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Wednesday, December 24, 2008
On this Christmas...New Story (Small Santa)
Atal bihari Vajpayi ji-- Happy Birthday (25th Dec)(going to be 84 years..wowwwwwww....gr888 naaa..amazing..wonderful poet.....)(ek poetess dusre poet ko Live Long Life wish karti hai)
Gurpreet Singh(my friend) Happy Birthday (25th Dec)
Kamlesh(my aunt---buaji) Happy Birthday(25th Dec)
Arun(my cousin) Happy Birthday(in advance)(26th Dec)
n to all my readers......Merry Christmas..to all of you.....
well on this christmas I want to type some story on a child...a poor boy....I wrote this story(which i think opt for the today-christmas eve) in my school time..I got inspiration when I saw a puppy died on road by accident...that time I was not able to found out the opt title for this story...but now in my mind a title is there..i.e. Real Santa of a small Puppy
Is this title opt or not i don't know plzz you help mee out here..to find right/opt title for this story..plzz suggest me some right titles for this story.......
देव एक middle class का सीधा साधा 17 साल का लड़का था। उसके पापा एक सरकारी दफ्तर में छोटे से कर्मचारी थे। उसके घर की माली हालत ठीक न होने के कारन देव कभी भी अपना मनचाहा कोई भी सामान नहीं खरीद पाता था। उसका भी मन करता था की वो दुसरे लड़को की तरह अच्छे-अच्छे नए-नए कपड़े पहने जो की नए ज़माने के फैशन के हो। वो भी दुसरे लड़को की तरह खूब सारी मस्ती करना चाहता था। उसे भी सुंदर सुंदर नयी नयी चीज़ें चाहिए थी। एक बड़ी सी सड़क के किनारे गुमसुम सा सोच में डूबा हुआ देव..मन ही मन अपनी किस्मत को कोस रहा था। तभी उसका ध्यान एक तेज आती bike की ओर गया। bike बहुत जोर से आती हुई देव के पास से गुजरी एक बार तो देव भी डर गया था कि यह क्या हुआ। फिर जब bike चली गयी तो फिर सोचने लगा। मेरे पास भी bike होती तो मैं भी थोडा सा स्टाइल में रहता। फिल्मी हीरो की तरह bike चलाता। वोह मन ही मन अपने आपको bike चलते हुए देखने लगा। फिर दो मिनट के बाद फिर उसे वही bike की आवाज़ आई जो की इस बार दूसरी तरफ से आ रही थी। इस बार bike की speed कम थी। bike पे बैठा लड़का लगभग देव की उम्र का ही दिख रहा था। उसने नए फिल्मी हीरो की तरह designer shirt और jeans पहनी हुई थी। उसने इस शाम के समय भी काला चश्मा पहना हुआ था। देव को पता था उस काले चश्मे को बड़े पैसे वाले लोग Goggles या फिर sunglasses कहते है। मगर देव के दोस्त तो उसे धुप का चश्मा ही बुलाते थे। देव यह भी जनता था की उस लड़के ने वो धुप का चश्मा स्टाइल मारने के लिए ही पहना हुआ है वरना यहाँ धुप जैसा कोई मौसम नहीं था। शाम हो चुकी थी। वो bike वाला लड़का एक नयी फिल्म का गाना गुनगुनाता bike चला रहा था। बीच बीच में सीटियाँ भी मार रहा था। वो bike फिर से एक बार मूड कर वापस आई। इस बार वो लड़का लहरा लहरा कर bike चला रहा था। देव उसी को ध्यान से देखने लगा। bike फिर से दूर गायब हो गयी।
फिर अचानक देव को किसी कुत्ते की आवाज़ आई। उसने देखा की ठीक उसके सामने कुछ ही दूरी पर एक कुत्तिया सड़क के उस और मुह करके भौंक रही थी। देव ने उस ओर देखा जहाँ वो मुह करके भौंक रही थी तो देव की नज़र सड़क की उस और खड़े छोटे से पिल्ले(puppy) पे पड़ी जो की सड़क पार करने से डर रहा था। शायद उसकी माँ उसे इस पार आने को कह रही थी। गाडियाँ भी सड़क पे आ जा रही थी जिसकी वजह से वो पिल्ला डर रहा था। देव ने सोचा क्यों न उस पिल्ले को उसकी माँ के पास पंहुचा दूँ। तो देव सड़क पार करने लगा। तभी उसने देखा सड़क clear होते ही हिम्मत करके वो पिल्ला कुछ आगे बढ़ा और सड़क पार करने लगा। तभी देव ने देखा की वो bike वाला लड़का फिर से तेजी से bike ले कर आ रहा है। देव उस पिल्ले की और भागा। bike की speed बहुत तेज थी। देव ने bike की speed की परवा किए बिना पिल्ले को बचा लिया। पिल्ला उसके हाथो में ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहा था। उसके मिमयाने की आवाज़ से साफ़ समझ आ रहा था की वो कितना डर गया था। देव ने उसके धड़कते दिल को महसूस किया जो जोरो से धड़क रहा था। कु कु कु कर वो अपनी माँ को बुला रहा था। देव ने उस पिल्ले को उसकी माँ के पास पंहुचा दिया जो की अपने बच्चे के लिए बिलख सी रही थी।
तभी देव को तालियों की आवाज़ आई। उसने देखा सड़क के दोनों किनारे कुछ लोग खड़े हो कर उसके लिए तालियाँ बजा रहे थे। सब देव की तारीफ किए जा रहे थे और साथ ही साथ उस bike वाले लड़के को बुरा भला कह रहे थे। देव फिर अपनी रहा पे चल दिया और फिर से सोचने लगा की उस बइके वाले लड़के से अच्छा तो मैं हूँ। वो चाहे बड़े घर का लड़का हो पर देव तो बहुत अच्छा लड़का है। उसने एक जीव की जान बचायी है। वो bike वाला लड़का अपनी जवानी के नशे में चूर है और उस नशे में वो क्या कर रहा है उसे भी नही पता। आज वो एक जीव की जान ले लेता। और जबकि देव भी जवान है पर उसे पता है की वो क्या कर रहा है। उसने आज एक बहुत अच्छा काम किया है। उसके पास पैसा न हो पर अच्छे संस्कार है। उसके पास अच्छा पहनने को, अच्छा खाने को, स्टाइल मारने को भले ही कुछ नही पर उसके पास अच्छी सोच, दुसरो के लिए भलाई, बहादुरी,तेज दिमाग और एक बड़ा अच्छा दिल है। वो चाहे फिल्मी हीरो की तरह दिखता न हो पर असल ज़िन्दगी में वो एक हीरो ही है। असली हीरो। जिसने अपनी बहादुरी से एक नन्हे से पिल्ले की जान बचायी है। तभी देव ने फ़ैसला किया आगे से वो कभी अपने को कम नही समझेगा और न ही कभी ख़ुद की तुलना उन लड़कों से करेगा।
THE END
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
Note:--यह कहानी मैंने उन तेज bike चलने वालो को एक सीख देने के लिए लिखी थी की ज़रा सी मस्ती, ज़रा सा स्टाइल, लड़कियों को दिखाने/पटाने का चक्कर में वो न जाने कितने मासूम जीवों की जिंदगियां सड़क दूर-घटनाओं ख़त्म कर देते है। और देव जैसे लोग सचमूच के देवता बन कर जीवों की जिंदगियां बचाते है। सच में देव उस puppy और उसकी माँ के लिए एक देवता, एक मसीहा, एक Santa बन कर आया था। या फिर उसे देवता/Santa ने अपना दूत बना कर उसे वहां भेजा था।
Note:--एक सीख और मिलती है इस कहानी से की हमें कभी भी अपनी सभ्यता अपने संस्कारों को नही भूलना चाहिए। दुसरे लोगो की हाव भावः देख कर या उनके चाल ढाल देख कर हमें कभी बिना सोचे समझे उन जैसी नक़ल नही करनी चाहिए। दुसरो की सही आदतों को अपनाना चाहिए फैशन और स्टाइल के नाम पर कुछ भी ऐसे ही नही अपनाना चाहिए।
Sunday, December 14, 2008
जीवनसाथी (part 6) (last part)
परीक्षा ख़त्म होते ही अनमोल जिया से मिला और उसे काफ़ी के लिए पुछा। Cafe coffee day पहुच कर अनमोल ने जिया से पुछा "जिया परीक्षाएं ख़त्म हो गई है। तो तुम्हारा आगे क्या इरादा है।""ह्म्म्म.... सच कहू तो मैं समाज के लिए कुछ करना चाहती हूँ। तुम्हे तो याद होगा वो इच्छा नाम की वो लड़की जो हमारे कॉलेज में वर्कशॉप करने आई थी। जिनसे मैंने बात भी की थी। बस अब उन्ही के साथ जुड़ना चाहती हूँ। ....ओह !! मैं तो भूल ही गई। अनमोल मुझे जल्दी निकलना होगा। तुम मुझे जल्दी मेरे ऑफिस के पास जों गिफ्ट वाली शॉप है वहां छोड़ दोगे प्लीज़।"
अनमोल समझ नही पाया की जिया को इतनी जल्दी क्यों है। इसलिए उसने पूछ ही लिया "वहां क्या काम है। किसी के लिए गिफ्ट लेना है क्या।" "नही नही...वो अब तुमसे क्या छुपाऊँ....का मुझे रोशन का फ़ोन आया था। वो मुझसे मिलना चाहता था। और मैं तो कल ही इच्छा जी के सामाजिक कामो के लिए अलग अलग छोटे छोटे शहरों जाने के लिए निकल रही हूँ। फिर ना जाने कब वापस आऊं। आऊं भी की नही। तुम्हे तो पता है यह सामाजिक काम ऐसे ही होते है। हमें अलग अलग जगह जाकर अनपढ़ लड़कियों को शिक्षित करना है। उन्हें पढ़ा लिखा कर उनकी जिंदगियाँ बदलनी है। उन्हें बड़े शहरों जैसी सोच देनी है। और भी बहुत से काम है। मैं तो बहुत ही उत्साहित हूँ। मगर रोशन की जिद्द है मिलने की तो मैंने उसे वहां मिलने के लिए बुलाया है।" जिया ने अनमोल को बताया और उसे हाथो से पकड़ कर उसकी bike की ओर ले गई।
अनमोल के अरमानो को फिर से किसी की नज़र लग गई थी जैसे। उसे याद आ गया फिर वहीँ पल जब उसे पता चला था की रोशन जिया से और जिया रोशन से प्यार करती है। मगर उस समय वो प्यार नया नया था। वो लोग सिर्फ़ दोस्त ही बन पाये थे। मगर आज आज तो अनमोल को बहुत ही बुरा लग रहा था कि यह सब उसी के साथ क्यों। क्यों बार बार उसकी किस्मत उसे रुलाती है। जिया हर बार उसके इतने करीब आ के दूर हो जाती है।
अगले दिन जब अनमोल जिया से मिलने उसके घर गया तो उसे शिल्पा मिली। शिल्पा को ऑफिस के लिए देर हो रही थी। इसलिए उसने अनमोल को इतना ही बताया की जिया अब वहां नही रहती वो सुबह ही इच्छा के साथ चली गई थी। अनमोल को लगा अब उसके सभी सपने जैसे टूट से गए हो।
"क्यों जिया मैडम कहाँ ख्यालों में खोयी हुई हो।" जिया ने जैसे ही यह सुना उसे लगा की यह आवाज़ उसने कहीं सुनी हुई है। उसने अपनी पुरानी यादों से निकल कर पीछे देखा तो बाहें फैलाये शिल्पा खड़ी थी। हाँ आज शादी के इस पावन दिन में उसे पुराने दोस्तों की याद तो आ ही रही थी। मगर किसी का कुछ पता नही होने के कारण वो किसी को बुला ही नही सकी। शिल्पा को उसी पते पे शादी का कार्ड भेजा था। उम्मीद नही थी वो आएगी। जिया शिल्पा को देखते ही उस से लिपट गई। "शिल्पा...ओ ...शिल्पा...मुझे खुशी हुई तुम आई।"
"बहुत मुबारक हो। आज का दिन हर लड़की के लिए एक यादगार दिन होता है। तुम्हारी इस खुशी में मुझे तो शामिल होना ही था।" शिल्पा ने कहा। "इन पिछले 2 सालो में जबसे तुम गई हो तुम्हारी कोई ख़बर ही नही आई। कहाँ हो, कैसी हो, क्या कर रही हो। न कोई चिठ्ठी न कोई फ़ोन। हमको तो जैसे भूल ही गई थी तुम।" शिल्पा ने जैसे जिया से शिकायत सी की थी।
"नही ऐसी कोई बात नही है तुम लोगो को कैसे भूल सकती हूँ मैं। ख़ास कर तुम्हे और अनमोल को। तुम दोनों को इन सालो में बहुत याद किया। और आखिरी दिन जब तुमने मुझे बताया था की अनमोल ही मेरे लिए ठीक लड़का है वो दिन तो मेरे लिए जैसे बहुत मायने रखता है। उस दिन मैं समझ नही पायी थी की तुम क्या कहना चाहती थी। पर आज समझती हूँ। सच में अनमोल ही मेरे लिए सही लड़का था। हर बार मैं उसकी भावनाओं को समझ नही पाती थी। पर अब मुझे लगता है की मैं भी उस से बहुत प्यार करने लगी हूँ। उसके पास न होने से जो खालीपन मुझे लगता है मैं तुम्हे नही बता सकती शिल्पा। वो मुझसे प्यार करता था। मैं जानती थी। हाँ जानती थी मैं और जानते हुए भी मैंने उसे कभी सुनना ही नही चाहा। क्योंकि उस समय सिर्फ़ रोशन के कुछ और सोचती नही थी। समझती नही थी। लेकिन आज इतने सालो से अनमोल से दूर रह कर अपनी जिंदगी में उसकी एहमियत समझ गई हूँ मैं। आज प्यार को समझ गई हूँ मैं। रोशन के ख्याल को दूर करने के लिए ही मैं उस से आखिरी बार मिली थी। उसी के बाद मुझे अनमोल का प्यार नज़र में आने लगा। और आज जब मेरी शादी किसी और लड़के से हो रही है जिसे मैंने देखा तक नही है तो मुझे रह रह कर अनमोल की ही याद आ रही है। शिल्पा तुम सही थी की अनमोल मुझसे प्यार करता था और मैं उसे बस दोस्त ही समझती थी। और आज जब मैं उस से प्यार करती हूँ तो वो मेरी ज़िन्दगी में है ही नही।" बोलते बोलते जिया रोने लगी थी। शिल्पा ने उसे संभाला और गले लगा लिया। फिर थोडी देर उसने जिया से पुछा.."जिस लड़के से शादी हो रही है उसे देखा तक नही है मतलब तुम यह शादी किसी मजबूरी में कर रही हो जिया.....बोलो।"
