली लड़की की कहानी। शिल्पा कोई और नही बल्कि सीमा की ननद है। जी हाँ क्षितिज की बहन है शिल्पा। यह कहानी जब से शुरू है जब शिल्पा की ज़िन्दगी में सीमा और जिया दोनों में से कोई भी नही था। जी हाँ.....जब उसकी जिंदगी में उसके माँ-बाप और एक बड़ी भाई के इलावा कोई भी नही था। उसका भाई क्षितिज भी उस से 4 साल बड़ा होने के कारन उसकी सभी उलटी पुलती बातों को नज़र-अंदाज़ करता था। छोटी होने की वजह से वो सबकी लाडली थी। खेर अभी मैं शिल्पा की कहानी शुरू नही करने वाली..पर हाँ जल्द ही करुँगी। उम्मीद है आप उसे भी उतना ही प्यार देंगे जितना अपने सीमा और जिया को दिया है। बस थोड़ा इंतज़ार करिए। जल्द ही वो कहानी मैं आपके समक्ष पेश करुँगी।
धन्यवाद
आपकी प्रिय लेखिका (कहानी लिखने को अग्रसर है)
हेमा
Friday, January 2, 2009
Why
you were busy in talking with someone other girl...
but now I am stand up and ready to go forward in my life,
then why you want to come to near me...
When I was always dreaming about you and myself,
you were planning new life with someone else...
But now I am wake up and stop thinking about you,
then why you starting dreaming about me...
When I was ready to give you anything whatever you say,
you said you knew wat you want and you were chasing that only..
But now I already know that there is nothing I really can give you,
then why you want one more chance from me...
When I was expecting that you will understand my love signs,
you were not even look and noticed those signs....
but now I am stopped giving those signs ans signals,
then you seeing those signs by making things of yourself...