"नही..ऐसी बात नही है शिल्पा..माँ और पापा ने मुझसे पुछा था..और उस लड़के से मिलने को भी कहा था। मगर मैंने ही मना कर दिया। जब लड़का मुझे नही देखना चाहता तो मेरे देखने से क्या फरक पड़ेगा। माँ और पापा ने उसे देखा है। उनकी नज़र में ठीक है यह रिश्ता यह शादी तो मैंने हाँ कर दी। हर बार मैंने अपनी ज़िन्दगी के लिए ग़लत फैसले किए है इस बार दुसरो को मेरे लिए कुछ फैसले करने दूँ। शायद वो लोग ठीक हो। ज़िन्दगी की नई शुरुवात दुसरो के किए फैसलों से...चलो अब इस तरह भी जी लिया जाए।" जिया ने बड़ी बेरुखी से कहा तो शिल्पा सोच में पड़ गई।
तभी अचानक जिया की मौसी वहां आई और जिया से बोली..."जिया खिड़की से बाहर देखो बारात आ गई है। जल्दी जल्दी...अपने दुल्हे को देख लो..अपने दुल्हे को घोडी चड़े देखना अच्छा होता है। चलो...." जिया को खिड़की की ओर ले गई उसकी मौसी।
बारात बहुत अच्छी थी। बहुत से लोग खुशी से नाच रहे थे। तभी अचानक जिया ने देखा की बारातियों में उसके सारे दोस्त शामिल थे। उसे कुछ समझ नही आ रहा था। वो सोच ही रही थी की उसका ध्यान शिल्पा ने इशारे से घोडी पे चड़े दुल्हे की ओर कर दिया। जिया ने दयां से देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना ही नही रहा। उसे यकीन ही नही हुआ की जो वो देख रही है वो सपना है या कुछ और। दुल्हे बने अनमोल ने भी तभी खिड़की की ओर देखा और मुस्कुरा दिया। तभी शिल्पा कुछ सोच बोली..."ओह....अब समझी की क्यों लड़के ने तुझे देखने से मना कर दिया था। जिया अनमोल मुझे कुछ महीनो पहले ही मिला था तो मैंने उसे तेरे और रोशन के बीच हुई आखिरी मुलाक़ात के बारे में सब बता दिया था कि तुम रोशन से मिलने क्यों गई थी। तुम रोशन को अपनी ज़िन्दगी से पूरी तरह निकलने के लिए ही उस से आखिरी बार मिली थी। मुझे नही पता था कि अनमोल इतना सब कुछ प्लान कर लेगा।"
और फिर जिया कि शादी खूब धूम धाम से हुई। सभी दोस्तों नऐ मिलकर अनमोल और जिया के लिए खूब सारी शुभकामनाएं दी और खूब नाचे गाये। सच में एक यादगार दिन और एक यादगार शादी।
THE END
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
जीवनसाथी (part 5)
तीन चार महीनो बाद अनमोल जिया को लेने उसके घर गया। "जिया...जिया... जल्दी करो कॉलेज के लिए देर हो रही है। रोशन चला गया क्या...?" अनमोल ने जिया से पुछा जो कि पूरी तरह से तयार नही थी।"
हाँ बस पाँच मिनट दो अभी बाल बना के आती हूँ। जब तक तुम मेरा लंच बाँध दोगे क्या अनमोल। हाँ रोशन तो ऑफिस के लिए कबका निकल गया है।" जिया ने बोला। अनमोल जल्दी जल्दी जिया का खाना बाँधने लगा। जिया भी जल्दी से बाल बनाने लगी। "अनमोल जरा लंच को उस लाल बैग में रख दो। मैं sandle पहन लेती हूँ। " जिया ने अनमोल को अगला काम बताया। अनमोल करता क्या न करता चुप चाप लंच को लाल बैग में रखने लगा। अचानक उसकी नज़र लाल बैग के अंदर पड़ी। उस बैग में जिया के कपड़े भी थे। और साथ ही में एक बड़ा बैग और रखा हुआ था। अनमोल कुछ समझ पाता इस से पहले ही जिया कि आवाज़ उसके कानो तक पड़ी। "चलो मैं तयार हूँ।....ओह !! हाँ आज सामान कुछ ज्यादा है। वो मुझे शिल्पा के यहाँ जाना है कुछ दिनों के लिए।"अनमोल यह सुनकर थोड़ा परेशान हो गया। उसकी परेशानी देख जिया फिर बोली "रोशन के चाचा कल यहाँ आ रहे है तो रोशन ने मुझे बोला कि मैं जब तक शिल्पा के यहाँ रह लूँ। अब जल्दी चलो वरना देर हो जायेगी। पहले यह सामान शिल्पा के यहाँ भी छोड़ना है। शिल्पा भी इंतज़ार करती होगी।....चलो चलो न।" जिया अनमोल को खीचते हुए बाहर ले गई।
दो दिन बाद जब अनमोल ने अपने घर से बाहर देखा तो उसे रोशन के घर के सामने बहुत सारे लोगो की भीड़ नज़र आई। अनमोल बाहर आया तो उसे पता चला कि रोशन ने कई महीनो से मकान मालिक के समझाने के बाद भी घर का किराया नही दिया है इसीलिए उसके मकान मालिक ने पुलिस बुलाई है। अनमोल ने बहुत बीच बचाव करने कि कोशिश कि मगर मकान मालिक मान ही नही रहा था। रोशन बोल रहा था कि उसकी नौकरी लग गई है और अब सब ठीक हो जाएगा मगर मकान मालिक पर कोई भी बात असर नही कर रही थी। अनमोल के पास भी कुछ खास रकम नही थी जिस से वो मकान मालिक का मुह बंद कर सके। पुलिस रोशन को वहां से ले गई।
अगले दिन अनमोल जिया के साथ रोशन को छुडाने पुलिस स्टेशन भी गए मगर वहां पता चला कि रोशन के घरवाले सुबह ही आ कर उसे ले गए। वापस घर आकर देखा तो रोशन वहां भी नही था। जिया का रो रो कर बुरा हाल हो रहा था। काफ़ी देर से उसे फ़ोन भी लगाया मगर रोशन का फ़ोन तो बंद था। पूरा दिन रोशन को ढूढ़ते ढूढ़ते जब वो दोनों थक गए तो अनमोल ने जिया को शिल्पा के यहाँ छोड़ दिया और ख़ुद भी घर आ गया। रोज़ वो पड़ोसियों से रोशन के बारे में पूछता कि वो आया था सामान लेने तो सब उसे यही कहते कि उस दिन पुलिस के साथ ही उसे देखा था।
to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
Saturday, December 13, 2008
जीवनसाथी (part 4)
अनमोल ने बहुत कोशिश की मगर जिया उसे कुछ नही बता रही थी। फिर अनमोल को लगा शायद कुछ ऐसा हो ही नही जैसा वो सोच रहा है जिया ठीक ही कह रही हो कि थकान की वजह से वो ऐसी लग रही हो उसे। या फिर ऐसा भी हो सकता है की वो अनमोल को बताना ही नही चाहती हो।
अगले दिन अनमोल ठीक सुबह 8 बजे अपने नए मकान के सामने अपना सामान लिए खड़ा था। ऑटो वाले को पैसे दे ही रहा था कि उसकी नज़र सामने वाले घर पर पड़ी। वहां उसने रोशन को अंदर जाते हुए देखा। उसने आवाज़ लगनी चाही पर रोशन अंदर जा चुका था। अनमोल ने सोचा पहले घर ठीक थक कर लूँ फिर सामने वाले घर में जा कर रोशन से मिल कर उसे surprise कर दूंगा। अनमोल खुश था कि उसके सामने वाले घर में कोई उसका जानने वाला ही रहता है।
करीब 8:30 बजे अनमोल घर से निकल कर सामने वाले हर की ओर चल दिया। वो उस और जा ही रहा था की उसने देखा की रोशन अपनी bike पर एक लड़की को बिठाये ले जा रहा है। वो सोच में पड़ गया की वो लड़की कौन हो सकती है। क्योंकि अनमोल जनता था की रोशन अकेला ही रहता है। उसके साथ और कोई नही था इस शहर में।
दिन भर अनमोल सोचता रहा। उसे कभी तो लगता की उसकी सोचने की शक्ति ख़त्म सी हो गई है। और कभी उसे लगता की वो जो सोच रहा है ऐसा क्या पता हो ही ना। शाम को करीब 4 बजे उसने कॉलेज जाने की सोची। वो जिया से मिलना चाहता था....सच का पता लगना चाहता था। वो कॉलेज के गेट तक पंहुचा ही था की उसे महक और दीपक दिखे। उनसे पूछने पे पता चला की जिया आज जल्दी ही कॉलेज से चली गई थी।
वापस घर आया तो अनमोल ने जिया को रोशन के साथ ही देखा। दोनों उस सामने वाले घर की और जा रहे थे। उन लोगो ने भी उसे देख लिया था। "अरे अनमोल तुम यहाँ कैसे ....कितनो दिनों बाद मिले..." रोशन बोला। अनमोल ने देखा की जिया ने वही कपड़े नही पहने हुए थे जो सुबह उसने रोशन के साथ बैठी लड़की को पहने देखा था। अनमोल को लग रहा था की वो दलदल के अंदर धसता चला जा रहा है। कोई कुए में उसे दखा दे रहा है।
जिया थोडी सी डरी हुई लग रही थी। "अनमोल तुमने घर कहाँ लिया है। आस पास ही है क्या।" जिया ने अनमोल से पुछा। "हाँ सामने वाले घर मेरा ही तो है।" अनमोल ने जवाब दिया तो जिया के डर में और गहरायी आ गई थी। "अरे वाह! यह तो बहुत अच्छा हुआ अब मुझे रोज़ रोज़ जिया को कॉलेज नही छोड़ना पड़ेगा। क्यों जिया अब तुम अनमोल के साथ रोज़ कॉलेज चली जाना।" रोशन खुश हो कर बोला।
"अनमोल तुम्हे बहुत कुछ बताना है चलो घर के अंदर आओ। ऐसा बहुत कुछ है जो तुम्हे नही पता है।" जिया ने अनमोल का हाथ पकड़ कर घर के अंदर आने को कहा तो अनमोल चल दिया क्योंकि उसे अपने बहुत सारे सवालों के जवाब भी तो चाहिए थे जिया और रोशन से।
to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
Friday, December 12, 2008
जीवनसाथी (part 3)
अपने कमरे को खुला पाकर जिया समझ गई थी की शिल्पा कमरे में ही है। शायद आज वो ख़ुद लेट हो गई थी। बहुत थक गई थी वो। कमरे के अंदर आते ही उसने अपना बैग एक ओर पटका और अपने बिस्तर पर अपने आपको ढीला छोड़ कर गिरा दिया। बिस्तर पे पड़ते ही उसे बहुत आराम महसूस हुआ। "क्या बात है जिया बहुत खुश लग रही हो। और आज इतनी देर कहाँ लगा दी मैडम ने। लाइब्रेरी में इतनी देर तक पढ़ रही थी क्या। या फिर रोशन के साथ कहीं लम्बी सैर करके आई हो।" शिल्पा जैसे उसे छेड़ रही थी। असल में तो जिया रोशन के साथ पूरा दिन घूम कर ही आई थी। उसका आज पूरा दिन बहुत अच्छा गया था।
"तो इसका मतलब तुमने रोशन को हाँ कर दी है। है ना !!...मैं जानती थी तुम रोशन को न नही बोल सकती। मैंने तो रोशन को बोला भी था कि वो बेकार में तुम्हारे जवाब की इतनी फ़िक्र कर रहा है। सभी जानते थे कि तुम हाँ ही बोलोगी।" शिल्पा का इतना बोलना था कि जिया ने उसे टोक दिया। "मतलब रोशन मुझे अपने प्यार का इज़हार करने वाला है तुम सबको पहले ही पता था। और मेरी दिल उसके लिए धड़कता है यह भी सब जानते थे।"
"हाँ... यह तो सब जानते है। कि तुम रोशन से बहुत प्यार करती हो। रोशन ने यह सब परसों ही बोलने का प्लान बना लिया था जब वो मुझसे मिला था। वो जानना चाहता था कि तुम उसके बारे में क्या सोचती हो। उसने मुझे भी बताया कि वो भी तुमसे प्यार करता है। तो मैंने ही बोला कि देर न करो जल्दी से जल्दी बोल दो।....तुम खुश हो ना जिया॥"
"हाँ!! बहुत खुश हूँ।" बस इतना बोल जिया सुन्हेरे सपनो में खो गई। और शिल्पा ने भी उसे और तंग न करने को सोचा। मगर शिल्पा कल ही जिया से एक पार्टी की उम्मीद तो कर ही रही थी।
"हेल्लो जिया.....कैसी हो यार। तुम्हारी तो परीक्षायों के बाद न कोई बात न ख़बर" महक जिया को कॉलेज में आते देख दूर से ही बोली। "हेल्लो महक मैं कहाँ गई हूँ यार तुम ही सब लोग कॉलेज की छुट्टियों में कहीं चले गए थे यार। मैं परीक्षायों के दो दिन बाद घर गई थी। और एक हफ्ते में ही वापस आ गई थी। वापस आ कर पता चला तुम सब शहर में ही नही हो।" जिया ने महक के साथ साथ क्लास कि ओर चलते हुए से महक से पुछा।
"हाँ मैं तो अपनी नानी के यहाँ चली गई थी। दीपक और टीना भी अपने अपने relatives के यहाँ। रहमान तो घूमने कहीं गया हुआ था। हमने सोचा तुम पूरी छुट्टियाँ अपने घर में ही बिताने वाली हो। अनमोल का भी कुछ अता पता नही है।" महक ने जिया को बताया। "हाँ अनमोल भी शायद अपने घर ही गया है।" जिया बोली।
"महक.....जिया .....महक....जिया...." पीछे से आवाज़ आई तो दोनों ने पलट कर देखा तो उन्हें नज़र आया। "कैसे हो रहमान...." जिया ने पुछा। "हाँ मैं अच्छा हूँ तुम लोग कैसे हो...तुम लोगो ने दीपक और टीना की ख़बर सुनी। वो लोग अब साथ साथ रहने लगे है। LIVE-IN you know.."
LIVE IN यह बात जिया ने पहली बार रोशन से सुनी थी। जब रोशन उसे अपने घर बुला रहा था साथ रहने के लिए। यह सब उसे बहुत अजीब लगा था इसीलिए जिया ने उसे मना कर दिया था। हालाकि शिल्पा ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की थी कि इसमें कोई बुराई नही है। मगर जिया यह करना ही नही चाहती थी। जिया यह सब सोच ही रही थी कि अचानक एक आवाज़ से वो चौक गई। "क्या बात है पूरी पलटन यहीं है....कैसे हो दोस्तों..." यह दीपक कि आवाज़ थी जो कि टीना के साथ आ रहा था। दोनों बहुत खुश नज़र आ रहे थे।
"जिया कैसी हो तुम और तुम्हारा वो कैसा है रोशन..." टीना ने उस से शरारती नज़रों से पुछा। "हाँ सब ठीक है। मैं यहीं पार्ट टाइम नौकरी करती हूँ। और रोशन भी नौकरी ढूंढ रहा है।" जिया ने जवाब दिया तो सबने उसे नौकरी के लिए बधाइयाँ दी।
तभी उनकी second year की पहली क्लास शुरू हो गयी। अनमोल भी दूसरी क्लास के ख़त्म होते ही आ गया। उसके आते ही सब बहुत खुश हुए। अनमोल भी सबसे मिलके खुश हुआ। मगर अनमोल को जैसे की पता चल चुका था कि जिया के साथ कुछ हुआ है वो उसे खुश नज़र नही आ रही थी। अनमोल जानता था कि जिया सबके सामने नही बताएगी। हाँ अनमोल ने यह सोच लिया था कि अकेले में मौका देख कर वो उस से ज़रूर पूछेगा।
to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
Thursday, December 11, 2008
जीवनसाथी (part 2)
करीब 2 बजे रोज़ जिया और अनमोल रोशन के बुलाये गए स्थान पर पहुँच जाते थे। अनमोल आगे आगे और जिया पीछे पीछे अब अनमोल से से जिया को कोई भी दिक्कत महसूस नही होती थी। वो अनमोल को अपने अच्छे दोस्तों में देखने लगी थी। उस पर विश्वास करने लगी थी। क्योंकि कहीं न कहीं जिया को भी लगता था कि वो भी एक सीधे-साधे छोटे शहर से था इसीलिए वो जिया को अच्छे से समझने लगा था। और जिया भी उसे समझने लगी थी। मगर अब भी जिया रोशन को देखती तो देखती रह जाती थी... हालाकि रोशन से उसकी कुछ खास बात नही होती थी क्योंकि रोशन उस से ज्यादा बात ही नही करता था। नाटक एक बहुत ही हास्य विषय पर था। पति पत्नी को बीच होने वाली नोकझोक में कैसे नौकर लोग मज़े लेते है यह नाटक में हास्य रस के साथ अच्छे से दर्शाया गया था। जिया और अनमोल बहुत अच्छे से अपना अपना पात्र प्रस्तुत कर रहे थे।
फिर जब नाटक का दिन आया। जिया को मंच पे सबके सामने आने में हल्का सा डर महसूस हो रहा था। अनमोल को बताना चाहती थी पर वो भी उसके करीब नही था। वो मंच के पीछे तैयार खड़ी थी तभी उसे रोशन दिखा। उसने उसे पुकारा और अपनी परेशानी बताने कि कोशिश की "वो रोशन....ह्म्म्म्म....यूँ सबके सामने....पता नही ठीक से.....ह्म्म्म...वो क्या है न...पहले कभी..."
"तुम फ़िक्र न करो सब ठीक होगा। तुम लोग बहुत अच्छा कर रहे हो। और फिर यहाँ कोई और है भी तो नही बस हम विद्यार्थी लोग ही हैं इनसे क्या डरना।" रोशन बहुत अच्छे से जिया को समझा रहा था। मगर जिया भी कहाँ उसे ठीक से सुन पा रही थी..उसे तो रोशन को एक नज़र भर देखना ही था। खैर यह पहली बार था जब जिया को रोशन अकेले में मिला था और बहुत सी बातें कर रहा था।
फिर कुछ ही महीनो बाद रोशन से उसकी दोस्ती पक्की हो गई थी। अब्ब रोशन और जिया अच्छे से खुल के बातें करते थे। रोशन को जैसा जिया ने सोचा था वो उसके बिल्कुल उलट था। बहुत खुलके और हसी मजाक करने वाला। सबको उसका व्यवहार पसंद था। जिया भी अब रोशन जो चाहे वो कह सकती थी। अब वो उसे देखती ही नही रहती थी बल्कि उसकी बातिएँ भी अच्छे से सुनती और अपनी बातें उसे सुनाती थी। रोशन के सामने वो अनमोल, दीपक, रहमान, महक और टीना सबको भूल जाती थी। जिया क्लास में इन सबके साथ होती थी मगर क्लास के बाद रोशन का साथ ही उसे भाता था। रोशन जहाँ कहता वो उसके साथ चल देती थी। रोशन को वो शिल्पा से भी मिलवा चुकी थी जब एक बार रोशन उसे हॉस्टल तक छोड़ने आया था। शिल्पा को भी रोशन ने अपना दीवाना बना दिया था। जिया और रोशन अक्सर कॉलेज के बहार भी मिलने लगे थे और अब कॉलेज में तो सब उसकी और रोशन की बातें भी करने लगे थे। इसी तरह दिन बीतने लगे।
कॉलेज का एक सत्र ख़त्म होने को था। परीक्षाएं सर पर थी अनमोल और जिया अब पडी पे ध्यान देने लगे। ज्यादा से ज्यादा समय लाइब्रेरी में बीतने लगा था उनका। क्लास नोट्स और किताबें एक दुसरे से share करते थे।
एक दिन अनमोल लाइब्रेरी में आते ही जिया से बोला "रोशन तुमको कैंटीन के पास बुला रहा ही उसे कुछ ज़रूरी काम ही शायद। " जिया बोली "अभी नही ...अभी यह भाग पड़ लूँ फिर जाती हूँ।" अनमोल उसके सामने से किताब अपनी ओर सरकाते हुए बोला "नही फिर नही अभी जाओ। मैं यह भाग पूरा पढ़ कर तुमको कल बता दूंगा अच्छे से अभी तो तुम रोशन की बात सुन लो ध्यान से।"
जिया को यह सब अजीब लगा था। पर फिर भी वो उठी और कैंटीन की ओर चल दी। जैसे ही वो कैंटीन के दरवाजे के पास पहुँची उसे किसी के गाने की आवाज़ सुने दी। "तुम बिन जाऊं कहाँ....तुम बिन जाऊं कहाँ..." जिया ने अंदर जाते ही देखा की यह कोई और नही रोशन ही गा रहा था। जिया को कुछ समझ नही आ रहा था। जिया को देख रोशन और जोरो से गाने लगा। जिया का हाथ थाम कर उसके साथ नाचने लगा। जिया भी खुश होने लगी। फिर गाना ख़त्म होते ही रोशन अपने घुटनों के बल बैठा और एक हाथ जिया की और बड़ा कर उसने कहा.."जिया मुझे नही पता क्यों पर जबसे तुम पढ़ाई की वजह से मुझसे कम मिलने लगी हो मैं तुमको हर पल याद करता हूँ। मुझे पता नही क्या हो गया ही एक एक दिन तुम्हारे साथ बिताया हुआ हर एक पल मुझे याद आता है। मैं ख़ुद पढ़ाई की ओर ध्यान नही दे पा रहा हूँ। रह रह के दिल में यही बात आ रही थी की आज तुमसे कह ही दूँ। शायद तभी मैं पढ़ाई पे पुरा ध्यान दे सकूँ...सोचा था यह बात मैं तुमको कुछ बनके कोई job के ढूँढने के बाद बोलूँगा पर अब रहा नही जाता...इसलिए अच्छा है मैं आज ही बोल दूँ...की.....की....I LOVE YOU......मुझे पता है इस तरह प्यार का इज़हार करना बहुत अजीब लग रहाहोगा तुम्हे..मुझे भी लग रहा है बस अब तुम भी बोल दो की ...YOU LOVE ME TOO.."
to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
Wednesday, December 10, 2008
जीवनसाथी (part 1)
"मौसी बारात आ गई है......गली के उस छोर पे है बारात" काजल ज़ोर से बोलती हुई उपर के कमरे तक आई। काजल जिया की मौसेरी बहन है। जिया को भी उसकी आवाज़ सबसे उपर के कमरे तक आ गई थी। जिया मन ही मन सोच रही थी कि आज उसकी शादी है...वो दुल्हन बनी तैयार खड़ी है...सभी ओर खुशियाँ ही खुशियाँ है। जैसा कि वो अपने सपनो में देखा करती थी। कितना कुछ बदल गया है उसकी ज़िन्दगी में पिछले इन 5 सालो में। यह घर नही बदला यहाँ के लोग नही बदले मगर फिर भी कितना कुछ बदल गया है।
उसे याद है जब वो यहाँ के पास ही के स्कूल से 12th पास करके घर आई थी तो उसके घर वाले कितने खुश थे। उसके नम्बर ही इतने अच्छे आए थे। तभी तो उसका दाखिला बड़े आराम से बड़े शहर के बड़े कॉलेज में हो गया था। वो तो बहुत खुश थी उसकी माँ ही बस थोड़ा परेशान थी..क्योंकि वो पहली बार घर से परिवार वालो से दूर जा रही थी। और वो भी इतनी दूर बड़े शहर में ..जहाँ वो किसी को नही जानती थी।
पर उसे फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत ही नही पड़ी उसके पापा और उसके मामा ने उसे एक अच्छे से girls hostel में ठहरवा दिया था जहाँ उसे किसी बात की परेशानी नही थी और माँ को भी बहुत समझाया पापा और मामा ने की माँ मना ही नही कर पायी। डरते डरते रोते रोते विदा किया जिया को।
जिया नए शहर में आके बहुत खुश थी। उसे पहले दिन ही एक अच्छी दोस्त मिल गई थी जो की उसी के कमरे में उसके साथ रहने वाली थी। वो उस से बड़ी थी और शहर के बड़े पोश इलाके में नौकरी करती थी। उसका नाम शिल्पा था। वो यहाँ दो साल से रह रही थी। शिल्पा ने भी येही इसी शहर में अपनी कॉलेज की पढ़ाई की थी और फिर यही काम करने लगी थी। कुछ ही घंटो की बातचीत में शिल्पा से जिया की अच्छी दोस्ती हो गई थी। अगले दिन कॉलेज जाना था। कॉलेज का पहला पहला दिन miss नही करना चाहती थी जिया इसलिए सुबह 7:00 बजे का alarm लगा के वो सो गई।
सुबह 9:00 बजे की क्लास के लिए जिया बहुत जल्दी कॉलेज पहुँच गई थी। कॉलेज में बहुत भीड़ थी..जैसे की कोई मेला लगा हो..शिल्पा ने जिया को बताया था की कॉलेज का माहोल ऐसा ही होता ऐसा ही होता है। क्लास में जैसे ही जिया ने कदम रखा क्लास के सभी लोगो ने तालियाँ बजाना शुरू कर दिया। उसे नही पता था की क्या हो रहा है उसने देखा की क्लास के एक और सब डरे हुए सहमे हुए कोई 30-40 लोग खड़े थे। और क्लास के दूसरी और कुछ रोबदार कुछ हसी ठिठोली करते हुए लोग खड़े थे।
"तुम first year की स्टुडेंट हो" उस रोबदार लोगो में किसी ने जिया से पुछा। जिया कुछ बोल पाये उस से पहले ही वोह फिर बोला...."मैं रोशन हूँ। तुम्हारा सीनियर 3rd year से।" जिया ने देखा वो लंबा-चौडा अच्छी कदकाठी वाला लड़का था। कुछ देर के लिए तो वो सब कुछ भूल कर उसे देखती ही रही।
"हमने एक गेम प्लाट किया है की जो भी अगला नया लड़का और नई लड़की इस क्लास में आएगा वो हमारे अगले कॉलेज में होने वाले नाटक में पति पत्नी के पात्र निभाएंगे। तुम वो लड़की हो इसलिए मुबारक हो। अब देखना यह है की नया लड़का कौन होगा जो तुम्हारे साथ उस नाटक में तुम्हारा पति का पार्ट निभाएगा।"
जिया कुछ समझ नही पा रही थी की यह क्या हो रहा है। मगर उसे वो सब करना होगा जो उसे उसके सीनियर कहेंगे यह बात शिल्पा ने उसे बताई थी। खैर वो भी सबकी तरह अपनी नज़रें क्लास के दरवाजे की ओर लगाये खड़ी हो गई। करीब 10 min बाद एक लड़का क्लास में अंदर आया..वो एक नीली shirt और काली jeans में सिंपल सा लड़का था। पतला दुबला मगर लंबा और चौडे कन्धों वाला लड़का था। रोशन ने उसको भी वही सब समझाया जो उसने जिया को समझाया था..वो लड़का पहले तो हिचकिचाया फिर शायद जिया को देख कर मान गया।
रोशन ने उन दोनों को क्लास में साथ बैठने को कहा...और सदा साथ रहने को कहा। जिया ने उस दिन हरे रंग का सूट डाला था क्योंकि उसे पता था की हरा रंग उसपे बहुत खिलता है। रोशन और उसके साथियों के जाते ही सबने एक गहरी साँस ली फिर एक दुसरे से बातें करने लगे। सब लोग उन सेनिओर्स के बारे में बात करते और उनके रोबदार रवैये को याद कर सहम जाते। जिया को भी बहुत सी बातें पता चली की उसके आने से पहल भी वो लोग नए लड़के लड़कियों से गाना गवाना डांस करवाना एक दुसरे से लडाई करना सब कुछ करवा चुके थे। कई नए लड़को ने मना भी किया तो उनको सज़ा भी दी गई थी। पहले ही दिन जिया सहम गई थी।
तभी क्लास में प्रोफ़ेसर आ गए और क्लास शुरू हो गई। क्लास में सब और शान्ति ही शान्ति थी और प्रोफ़ेसर के जाते ही फिर वही शान्ति भंग हो गई थी। सब लोग एक दुसरे के बारे अच्छे से जानना चाहते थे।
"हेल्लो मेरा नाम अनमोल है। अब हमें साथ ही रहना है तो एक दुसरे के बारे में थोड़ा जान ले तो ठीक रहेगा। आपका नाम....." साथ बैठे उसी लड़के ने जिया से कहा।
"hi. जी मेरा नाम जिया है।....." जिया ने उत्तर दिया। थोडी देर तक अनमोल जिया से बात करता रहा कुछ अपने बारे में बताता और कुछ जिया से पूछता जिया भी बस दो टूक जवाब देती। बाकी का पूर दिन इसी तरह क्लास और बातों में निकल गया। जिया ने दो दोस्त और बना लिए- महक और टीना और उधर अनमोल ने भी कुछ दोस्त बनाये- दीपक और रहमान। सबने एक साथ कैंटीन में खाना भी खाया
जिया का पहला दिन कुछ खास नही गया जैसा की शिल्पा ने उसे बोला था की यह दिन एक यादगार दिन होता है। हाँ जिया ने कुछ नए दोस्त ज़रूर बनाये मगर वो तो रोशन को अपना दोस्त बनाना चाहती थी। खैर अगले कुछ 7-8 दिन ऐसे ही कॉलेज में घुमते घुमते ही चले गए। कॉलेज का खेल का मैदान कॉलेज की लाइब्रेरी कॉलेज के गेट के पास बैठा चाट वाला।
"जिया...जिया..." लाइब्रेरी के पास जिया महक, टीना, दीपक और रहमान के साथ खड़ी थी की तभी उसे आवाज़ सुनाई दी। उसने पलट के देखा तो अनमोल उसे पुकार रहा था। अनमोल के साथ रोशन भी था जिसे देख कर जिया पता नही क्यों खुश सी हो गई थी। जिया बिना कुछ सोचे उस और चल पड़ी। "hello sir....how r you sir" जिया ने रोशन की और देख कर पुछा। "सर नही नही.... जिया सर नही मुझे रोशन ही बोल सकती हो..यार हम एक ही कॉलेज में है ..यह सर सर तो ऐसा लगेगा जैसे की मैं कितना बड़ा हूँ..मैं बिल्कुल ठीक हूँ ...तुमको याद है न हमारा नाटक जिसमें तुम्हे और अनमोल को साथ साथ काम करना है। अनमोल बता रहा था की तुम लोग अब अच्छे दोस्त बन गए हो। अच्छा है अब तुमको साथ साथ काम करने में कोई परेशानी नही होगी।"
"जिया मैंने रोशन को बताया है की मैं पहले भी कई बार नाटक कर चुका हूँ। मुझे स्कूल में भी नाटक करने का बहुत शौक था। रोशन तुम फ़िक्र न करो हम सब संभाल लेंगे। मुझे बहुत अच्छा लगा रोशन की तुम लोगो ने हम नए और fachchas को साथ में ले कर एक event कर रहे हो..." अनमोल बोला।
"नही ऐसी कोई बात नही है वो तो हम लोगो को खुश होना चाहिए की हम नए talent को एक मौका दे रहे है..यह तो बहुत अच्छा है अनमोल की तुम पहले से ही बहुत काम कर चुके हो। फिर तो हमें भी तुमसे कुछ सीखने को मिलेगा। चलो मैं चलता हूँ मुझे जाना है तुम जिया को सही टाइम पे कल ले आना में।
to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
Thursday, December 4, 2008
मैं मुंबई का ताज हूँ।
वो एक मकबरा है और अब मैं एक मकबरा ही हूँ॥
वो किसी की याद में है बना और मैं अब ख़ुद एक याद ही हूँ।
वो किसी के प्यार का प्रतीक है और मैं 56 घंटों के आतंक का प्रतीक ही हूँ॥
कल भी मुझे लोग निहारने आते थे और आज भी लोग मुझे देख रहे है।
कल मेरी खूबसूरती की तारीफ़ होती थी और आज मेरे काले धब्बो पे लोग गौर कर रहे है॥
एक तरफ़ गेट ऑफ़ इंडिया और सामने अपार समुंदर को निहारते लोग हुआ करते थे।
अब बस रह गए है कुछ ही लोग जो बार बार मेरे उन दिनों की याद मुझे दिला रहे है॥
कल यहाँ meetings,parties,dinners और lunches हुआ करते थे।
आज हर तरफ़ दहशत,आतक के निशान,कालिक और धुआ ही धुआ है॥
यहाँ Tata,Birla,Mittal,Ambaani और न जाने कितने लोगो ने कई कठिन फैसले लिए है।
मुझे देखने आए देशमुख और रामू भी जवाब नही दे पाये की वो आए किस लिए है॥
लोगो का इस तरह माजूम और रोश मैंने कभी मुंबई में ना देखा है।
मुझे और मेरे जैसे दूसरी इम्मारातो के लिए कभी इतने हमदर्दों का जलूस ना देखा है॥
देखा है मैं मेरी पनाह में आए कुछ लोगो को खुश होते हुए जश्न मानते हुए।
दहशत से डरे सहमे से गले लग लग कर अंधेरे में रोते हुए उन लोगो को मैंने देखा है॥
भारत में आए लोग आते है घुमते है आते ही पूछते है की आगरा का ताज कहाँ है।
सातो अजूबो में एक उस प्यार की इम्मारत की जैसी मिसाल सब सोचेंगे आज कहाँ है॥
देखेंगे वो हर इम्मार्तों को जायेंगे निहारेंगे हर कोने कोने भारत के अच्छे बुरे यादगार वो पल।
पर अब लगता है सब यहीं पूछेंगे की यह ताज तो ठीक है अब बताओ मुंबई का ताज कहाँ है॥
एक ताज आगरा का और एक मैं ख़ुद मुंबई का ताज ही हूँ।
वो एक मकबरा है और अब मैं एक मकबरा ही हूँ॥
वो किसी की याद में है बना और मैं अब ख़ुद एक याद ही हूँ।
वो किसी के प्यार का प्रतीक है और मैं 56 घंटों के आतंक का प्रतीक ही हूँ॥
Saturday, November 29, 2008
आख़िर क्यों
क्यों वो आज भी मज़हब के नाम पे लड़ता रह गया है॥
क्या सच में यहाँ कोई मुस्लिम या कोई हिन्दु रह गया है।
क्या एक दुसरे को मारना काटना धर्म का मतलब यही रह गया है॥
क्या यह गीता में लिखा है कि जो हिन्दू है वही इंसान रह गया है।
क्या यह कुरान में लिखा है कि मुस्लिम कौम ही बस एक मज़हब रह गया है॥
क्या इस्सू मसि ने यह कहा है कि रोटी की जगह गोलियाँ ही बांटना रह गया है।
क्या गुरु नानक ने सिखाया है कि दुसरे के घर घुस वहां दहशत बचाना रह गया है॥
कितना कत्ले आम किया अब तो लड़ना छोडें हम अब एक दुसरे को फिर से गले लगना रह गया है।
शान्ति बनाये एकजुट हो जाए एक मानव धर्म निभाए फिर इस धरती माँ को गले लगना ही रह गया है॥
उन वीर जवानों ने अपना धर्म निभाया है अब उनकी इस अनकहीं कुर्बानी का क़र्ज़ निभाना रह गया है।
धरती माँ के वो पूत कुछ करने आए थे जिस मिटटी संग खेले बचपन में उसी में समाना रह गया है॥
Thursday, November 27, 2008
Mumbai Attack-26 Nov 08
In past 13 then 26, 13 and now again 26....Is that mean..the next date when we have to be alert is 13 Dec or 13 Jan.....terrorist choosen a pattern to attack....or they really don't care...what is the day..wat is the pattern of chossing dates n timimgs...or they r choosing another date n timing for next attack....are we able to break these terrorism...can we really can stop these types of brutal acts.....or just these terrorist keep choosing dates n timing again n again...and killed innocent people...Is there any ending of all this...??Is there any solution to fight with them??....Is there any path to choosen against these things...??
so what is the real solution..what is the path....one we all fight them back with same energy n same attitude which they have......we ourselves take weapons and fire towards them just like they r doing....we ourselves use our anger as hatred against them...and firing towards them with out caring of other innocent people...Is it right to kill them so brutely.....Do we hv some right to give some thing same as back as they gave us?..do we really give same hatred feling as they r giving to us.??...do we hv a right to kill someone like this...?? Do we really hv a right to kill even those terrorist..?? Do we hv a right to take somebody's life in just few seconds..?? by killing someone like them we r actually killing his views and feelings which was already embeded in others?
Its seems they r more systematic n organised than us...n we never can defeat them.....r we?
Is really the humanity bigger than cursed....?? There r many questions yet to be answered... we r helpless....r we??.....no we r not helpless....
Or we choose another path....path of Mahatma Gandhi(our baapu) who give us the path of Gandhigiri...we just wait n watch...give them another smile...and show them yes we hv more patience than their potential to hurt us....?? just checking the limit of our patience and their potential to kill us....we r attacked by them many times...we all r hoping that it will not happened again...but then we ourselves show them a path..our weakness.
What I am talking abt.....wat we r showing them path...wat weakness??...O really corruption..yes corruption which really make them to enter our security system..and break them...we give them a oppurtunity to enter by just caring abt money, ourselves n our own relatives....we don't care what the person is doing..after entering in the system...we don't care if they entered in secured primises n attack on our country....we don't care what they really carry weapons...we just want the amount they r paying to enter....entry fees ahaaanaa...commisions, corruptions....
what we really can do only asking for help by systems, securitymen, policemen, politicians...what we r doing ourselves for our own security...we all talks abt after every such misshappening that policemen done nothing..INDIA is not a safe country....Politicians r corrupted...Policemen r like this like that..system is not organized n all...n if we talks abt wat to do..then we talk we hv to be united.. we hv to be alert...but r we really united n alerted...I mean we r North Indians, South Indians, Maharastian, Biharies, Orrisies, Kashmiris, Punjabis, Gujjus(Gujraties), Manipuries..etc etc....we hv different states, different religions, different environment, different views, different languages, different festivals, different casts, different local issues, different jobs.............but we r not true INDIANS....
Is this Gandhigiri? no Gandhigiri is we hv to united.....feel like true INDIANS....we all r same at heart...we all r having same feelings, same issues, same basic cultures, same values, same Indian Heart..."PHIR BHI DIL HAI HINDUSTANI".....we hv to make ourselves Mathma Gandhi from inner side...we hv to remove our weaknesses..remove differences, remove corruptions, self alertness against terror, secure ourselves n others, keep tight security at our own level....not to blame others....take ourselves responsibilities...
...this time they want to show the world that INDIA is not a safe place to go.....Is it right??? No way...we hv to do some thing...I do't whether I m right or not....but that for sure that...althought we r having differences among ourselves but we r united for others and take care of not ourselves but others very well...
we can take care of other much more better way than take care of us...we can take care of people/brothers/friends/guestof different society much more than we take care of our own society men becoz they r guest...so from onwards hindu take care of musllim,muslim take care of hindu,punjabi take care of kashmiries, maharastian take care of biharies....n so on....
and now when these terrorist attack on our guest of our own country from different countries we can take care of them better than take care of us.....and will show to the world that INDIA is Safe for other countrymen...INDIA can fight these terrorism by ourselves...INDIA doesn't need any type of help from other country...INDIA will fight it with its own way...whether by "strong fight with weapon" OR "Gandhigiri with strong united n coruptionless society"..............
What do you think my friends....Am I right..or Wrong somewhere?
Plzz share ur views....
Wednesday, November 26, 2008
क्या कहूँ कैसे लग रहे हो, (तारीफ)
handsome,dashing,smart जो भी कहो,
मगर इस white dress में तुम अच्छे लग रहे हो....
क्या कहूँ यह जो खुशी आपके चेहरे पे नज़र आ रही है,
क्या राज़ छिपा था इतने दिन दिल में यह कहे जा रही है,
इन खुशियों के पीछे कोई भी हो जो भी है आपको बहुत रास आ रही है,
चेहरे को चहका रही है या प्यार है जो किसी के लिए आपका बता रही है,
Tuesday, November 25, 2008
वो प्यार है।
1) दिल की कही को जो कई अरमान बना दे वो प्यार है।
दिल की गुस्ताखी को दिल की लगी बना दे वो प्यार है।
हम तो हमेशा कहेंगे की हाँ हमें तुम से प्यार है।
न जाने कब जवाब आएगा की तुमको भी हम से प्यार है।
2) एक दुल्हन अपने दुल्हे की बारात देखते हुए सोचती है।
किसी को बताती नहीं है बस यूहि यह बात दिल में रखती है।
इससे पहले तुमको जब भी देखा बस मैंने यूहि देखा।
पर आज जब देखा तो लगा वाह यह मैंने क्या देखा।
पहले मैंने सोचा था तुम मेरे लिए यार,प्यार,दिलदार हो।
आज तो तुम घोड़ी पे बैठे मेरे वो ही सपनो के राजकुमार हो।
Thursday, November 20, 2008
Win and Lose
If you win you not need to explain it....but if you lose you should not be there to explain.....
for few days i was thinking over it..is it really the case......well there is a my inner soul who answered it as....
explanation doesn't give you reason to try it once again to win....instead of explanation you have to find lots of courage,confidence and strong reason to win it at next time...
I don't know weather it is right or not.....or is it really i believe n implemented it accurately.....but yes it must be pure feeling..becoz its come from my inner soul.........
tell me urs views on this topic...........
Saturday, November 15, 2008
ज़रा गौर फ़रमाए (2)
दिल की दुःख भरी यह दास्तान सुन मेरा दिल भी रोया है॥
17)कोई नहीं है फिर मेरा दिल क्यों बार बार किसी को अपना बनाने को मजबूर करता है।
फिर ना जाने क्यों इस मतलबी दुनिया में वो किसी का इतना इंतज़ार करता है॥
18)यह दिल की बातें है हर किसी को भाँती है,
हर किसी को.. किसी न किसी की याद दिलाती है।
लिखता कोई है.. कहता कोई है और.. किसी और को बहलाती है,
किसी को भी सुनाओ.. सबको अपनी आप-बीती ही लगने लग जाती है॥
19)मेरे आने से भी बागो में बहार ना आई अब न जाने क्या होगा।
न जाने कब इन अजनबियों की महफिल में हमारा नाम भी दोस्तों में शामिल होगा॥
20)अगर मेरे यहाँ होने से अगर कोई बेवजह नाराज़ हो।
तो इससे अच्छा है कि मेरा यहाँ फिर कभी आना ही न हो॥
21)कोई तो है यहाँ जो मेरा दोस्त है।
इतनी भीड़ में भी वो देखता सिर्फ़ मुझको है॥
वरना सब यहाँ हैं एक दुसरे में खोने वाले।
किसी न किसी को एक दुसरे के पीछे करने वाले॥
22)ज़रा सा ज़िन्दगी को हल्का कर और जी, प्यार के लम्हों को बड़ा कर और ले चुस्की।
मगर इस तरह बेफिक्र होकर भी न जी, कि तुझे ख़बर ही न हो और किसी की॥
23)यह तो दिल के लब्ज़ है अपने आप शायरी का रूप ले लेते है।
हम तो बस दिल की कहते है और लोग हमें शायर कह देते है॥
24)बस यू ही ऐसे ही मस्त लाइन बन गई बातों बातों में।
दिल के अरमानो को शायरी की शक्ल मिल गई बातों बातों में॥
25)ऐ दोस्त तू कहे तो किताब क्या, कहानियो की लाइब्रेरी लिख दूँ।
बस दिल की जो बातें है उनको तू कलम दे और मैं उन्हें शब्दों की शक्ल दे दूँ॥
26) अरे यार तेरे पीछे ना जाने मैने क्या क्या कह दिया।
बातों ही बातों में मैंने देखो बहुत कुछ कह दिया॥
27)problem, problems, around, surround, they are always here and there,
but I know they all can be handled as I always found my friends there
28) हम उन में से है जो सागर में नहीं उतरते है।
बस किसी को डूबता देख कर उसकी गहराई को नाप लेते है॥
29) आज शायद किसी की आत्मा हम पर मेहरबान हैं,
यह मेरी नहीं यह उन्हीं की जुबान हैं।
बातों बातों में ही लाइन बना लेती हूँ,
ये उनका ही एक अंदाज़ हैं॥
30) हम किसी के लिए नहीं आते किसी के लिए नहीं जाते।
बस लोग सामने से गुजर जाते है और हम किसी को नज़र नहीं आते॥
Thursday, November 13, 2008
ज़रा गौर फ़रमाए (1)
कहने को तुमसे एक बात।
अब क्या कहने को बाकी रहा,
सब कुछ बयां करती है यह रात॥
2) बिन बोले bye वो चले गए।
ऐसा लगा वो हमें ही बेवफ़ा कह गए॥
sms किया उसने तो पता चला,
कि वो तो अपनी वफ़ा निभा गए।
बस हमे ही बिन मौका दिए,
वो वफ़ा पे दो बातें सुना गए॥
3) कोई नही है।
अजी, कोई भी तो नही है॥
एक बस हम है और हमारी तन्हाई है।
क्या मेरे दिल में बजती हुई कोई शेनाई है॥
अगर कोई होता तो उसे सब बताती।
यह अपने दिल की सारी बातें मैं सब से इस तरह क्यों छुपाती॥
एक बस हम है और हमारी तन्हाई है।
क्या मेरे दिल में बजती हुई कोई शेनाई है॥
4) तुमसे मुझको कहना है यहीं।
कि तुम बिन मुझको जीना नहीं॥
तुमसे बिछड़ के जाए कहाँ।
तुम्ही से तो है यह प्यार भरा जहाँ॥
तुम बिन मेरी राते हैं सुनीं।
तुम बिन मेरी बातें हैं अधूरी॥
तेरी आँखों से देखे मैंने सपने हंसी।
तुम्हारे सिवा कोई और मेरे दिल में नहीं॥
5) मेरे दिल के पागलपन की ऐसी हद थी।
यह मेरी उनसे मिलने की कैसी जिद्द थी॥
6) ख्वाब में भी ख्वाब देखूँ तेरा।
क्या कहूँ कितना हसीन ख्वाब है यह मेरा॥
7) जब तुम दूर होते हो तुम यादो में आते हो।
जब तुम करीब होते हो तो तुम बहुत सताते हो॥
यह प्यार की डोर ही तो है जो दो दिलो को ऐसे जोड़े है।
तुम्हारे साथ बिताये कितने सारे पल है फिर भी वो बहुत थोड़े है॥
8) try try i m always keep trying
becoz nothing will be mine if i m crying
9)दूर जब कोई हो और यादें हमको हर पल सताए,
हम यहाँ तडपे उसके लिए और वो वहाँ हँसे हँसाए।
सोचते है हम भी कुछ ऐसा कर जाए कि उसकी यादों को दिल से न लगाये,
दिल को बार बार समझाए पर कोई क्या करे जब उनकी याद सताए॥
10)किसी के इतने करीब ना जाओ कि दूर जाना मुश्किल हो जाए।
किसी को इतना न चाहो कि भूल जाना ना मुमकिन ही हो जाए॥
11) वाह वाह करने वाले हमें बहुत है मिले,
दिल की बातों को समझने वाले कहाँ है मिले।
अब तो दिल की बातों को अपने तक ही रखते है,
फिर न जाने कोई कहाँ कब अपनी सुनाने वाले ही मिले॥
12) ख्वाबों का क्या है वो तो आते ही रहते है, ख्वाबों के लिए सच को नहीं झूटलाना चाहिए।
हकीकत भी उतनी खुबसूरत हो सकती है, बस हकीकत को पहचानना आना चाहिए॥
13)तुम नाराज़ हो,माना तुम्हारा नाराज़ होने का हक है।
पर हम तो मनाएंगे...क्योंकि हमारा मानाने का मन है॥
14)हाँ काश के कोई होता दिल के इतने करीब।
और उसको कह सकते हम अपना नसीब॥
15)दिल की बातों को दिल ही जाने हम तो यह जाने है कि वो हमारे है।
कितने भी दूर हो वो हमसे पर यह फासले भी तो हमारे है॥
Wednesday, November 5, 2008
मैं एक लड़की हूँ
मैं एक लड़की हूँ
मैं एक कली हूँ खिलने दो मुझे....
मैं एक सुगंध हूँ महकने दो मुझे...
क्यों है यह बंधन क्यों है यह सीमाए,
क्यों है यह उदासी क्यों है इतनी यहाँ पीडाए॥
क्यों आज भी मैं लक्ष्मी होकर पराई हूँ
क्यों आज भी बहु ही रहकर बेटी नही बन पायी हूँ॥
मैं एक रत्न हूँ चमकने दो मुझे....
मैं एक कंगन हूँ खनकने दो मुझे...
आजाद होने को मन था कबसे बेताब..
पाना चाहती थी बस अपना बराबरी का खिताब
आजाद होकर भी मैं अभी भी कैद हूँ
साथ चलते हुए भी मैं कितनी पीछे हूँ
मैं एक तार हूँ बजने दो मुझे..
मैं एक जल तरन हूँ चलने दो मुझे....
खुला आसमान है फिर क्यों मुझे उड़ने नहीं है देते..
क्यों पर निकलने से पहले ही मुझे तुम बाँध है देते..
क्यों हमको माँ ने ही नहीं दिया सहारा
क्यों बाप ने ही कर दिया यूँ पराया
मैं एक सुंदर परी हूँ उड़ने दो मुझे..
मैं एक बाबुल की चिडी हूँ चहकने दो मुझे..
क्यों नहीं है आज सबके पास मेरे सवालो के जवाब..
क्यों अपना ही हमसफ़र राह में पहन लेता है नकाब..
जब बात आती है साथ देने की तो क्यों वो गुम हो जाता है
जब बात होती है मुझको समझने की तो क्यों वो मुझे ही समझाता है
मैं एक रौशनी हूँ फैलने दो मुझे..
मैं एक रंग हूँ रंगने दो मुझे....
हर कन्या को हर कोई माँ दुर्गा कह पूजता जहाँ..
क्यों जन्म देते ही मरती लड़कियां वहां..
लड़को के अरमानो को है पूरा किया जाता
क्यों लड़कियों को ही है दबाया जाता
मैं एक तितली हूँ बगिया की होने दो मुझे
मैं एक बरखा हूँ हर तरफ़ बरसने दो मुझे
मैं एक कोख हूँ पनपने दो मुझे....
मैं एक बीज हूँ अंकुरित होने दो मुझे..
मैं एक तस्वीर हूँ अस्तित्व्त लेने दो मुझे..
मैं एक मिटटी हूँ कोई रूप लेने दो मुझे...
मैं एक खवाब हूँ पूरा होने दो मुझे...
मैं एक दिल का अरमान हूँ मचलने दो मुझे...
मैं एक खुशी हूँ खुल कर हसने दो मुझे...
मैं एक लड़की हूँ इस जहाँ में जीने दो मुझे...
मैं एक डरी सहमी आखें हूँ देखने दो मुझे...
मैं एक अन्जन्मी लड़की हूँ इस कोख से जन्म लेने दो मुझे..
Tuesday, November 4, 2008
"निम्मो बुआ" (part 6) (last part)
सीमा बड़ी हैरान हुई..की रमेश को खाना वाना बाद में चलेगा..वो तो हमेशा से ही जब अपने मामा के घर आता था..उसको सबसे पहले खाना चाहिए होता था...हमेशा सीमा की माँ से कहता था...मामी खाना लगा दो बहुत भूख लगी है..आज उसे क्या हो गया है?
निम्मो बुआ बोली...."सीमा बेटी....तुमसे मिलना ही कहाँ हो पाता है...कितने सालो बाद मिली हो.....तुम्हारे बच्चे भी कितने सुंदर है....बिल्कुल तुम्हारी तरह लगते है दोनों...जैसे तुम बचपन में थी"
तभी रमेश बोला..."हाँ माँ देखो पीयूष तो बिल्कुल अमन जितना है...फिर भी कितना होशियार है बिल्कुल सीमा की तरह...अमन मेरा बड़ा बेटा है सीमा...मैं अभी जीजा जी को बता ही रहा था की अमन भी पीयूष के जितना बड़ा है...बहुत शैतान है...पढ़ाई का नाम ही नही लेता बस खिलवा लो जितना मर्ज़ी..."
तभी क्षितिज का मोबाइल फ़ोन बजा..और क्षितिज drawing room से उठ कर फ़ोन पे बात करने चला गया..अब रूम में सिर्फ़ निम्मो बुआ, रमेश और सीमा ही थे...निम्मो बुआ बोली.."सीमा हम लोग यहाँ राकेश की शादी का निमंत्रण पत्र देने आए है...यह लो....25 दिन बाद शादी है...तुम क्षितिज, अपनी साँस और बच्चो के साथ ज़रूर आना.."
सीमा अचानक से खड़ी हो गई और हाथ जोड़ कर बोली.."बुआ हमें माफ़ करे हम शादी में नही आ पाएंगे.."निम्मो बुआ.."क्यों बेटी..." सीमा उनको बीच में ही टोकते हुए बोली.."अभी मेरी बात पूरी नही हुई है बुआ जी"....तभी क्षितिज भी वापस रूम में आ गया था...सीमा फिर बोली.."हम यह निमंत्रण पत्र भी नही ले सकते बुआ जी.."
रमेश बोला.."क्यूँ ऐसा क्या हुआ सीमा.."......"तुम जानते हो ऐसा क्या हुआ..रमेश...क्षितिज भी सब जानते हैं....उनसे मैंने कुछ नही छिपाया है.....रमेश...तुम लोग बार बार आ कर मुझे वो करने को क्यों मजबूर कर रहे हो जो मैं नही करना चाहती हूँ...."
"तुम कैसी बातें कर रही हो बेटी...राकेश की शादी है हम तो तुमको खुशी से अपनी इस खुशी में शामिल करना चाहते है..."..निम्मो बुआ बोली.....निम्मो बुआ थोड़ा घबरा ज़रूर रही थी...शायद यह जान कर की क्षितिज को सब पता है..उनको शर्म आ रही थी...या फिर कोई और डर....
"बुआ आप लोग क्यों नही समझते जो राकेश ने किया उसके लिए मैं कभी भी उसे चाहते हुए भी माफ़ नही कर पाऊंगी..." सीमा बोली ...."बुआ जी यह आप भी जानती और मैं भी की उस दिन जो मैंने किया बिल्कुल ठीक किया....अगर मैं चुप रहती तो मुझे कितना कुछ अकेले ही सहन करना पड़ता....मगर बुआ जी..सब कुछ बोलने के बाद भी मुझे बार बार उसी बात को महसूस कराया जाता है...जब भी आप या रमेश मेरे सामने आते हैं तो मैं फिर वहीँ पहुँच जाती हूँ.."
सीमा रो ही पड़ी थी..क्षितिज ने उसे थाम लिया था..फिर रमेश की ओर देख कर सीमा बोली......"रमेश तुमको तो हमने पहले ही सब बता दिया था की अब हम तुम लोगो से कोई रिश्ता नही रखना चाहते..तो क्यों बार बार घर आ कर तुम रिश्ता बनाना चाहते हो...आप लोगो के बार बार सामने आने से मुझे बार बार उस दौर से, उस दर्द से गुज़रना पड़ता है...मैं कभी भी उस बात को नही भूला सकती..."
"क्या जो हुआ उस से सिर्फ़ राकेश को सज़ा मिली है...नही...बल्कि हम सबको कहीं न कहीं कितने रिश्तो नातों को तोड़ना पड़ा है...तो क्या गलती सिर्फ़ राकेश की थी...नही बल्कि गलती औरो की भी थी...."
निम्मो बुआ और रमेश दोनों एकदम shock हो गए..कमरे में कुछ देर तक सनाता छा गया था....
"बुआ जी आपकी गलती..की आप इतने सालो तक फूफ्फा जी डांट और मार सह रही है...मानती हूँ सहन करना अच्छी बात होती है....मगर जरूरत से ज्यादा सहन करना भी दुसरे को और ताकत देना है.....अत्याचार करने वाला और अत्याचार सहने वाला दोनों गुन्हेगार होते है....और रमेश तुम.....बुआ ही नही तुम ने भी कभी फूफ्फा जी को यह एहसास नही कराया की....उनके जुल्म तुम पर ,तुम्हारे भाइयो पर और तुम्हारी माँ पर कितना कर रहे है वो..रमेश तुम तो बस डरते रहे....तुमसे इतना नही हुआ की जब तुम बड़े हो गए..कमाने लगे तुम अपने पापा को यह बता सको की बस अब बहुत हुआ"
"अब आप बताइए जिस लड़के ने बचपन से लेकर सिर्फ़ अपने घर में अपनी माँ एक औरत को लाचार और चुप चाप सहने वाली एक कटपुतली की तरह देखा..जिसने अपने बड़े भाई को डरा हुआ देखा...वो बच्चा ख़ुद कितना डरा हुआ होगा...और लड़की की ओर उसकी सोच क्या रह जायेगी...की लडकियां तो बहुत कमज़ोर और अत्याचार सहने वाली होती है...उन पर कितना भी अत्याचार हो वो कभी आवाज़ नही उठाती....ऐसे माहोल में पलने वाला बच्चा यह सब नही करेगा तो क्या करेगा..."
"अगर बुआ जी आप फूफ्फा जी के ख़िलाफ़ उस वक्त कुछ करती जिस दिन उन्होंने सब हद पार कर दी थी...या आप उनसे अलग भी हो जाती....मगर आपको आपके बेटे ऐसे दिन नही दिखाते...भले ही उन्हें अपने पापा की कमी खलती मगर वो उस डर और दहशत में नही जीते...जिस में आप साँस लेती आई है..."
"यह तुम क्या कहे जा रही हो सीमा बेटी.."...निम्मो बुआ बोली...
"क्यों क्या मैंने कुछ ग़लत कहा है...तुम बताओ रमेश क्या मैंने कुछ ग़लत कहा है..." सीमा की आवाज़ ऊँची हो गई थी.....सीमा अब क्षितिज के पास से आगे आकर रमेश की आँखों में आंखें डाल कर बात कर रही थी....
"तुम तो जानते हो रमेश की तुम्हारे मामा..... मेरे पापा और मेरे परिवार ने कितना कुछ सहा है...तुम बताओ अगर तुम लोग एक बार कड़क दिल कर कोई फ़ैसला लेते तो क्या हम लोग तुम लोगो की मदद नही करते...मगर तुम लोगो को तो डर में जीने की सी आदत हो चुकी थी..."
"मैं अब बस यही चाहती हूँ की अब आप लोग मुझसे कोई उम्मीद न रखे....न तो मैं यह invitation ले पाऊंगी और ना ही शादी में आऊंगी......अब आप लोगो से कोई वास्ता रखना ही नही चाहती मैं...बस बहुत सह लिया..बहुत जी लिया वो दिन मैंने बार बार..अब नही..अब मैं अपने पति के साथ बिना किसी दर्द के, बिना किसी डर के रहना चाहती हूँ..आप हमें माफ़ करे...." सीमा ने दरवाजे की ओर इशारा कर दिया।
निम्मो बुआ और रमेश भी समझ गए थे.....और वो लोग भी दरवाजे की ओर चल पड़े...
उनके जाते ही सीमा ज़ोर ज़ोर से रोने लगी...क्षितिज ने उसे अपना सहारा दिया...."क्षितिज तुम्हारी वजह से इतना कुछ कह पायी मैं आज...वरना यह बातें दिल ही में रह जाती...हमेशा....इतनी हिमत नही थी मुझ में यह सब तुमने मुझसे करवाया....पता नही मैंने यह ठीक किया या ग़लत।"
"तुम्हारा कोई ही फ़ैसला होता मैं तुम्हारा साथ देता...जैसे अभी दे रहा हूँ.." क्षितिज ने बस इतना ही कहा।
THE END
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
Wednesday, October 22, 2008
दीपावली के उपलक्ष पर...मेरी कविता...
जो करता था बहुत पाठ और पूजा ॥
गरीब था मगर कोई न दुःख था ।
वो इतनी गरीबी में भी खुश था ॥
रोज़ सुबह उठकर बोलता था सबको जय राम जी की ।
करता था विधिवत पूजा श्री गणेश जी की और लक्ष्मी जी की ॥
कुछ न होकर भी उसके पास बहुत सा ज्ञान और तेज था ।
उधर वो मन से भी बहुत संतुष्ट और शांत था ॥
दिवाली के दिन को वो मनाता था इस उत्सव को विधिवत ।
दीयों की लड़ियाँ तो नहीं थी पर जलाता था दिया एक हर वक़्त ॥
विक्रम की भक्ति देख....एक दिन हुई लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न ।
दिया उन्होंने उसे खुश होकर वरदान में बहुत धन ॥
लक्ष्मी जी के आगमन से हुआ उसका घर धन्य और पवान ।
तिजोरी देख बने उसके कुछ मित्र जो दिल से बिलकुल थे काले और रावण
धीरे धीरे उस पर चड़ा धन से धन बनाने का नशा ।
मदमस्त हुआ वो खोला उसने व्यापार एक जिसमें बहुत था नफा ॥
खूब तिजोरी भरने लगी.. फिर उसके बने काफी मित्र बहुत था वो खुश ।
इस बीच वो भूल गया अपनी भक्ति और होने लगे सब देवगन उस से रुष्ट ॥
सब मित्रों संग उत्सव मनाता.. खूब खिलाता.. खूब पिलाता ।
दिवाली आती जब वो खूब धन आतिशबाजी में लगता ॥
नए नए यंत्रो से फिर वो खूब सारी रोशनियाँ दीयों सी सजाता ।
कितने बम, कितने पटाखे, कितने रोकेट, कितने अनार और कितना धुँआ फैलाता ॥
पूरी जवानी अब बीत चली थी उसका बुढ़ापा आ चूका था ।
कितने घर और कितने कीमती गहने.. वो तिजोरी खाली कर चूका था ॥
कमजोर तो हो गया था... उसको अब बहुत सा हो गया गम ।
उसके गले की हालत बहुत थी बुरी हो गया था उसे दम ॥
अब जब भी दिवाली आती ।
उसकी ख़ासी रुक नहीं पाती ॥
उसको अपनी गलती तब याद आती ।
क्या इतना था वो मदमस्त की इतनी समझ न उसको आती ॥
कितना धुँआ था वो उड़ाता ।
वही धुँआ अब वो है खाता ॥
बिमारी से उसे हुआ एहसास ।
अब तो रुक जाएगी जैसे उसकी साँस ॥
अपने प्रभु से रोज़ मौत मांगता ।
सबको पवन को दुषित न करने को कहता ॥
पर उसको मिलती इतनी आसान मौत कभी ना ।
अभी तो था उसे बहुत कुछ भुगतना ॥
सोचता था वह अकेला था न कोई मित्र और न साथी ।
कितना किया उसने दुषित पवन कितना था वह उधमाती ॥
कितनो को उसने यह दी बिमारी..कितनो की साँसे थी ली उसने छीन ।
धुए ने कितनो को मारा... कितनो को किया परेशान और कितना भयबीन ॥
सबको अब वह यही समझाता की यह दिवाली का पर्व है ।
जो है बहुत सुखमय और पावन और जिस पर हर व्यक्ति को गर्व है ॥
भाईओं मेरी तरह तुम ना धुँआ उडाना ।
बिन बात के धन को तुम यूँ ना गवाना ॥
यह दिवाली तुम दीयों से मानना ।
कम पटाखे और कम पीना पिलाना ॥
परिवार संग पाठ पूजा करवाना ।
लक्ष्मी जी को तुम घर अपने बुलाना ॥
सोच समझ कर तुम दिवाली मानना रावण जैसे मित्र न बनाना ।
उनकी किसी भी गलत बातो में खुद न शामिल तुम हो जाना ॥
घर को अपने खूब सजाना.. मगर मंदिर में भी दिए जलाना भूल न जाना ।
आतिशबाजी नहीं अब पूजा, मिठाइयों, दीयों और रंगोलियों से ही बस दिवाली मानना ॥
Happy Diwali
Tuesday, October 21, 2008
लो आ गयी दीपावली
रावण का नाश कर राम-सीता जी घर लौट कर है आये... पूरी अयोध्या झूमे बन मतवाली ॥
वहां चाँद भी है गायब आसमान में... जैसे खो गया हो इस चमकती बिजलियों में ।
विजय पर्व के बाद अब आया खुशियों का त्यौहार... हर कोई है खुश यहाँ इन रोशनियों में ॥
फुलझड़ी, फिरकनी या हो अनार, रोकेट सब हो गए रौशनी में घूम ।
सब है खुशियों का प्रतीक, फिर भी है सबकी अपनी चमक अपना दूम ॥
यह पटाकों की लड़ी जली.. यह फूटा बड़ा बम ।
धूधूममम... धडाडाडाडाममम... बूमम बूमम ॥
कुछ है फुस्सी और कुछ धमाकेदार... कुछ है रंगीले... कुछ है चमकदार ।
शाम को होती मुहरत पे पूजा... सब गाते आरती गणेश जी की और लक्ष्मी जी की बार बार ॥
कितनो को शौक यहाँ बाजी लगाने का... हर कोई चाहे अपनी किस्मत को आजमाना ।
किस्मत के खेल हैं देखो कहीं दिवाली बोनस.. तो कहीं पर निकला किसी का दिवाला ॥
कहीं पर है लक्ष्मी जी की कृपा और है नए साल के अवसर पर शुभ करता गणेश जी की जय जयकार ।
सब जगह हो मंगलमय और खुशियाँ अपरमपार करके... सब दुष्टो का हो स्रंघार ॥
रंगोली है करती सब रंगों से इन खुशियों को सत सत नमस्कार ।
मिठाइयाँ है बाटते सभी..लोगो को कहते "आप पर हो प्रभु की कृपा अपरमपार" ॥
अनार की तरह सब और खुशहाली हम फैलाये, फिरकनी की भाँती हम सब जगह की सैर करके आये ।
रोकेट के सामान हम जाए बहुत दूर तक.. इन दीयों की रौशनी जैसी शुद्ध और स्वछ विचार ही मन में लाये ॥
कुछ लोग रावण के है भक्त यहाँ.. इस अवसर पर भी नहीं सोचते है भाला ।
खुद को इतना अहसाए और सही बताते.. और लेंगे कितने मासूमो की जान भला ॥
खुद तो मानव बोम्ब बन जाते.. और कितनो को यह दिवाली जैसे पावन पर्व पे दुःख है दे जाते ।
ज्यादा से ज्यादा लोगो को यह अपना निशाना बनाते.. पर अभी तक हमारी मानवता को नहीं है मिटा यह पाते ॥
रावण बहुत से है यहाँ.. मगर राम भी कम नहीं.. यह भूल जाते ।
कितना भी कुछ कर ले रावण राम की धर्म निति से कभी न वो जीत पाते ॥
आतंक के इस राक्षस को हम अपनी मानवता से ही मिटायेंगे ।
आज नहीं तो कल हम इस दिवाली को खूब धूम धाम से मनाएंगे ॥
यह लो रोकेट और candle kites फिर आसमान में दिखे ।
कितने लोगो के चेहरे पे दुःख और भय नहीं दिखे ॥
लो एक बार फिर है फुलझड़ी है जली कितने बिजली बोम्ब है फुठे ।
बस यही दुआ है मेरी की इस दिवाली लक्ष्मी जी किसी से न रूठे ॥
सबको मेरी और से दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाए ।
सबका भविष्य हो जीवंत, खुशहाल और रौशनीमय ॥
कुल के दीपक ही दीयों की तरह जलते रहे और जगमगाए ।
चाहे दिए की लौ की तरह वो कितना डगमगाए ॥
पर कही भी उनकी रौशनी इस दिए को न आग लगाए ।
आज आप उनको और कल वो आपको सहारा दे और समझाए ॥
Sunday, October 19, 2008
"निम्मो बुआ" (part 5)
सीमा रसोई में आ कर उनके लिए cold drinks और snacks तैयार करने लगी...क्षितिज भी रसोई से सामन ले जा कर उनकी आव-भगत करने लगा...सीमा उनके सामने नही जाना चाहती थी...इसलिए वो क्षितिज से ही काम करवा रही थी...थोड़ा नाश्ते के बाद सीमा उनके लिए खाना तैयार करने लगी....सीमा की जैसे सोचने की शक्ति ही चली गई थी...उसे समझ नही आ रहा था की वो क्या करे..उनको कैसे face करे...क्यों वो उनसे दूर भाग रही थी उसे ख़ुद नही मालूम था..आख़िर सीमा ने कुछ भी ग़लत नही किया था..फिर क्यों वो उनसे नज़र चुरा रही है...पता नही सीमा को क्या बेकार की बातें तंग कर रही थी...उसको यह सोच कर भी डर लग रहा था...की उसकी सास यह सब सुनेगी तो क्या बोलेगी..अभी तक तो सीमा उनकी चहिती बहु है...उनको पता चला तो क्या होगा...????
सीमा यह सब सोच रही थी की उसके कंधे पे किसी ने हाथ रखा...सीमा यह सब सोच कर पहले ही डरी हुई थी..इस बात से वो और डर गई...उसने पीछे मुड कर देखा तो क्षितिज था...सीमा ने एक लम्बी और गहरी साँस ली...."क्या हुआ सीमा..तुम डर क्यों गई"..क्षितिज ने पुछा..."कुछ नही..." सीमा ने जवाब दिया...क्षितिज फिर बोला.."चलो वो लोग तुम्हे बुला रहे है....."...सीमा बोली " मुझे खाना तैयार करना है.."..क्षितिज ने बहुत धीमी आवाज़ में कहा.."क्या हो जाता है तुमको..मैंने तुम्हे कितनी बार बोला है वो एक पुरानी बात है...तुमको समझना चाहिए की तुम कितनी अलग तरह से behave करने लगती हो...आखिर problem क्या है.." सीमा बोली "शितिज मैं ख़ुद नही जानती...यह सब मैं क्यों करती हूँ...बस..मुझे उनके सामने जाना अच्छा नही लगता..i m feeling very uncomfortable..."
क्षितिज "ह्म्म्म्म"...कुछ सोच कर फिर बोला.."देखो सीमा मैंने तुमको इस बारे अपनी राये कभी नही दी...कभी नही कहा की राकेश को माफ़ करो..या उसको सज़ा दो...हमेशा सोचा की तुम इस सबको handle कर लोगी...but अब नही मुझे तुमको बताना होगा की तुम दो नवो पे सवार हो....न तो तुम राकेश को माफ़ करना चाहती हो और न ही तुम उसको कोई सज़ा दे रही हो....देखो सीमा अगर कोई नदी में बीच मझधार में डूब रहा है..तो उसे यह सोच कर की नदी के बहाव में वो कभी न कभी तो नदी के किसी न किसी किनारे पहुँच ही जाएगा अपने आपको इस तरह नदी के बहाव के हवाले नही करना चाहिए.....बल्कि उसे दोनों में एक किनारा जो उसको करीब लगता हो उस तरफ़ जाने की कोशिश करनी चाहिए...या तो इधर या उधर......इस फैसले पे ही उसे अपनी पूरी जान लगानी चाहिए फिर उसे अपने आप रास्ता मिल जाएगा..और वो किसी न किसी किनारे तक जो की उसके बहुत करीब है पहुँच ही जाएगा...बीच मझदार में फसे रहने से तो वो डूब जाएगा...तुमको भी एक किनारा सोचना ही पड़ेगा...तुम पास वाले किनारे तक पहुंचने की सोचो तो सही..फिर देखना तुम्हे उस किनारे तक कैसे पहुँचना है अपने आप पता चल जाएगा...रास्ता अपने आप सामने आएगा सीमा.."
क्षितिज का इतना बोलना था...सीमा में अचानक न जाने कहाँ से एक नई शक्ति की लहर आ गई...अब उसे साफ़ साफ़ नज़र आ रहा था की उसे क्या करना है...उसके चेहरे पे ही अजीबी सा तेज था..एक नया आत्मविश्वास उसके चेहरे से झलक रहा था...
क्षितिज भी उसके चेहरे पे यह सब पढ़ चुका था....और समझ चुका था की सीमा ने कोई बड़ा फ़ैसला तो ज़रूर ले लिया है...इसलिए वो चुप चाप रसोई से चला गया....
to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
Wednesday, October 15, 2008
Women
As a woman I am always proud to be one of them
Women like pinks, Men like Blue
Lets now know the Power of the "W"
Woman as a mother of the man
In this world of man she is the first who "Welcomes" the man
she nourish him, she cherish him,
she is always there for him
she feed him, she lead him,
she actaully a need for him
Woman as a sister of the man
Being grown up with him she is always a "Well Wisher" of the man
she is a competitive,she is supportive,
sometimes she fight with him without any motive
she sometimes talk like a friend,she is sometimes quite at her end,
sometimes she show some path like a guide
Woman as a Wife of the man
In the whole life of man she is true "Walking companion" of the man
she is tender, she is lover,
she is actually sacrifice for him every part of her
she understand him,she cares him,
she is actually inside him as she share him
Woman as a Daughter of the man
Holding her in his hand,she is a "Wish" of the man
she is a blossom,she is a awesome,
whenever he asked her she says he is handsome
she is ready to flew, where to go no clue,
she is for him just like dream come true
Women in these four different role in the life of the man
She done nothing but actually just give back to the man
the affection,care,love,passion,gentleness and the guardian
all which man gave to the women he all gets the same in return
Friday, October 10, 2008
How lonely I am here...
I hope you miss me there, I miss you alot here...
just going here and there, I will be on time there...
when I am feel lonely, you are always near...
when I thought you lovely, I just like you my dear...
when I dont found you with me, I feel i m in fear...
when I met you I feel that my life is on fivth gear...
you are always with me, that for sure....
I want to tell you, this feeling is so pure...
when I am fed of all the things here, I know only you can cure...
where ever I will go, you know and I know, I am always be your
wow I have written a poem, right now right here....
Its lovely that you are not here,but can read me direct from there...
just writing message here, I am sound like poetess here...
I think you got me right there, how lonely I am here...
Monday, October 6, 2008
"निम्मो बुआ" (part 4)
सुबह के 9 बज चुके थे....आज सीमा को देर हो गई थी नाश्ता तैयार करने में...वो देर से जो उठी थी....क्षितिज ने भी उसे उठाया नही था.... और वो jogging के लिए चला गया था.. क्षितिज जानता था.. वो रात को देर से सोयी थी.. इसलिए उसने उसे उठाया नही था....क्षितिज jogging से आने के बाद सीमा की रसोई में मदद करने लगा...क्षितिज बहुत ही अच्छा पति था... सीमा के मन में कब क्या चल रहा होता है वो उसे सीमा के बिना कहे ही समझ आ जाता था..... इसीलिए तो जब भी सीमा को उसकी मदद की ज़रूरत महसूस ही होती तभी क्षितिज उसके सामने होता..और मदद करने को तत्पर रहता....
सबका नाश्ता होने बाद... सीमा और क्षितिज नाश्ता करने लगे... क्षितिज ने सीमा को अपने एक project के बारे में बताया.. और उसकी advice भी मांगी.. सीमा को पता था क्षितिज उसका ध्यान उन बातों से दूर करने के लिए यह सब कर रहा है... सीमा ने उसे दो तीन बातें बताई...और कुछ advice भी दी... फिर शितिज ने अपने ऑफिस के कुछ किस्से भी सुनाये....
11 बजे तक सीमा का सब काम ख़तम हो गया था...सीमा drawing room में आके बैठ गई....क्षितिज भी पास बैठ कर laptop पे अपना कुछ काम कर रहा था...सीमा फिर से सोचने लगी सीमा का स्कूल और कॉलेज सब co-ed में हुआ था..राकेश हमेशा से boys स्कूल में पड़ा था वो लड़कियों के साथ बात नही कर पाता था... काफ़ी चुप चाप रहता था लड़कियों के बीच..
उस दिन भी वो चुप ही था...चुप चाप TV देख रहा था..सीमा भी TV के channels बदल बदल कर songs सुन रही थी....साथ ही साथ गा भी रही थी...उसने राकेश की और देखा...फिर ना जाने राकेश को क्या हुआ..वो सीमा की और जल्दी से लपका...उसने सीमा के दोनों गालो पे अपने दोनों हाथ रख दिए और अपना मुह उसके मुह के बिल्कुल सामने ले आया..सीमा कुछ समझ पाती की यह क्या कर रहा था..इतने में राकेश ने उसके होठो को अपने होठो से मिलाने की कोशिश की...उस वक्त सीमा बहुत कमज़ोर महसूस कर रही थी मगर फिर अचानक ना जाने उसमें अजीब सी शक्ति आ गई...उसने TV remote जो की उसी के हाथो में था ज़ोर की राकेश के मुह पे दे मारा....राकेश भी झून्झला उठा..सीमा ने उसको थोड़ा और ज़ोर की remote मारा... फिर अपने दोनों हाथो से उसके गालो में दो चार चांटे लगा दिए...राकेश और सीमा कुछ देर के लिए शांत हो गए.. फिर राकेश बोला..."i m sorry...सीमा...मुझे पता नही क्या हो गया था...बहन..i m sorry.."
सीमा की आँखों से ज़ोर ज़ोर से आंसू निकल रहे थे..वो समझ नही पा रही थी यह क्या हुआ और क्यूँ हुआ....शायद जो हुआ था उसका मन और दिमाग दोनों ही उसे स्वीकार नही कर रहे थे.....वो राकेश की और देखने लगी...कुछ न कह कर भी उसकी आँखें राकेश से यह सवाल ज़रूर कर रही थी की यह क्या था...क्यूँ किया उसने ऐसा..वो तो उसे हमेशा छोटा भाई समझती थी..वो ऐसा कैसे कर सकता है अपनी ही बहन के साथ...और sorry कहने से क्या सब कुछ ठीक हो जाएगा....उसके मुह से sorry सुन कर सीमा को और गुस्सा आ रहा था...उसे घृणा सी हो रही थी उस से...
राकेश की आँखों में भी आंसूओं और डर दोनों साफ़ साफ़ नज़र आ रहे थे सीमा को...राकेश बोला.."बहन किसी को मत बताना..जो हुआ उसे भूल जाओ...मुझे भी नही पता की यह कैसे हुआ..शायद पढ़ाई का pressure था या कुछ और..मुझे नही मालूम...sorry...तुम चाहो तो मुझे खूब मार लो..पीट लो...पर please यह बात किसी को नही बताना..मैं अब भी तुम्हे उसी तरह बहन मानता हूँ...तुम भी मुझे भाई ही मानना..." राकेश की जैसे हवायिआं ही उड़ गई थी.
सीमा को पता नही क्यों उसकी किसी भी बात पर विश्वास नही हो रहा था.....वो उसे और ज्यादा ज़ोर की मारना पीटना चाहती थी.....सीमा चुप चाप वहां से उठ कर रसोई में चली गई...रसोई में ज़ोर ज़ोर से रोने लगी...तभी उसकी माँ घर आ गई...सीमा ने जल्दी से आंसू पूछे...सीमा की माँ बोली.."सीमा मैं ice cream लायी हूँ खा लेना...अरे तुमने अभी कुछ भी नही किया..बोलके तो गई थी बाकी का काम कर लेना..तुम भी न सीमा...हे भगवान् TV के आगे कुछ नही करती यह लड़की.."....सीमा चुप चाप काम करने लगी....
सीमा की माँ राकेश को ice-cream देने चली गई..और इधर सीमा सोचने लगी... "की जो हुआ वो उसे माँ को बताना चाहिए की नही...सोचते सोचते सीमा न जाने कहा तक पहुच गई...फिर उसको ध्यान आया की राकेश की करतूत न बता कर शायद सीमा राकेश का होसला बड़ा रही है...राकेश तो उसके चाचा के यहाँ भी आता जाता है और वहां भी उसकी दो छोटी बहने है....सीमा को उनकी चिंता होने लगी..क्या पता यह सब उनके साथ भी...नही नही...मुझे माँ को बताना चाहिए..और कल नही अभी इसी वक्त इस राकेश के सामने ही...ताकि राकेश का सच सामने आए..."
सीमा सब काम छोड़ कर माँ और राकेश के पास गई...वो राकेश को घूरने लगी...सीमा की माँ ने कहा.."क्या हुआ..." सीमा ज़ोर ज़ोर से रोने लगी...उसकी माँ ने फिर पुछा.."क्या हुआ..रो क्यों रही हो.."....सीमा ज़ोर से चिल्लाई.."इसी से पूछो इसने क्या किया है..."..राकेश सर झुकाए बैठा रहा...माँ भी परेशान हो गई....और राकेश की और देखने लगी...जब काफ़ी देर तक राकेश न नही बताया तो ..सीमा ने रोते रोते माँ को बता दिया....राकेश को कहा.."मैं नही बताती तो तुम्हारी हिम्मत और बढ़ जाती और तुम मेरे साथ या किसी और के साथ फिर ऐसा कुछ करते..."....राकेश सीमा की माँ के सामने गिडगिडाने लगा..."मामी मुझे माफ़ कर दो...मुझे पता नही क्या हो गया था.."
सीमा की माँ भी सदमे में थी..कुछ बोल नही पा रही थी...बस इतना ही बोला.."अगर तेरे मामा यहाँ होते तो तुझे जेल की हवा लगवा चुके होते..."..सीमा बोली.."माँ इसको बोलो यह अभी के अभी यहाँ से चला जाए और फिर यहाँ कभी न आए..."...सीमा की माँ ने राकेश को बोला "मुझे पता नही क्या करना चाहिए...बस अभी काफ़ी रात हो चुकी है इसलिए तुम जा कर सो जाओ...और सुबह सुबह ही यहाँ से चले जाना..."...राकेश चुप चाप चला गया....सीमा की माँ ने सीमा को कहा "मेरा मन कर रहा है इसको घर से बहार निकल दू...मगर आज न तेरे पापा यहाँ है न तेरे भाई.."
अगले दिन सुबह सुबह ही राकेश चला गया....रात भर सीमा को डर लगता रहा..वो सोचती रही..सो नही पायी थी वो ठीक से....दोपहर को उसके पापा आ गए....उसके लिए gift ले कर आए थे..सीमा नए कपड़े पहन रही थी...तभी उसकी माँ ने उसके पापा को सब कुछ बताया...फिर सीमा के पापा ने उसे उसका gift दिया और बोला सब भूल जाओ...बस आगे से उनसे हमारा कोई रिश्ता नही है...
धीरे धीरे यह बात सब रिश्तेदारों के यहाँ पहुच गई...सीमा के पापा ने फ़ैसला कर लिया था..की अब उनका रिश्ता वैसा नही रहेगा...सीमा जानती थी पापा सबके सामने नही बोल पा रहे है..मगर उनको बहुत गुस्सा आ रहा है...निम्मो बुआ कई बार बात करने सीमा के घर आई...शायद उनको इस सब पर यकीन नहीं था...मगर जब माँ ने उनको बताया की राकेश ने ख़ुद अपने आप यह बात कबूली थी उनके सामने..तब निम्मो बुआ को मानना पड़ा...
सीमा के भाई सूरज जब college tour से घर वापस लौट के आया तो सीमा ने उसको ख़ुद दो चार दिन बाद यह बात बताई.....सूरज को भी बहुत गुस्सा आया.."हम लोग उनको कितना भाई भाई करते है..और उनके दिलो में ऐसा कुछ है...कितने काले दिल के है यह लोग..अपनी कोई अपनी बहन नही है..तो किसी की भी बहन की कोई इज्ज़त नही..."...सीमा बोली.."आगे से उनसे हमारा कोई वास्ता नही..बस यही एक सज़ा है....उनके लिए...".सीमा को उस वक्त भी बहुत गुस्सा आ रहा था...
फिर एक दिन रमेश सीमा के घर आया...तब सूरज ने उस से साफ साफ़ कह दिया.."अब तुम हमसे पहले की तरह रिश्ते की उम्मीद मत रखो..हम यह सब सहन नही करने वाले..उस दिन पापा और हम नही थे इसलिए वो जेल जाने से बच गया.." रमेश कुछ बोल नही पा रहा था...चुप चाप सुनता रहा..
अब भी अक्सर रमेश सीमा के घर आता..मगर यहाँ उस से कोई ठीक से बात नही करता था...फ़ोन पे बातें तो पहले ही बंद हो गई थी...किसी के यहाँ भी किसी की खुशियों में या किसी भी occassion पर कहीं सभी रिश्तेदार मिलते तो..निम्मो बुआ के परिवार से सीमा का परिवार कोई भी बात नही करता था...जहाँ तक हो सके निम्मो बुआ के परिवार से आमना सामना न हो इस बात का ख्याल हमेशा सीमा का परिवार रखता था....राकेश का तो कहीं आना जाना बंद हो ही गया था...अब वो बस आपने घर में ही रहता था....शायद निम्मो बुआ ने ही उसे कहीं जाने को मन किया हुआ था..या वो ख़ुद ही कहीं आता जाता नही था....उसे भी शायद पता था की जो उसने किया बहुत ग़लत किया....
सीमा की शादी,रमेश,राकेश,सूरज और नील की शादी.. सभी की शादियों में भी बस सब एक दुसरे को चुप चाप देखते रहते..आंखों में कई सवाल लिए..मगर होठो को तो जैसे किसी ने सील दिया हो...सीमा तो उनके किसी भी function में नही गई थी.....शादी के बाद तो वैसे भी नही...क्षितिज को भी उसने सब कुछ बता दिया था की उनका और सीमा की परिवार में बहुत सारी problems है...और सीमा के साथ जो हुआ वो भी क्षितिज को पता था...सीमा ने क्षितिज को सब बताया था....सीमा अंदर ही अंदर कभी कभी सोचती थी...की राकेश की गलती की सज़ा क्या उसके पुरे परिवार को देना ठीक है...क्या निम्मो बुआ, रमेश और राजेश का कोई कसूर है जो उनको सज़ा मिल रही है....क्या राकेश की गलती माफ़ी के लायक थी....क्या उसे बाकिओं को माफ़ कर देना चाहिए...
ting...tong..ting...tong..घर की घंटी की आवाज़ ने सीमा को उसकी सोच की गहराईओं से बाहर निकाला....करीब 1 बज चुका था...क्षितिज ने दरवाजा खोला.."नमस्ते...आईएं ना..." क्षितिज ने कहा। सीमा ने देखा निम्मो बुआ ही थी..बहुत ही थकी हुई और बूढी लग रही थी...साथ में रमेश भी था....सीमा ने भी दोनों हाथ जोड़े और सर हिलाया...निम्मो बुआ ने भी सर हिला कर और मुस्कुरा कर जवाब दिया...सीमा से वहां खड़ा नही हुआ जा रहा था...इसलिए वो कुछ मिनटों बाद ही रसोई में चली गई...
to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
Tuesday, September 30, 2008
"निम्मो बुआ" (part 3)
शायद उसका उसके पापा के उपर जो गुस्सा था वो ही उसे उसके दादा और दादी से दूर रखता था...खैर..सीमा और रमेश की पढ़ाई साथ साथ होती थी...कभी सीमा उनके घर चली जाती थी कभी रमेश आ जाता था सीमा के घर...दोनों मिलजुल के पढ़ते थे...सीमा भी पढ़ाई में तेज थी...मगर जहाँ बढों से बढों की तरह बात करने की बात आती तो रमेश हमेशा से ही बढों जैसी समझदारी की बातें किया करता था...सीमा को तो हमेशा बच्चो जैसा प्यार ही मिलता..क्योंकि वो बहुत चचल थी...उसका दिल हमेशा बच्चो जैसा था...सीमा समझदार थी पर वो किसी से समझदारी वाली बातिएँ नहीं किया करती थी.....वो सब समझती थी...वो अपने पाप की समझदारी वाली बातें सुन सुन कर ही तो बड़ी हुई थी...अक्सर सीमा के पापा उस से समझदारी वाली बातें किया करते थे...पर वो तो बच्चो की तरह ही अपने पापा से बात करती थी...कभी कुछ भी दिल में आया और पापा या माँ से मांग लेना..अब वो उसे मिले या न मिले...सीमा के पापा हमेशा उसकी हर ख्वाइश देर सवेर पूरी करते थे....सीमा अपने पापा की आर्थिक स्तिथि को देख कर ज्यादा जिद्द नहीं करती थी.....पर हाँ जो दिल में होता था..की यह चाहिए वो चाहिए बोल देती थी...उसे अपने पापा पे जो पुरा विश्वास था की जहाँ तक उसके पापा से हो सकेगा वो ज़रूर करेंगे...कभी न कभी वो चीज़ ज़रूर उसे मिलेगी...सीमा ने जब schooling ख़त्म की तब उसने पापा से कंप्यूटर माँगा...और उसके पापा ने 6 महीनो बाद ही उसको कंप्यूटर ला कर दे दिया...सीमा के भाई उस से इस बात पर चिढ गए थे..की उसकी हर मांग पूरी होती है..और वो कबसे bike के लिए पापा से बोल रहे है..पर पापा हर बार टाल देते थे..खैर रमेश भी उन् दिनों कॉलेज में ही पढ़ाई कर रहा था..वो कॉलेज के बाद tutions देने लगा...
सीमा को आज भी याद है जब उसकी निम्मो बुआ जी ने सीमा के घर फ़ोन किया था...सीमा ने ही फ़ोन उठाया था..बुआ ने बताया की रमेश बिना बताये कहीं चला गया है...शायद किसी दोस्त के घर...उसका tutions देना उसके पापा को पसंद नहीं था...उसके पापा को लगता था वो अपने दोस्तों के साथ कॉलेज के बाद मज़े करता है...और इस बात पर कई बार उसके पापा से उसकी कहा सुनी हो जाती थी...बुआ जी बहुत परेशान थी...किसी को नहीं पता था की रमेश कहाँ गया हुआ है...
फिर एक दिन सीमा के घर उसके सबसे छोटे चाचा का फ़ोन आया की उनको रमेश का फ़ोन आया था...वो अपने किसी दोस्त के साथ रहता है..उसने अपने पापा को बताने को मना किया था..बस उसकी माँ यानि निम्मो बुआ परेशान न हो इसलिए यह बताने के लिए फ़ोन किया है की वो ठीक ठाक है...फ़िक्र न करे....तब सीमा के पापा ने सीमा के चाचा को बोला की अगली बार अगर उसका फ़ोन आए तो उसे यहाँ सीमा के पापा के पास फ़ोन करने को कहना....
सीमा के पापा को पता था की ऐसी उमर में बच्चो से दोस्तों की तरह ही बात करनी चाहिए...एक दो बार रमेश ने अपनी माँ से फ़ोन पर ही बात की...मगर यह नहीं बताया की वो कहाँ है....फिर एक बार रमेश ने सीमा के घर फ़ोन किया...सीमा के पापा ने उस से बात की...उसे कुछ पैसो की ज़रूरत थी...सीमा के पापा न कहा "रमेश बेटे तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था..अगर कोई पेरशानी थी अपने घर पे तो तू यहाँ आ जाता..मगर बिना बताये किसी को कहीं भी रहना अच्छा नहीं"...रमेश ने बोला "मैं अब अपने पापा के साथ नहीं रह सकता"..तब सीमा के पापा ने कहा "तू अपनी माँ और छोटे भाइयो का सोच उन् पर क्या बीत रही है...तेरी माँ को तेरी कितनी चिंता है"...फिर सीमा के पापा ने उसे घर बुलाया और उधर निम्मो बुआ को भी बुला लिया..निम्मो बुआ फुफ्फाजी को बिना बताये आ गई..दोनों माँ बेटे मिले...माँ ने बेटे को कुछ पैसे दिए और कहा "तू जहाँ रहना चाहता है रह..मगर मुझसे दूर मत जा..मुझे तो तस्सली रहे की तू ठीक है"....इस पर सीमा के पापा ने कहा "तू यहाँ भी रह सकता है तेरे पापा को कोई कुछ नहीं बताएगा"...
रमेश बड़ी देर बाद मान गया..और दो तीन दिनों बाद वो सामान ले कर सीमा के यहाँ आ गया...सीमा के पापा, सीमा के चाचा, सीमा की दूसरी बुआ और फुफ्फाजी, सीमा की निम्मो बुआ..सबको पता था की रमेश सीमा के घर रहता है...मगर रमेश के पापा को नहीं पता चलने दिया...
रमेश सीमा के यहाँ 1+ साल तक रहा...मगर कोई कितना रमेश के पापा से छिपा सकता था..रमेश के पापा को पता चल गया था की रमेश सीमा के यहाँ रहता है....बस फिर क्या था...जब सुबह सुबह सीमा, सीमा के भाई और रमेश सब तैयार हो रहे थे...की फ़ोन की घंटी बजी..हमेशा की तरह सीमा ने फ़ोन उठाया..फुफ्फाजी(रमेश के पापा) का फ़ोन था...पूछने लगे "रमेश है न वहां...ज़रा रमेश को फ़ोन दो"....सीमा ने कहा "नहीं फूफ्फा जी वो यहाँ नहीं है"...सीमा के फूफाजी ज़ोर से चिलाने लगे...सीमा डर गई और हेल्लो हेल्लो करते करते उसने फ़ोन रख दिया...रमेश भी डर गया...फ़ोन की घंटी फिर बजी...सीमा ने फिर उठाया...उसके हेल्लो बोलने से पहले ही फूफ्फा जी बोले "तुम मुझको बेवकूफ समझते हो...रमेश वहां है मुझे पता है...उसको फ़ोन दो..."..सीमा चुप चाप सुनती रही.."तुमको सुनाई नहीं देता सीमा रमेश को फ़ोन दो"....सीमा ने रमेश को इशारा किया...रमेश ने फ़ोन ले लिया और सुन ने लगा...सीमा ने फूफ्फा जी का ऐसा रूप पहले कभी नहीं देखा था....फिर जब रमेश के पापा शांत हुए, रमेश धीरे से बोला "पापा मैं रमेश बोल रहा हूँ बोलो...".....उसके पापा ने उसे खूब सुनाया..और कहा "अगर तू घर आना चाहता है तो अभी दो चार दिन में आजा...मैं तुझे कुछ नहीं कहूँगा...वरना मैं कुछ कर बैठुगा"..रमेश डर गया...उसने कहा "ठीक है"...
उसी दिन शाम को जब सीमा के पापा घर आए तो रमेश ने उनको बताया...सीमा को तो पूरे दिन उसकी माँ और उसके भाइयों की डांट पड़ ही चुकी थी..वो भी सिर्फ़ फ़ोन उठाने पर....सीमा को भी लग रहा था अच्छा होता वो फ़ोन उठातीही नहीं....पर वो भी क्या करे उसे ही हमेशा फ़ोन उठानापड़ता था...कोई और फ़ोन उठाताभी नहीं था...वो नहीं उठात्ति तो कोई भी नहीं उठाता.....सीमा को लगा उसके पापा भी उसे खूब सुनायेंगे...पर इस पर सीमा के पापा बोले नहीं फ़ोन न उठाने से सीमा के फुफ्फाजी और नाराज़हो जाते उनका गुस्सा और बढ़ जाता...फिर सीमा के पापा रमेश से बोले.."तू देख ले बेटा अगर तुझे यहीं रहना है तो कोई बात नहीं हम तेरे साथ हैं..तू उनको बोल दे की तू यहीं रहेगा...हम हमेशा हर फैसले में तेरे साथ है..जाना चाहता है तो चला जा..."...रमेश बोला "मामा जी..पर अगर उन्होंने कुछ कर दिया तो...पुलिस में रिपोर्ट कर दी तो....फिर आप पर बात आ जायेगी अभी मैं 18 का नहीं हुआ हूँ....पापा कुछ भी कर सकते है...आप पर भी इल्जाम लगा देने से नहीं चूकेंगे वो.."..सीमा के पापा ने कहा...."हाँ अब बात तो वैसे भी मुझ पर ही आएगी बेटा कोई नहीं तू हमको प्यारा है..तू जो कहेगा हम करेंगे...हमने उनसे इतनी बड़ी बात छुपाई है..मुझे पहले ही पता था...वैसे भी वो बड़े गरम दिमाग के है....बिना सोचे समझे कुछ भी कह देते है...कुछ भी कर देते है...अब हमारा तो रिश्ता ही ऐसा है...वो दामाद है..हम तो वैसे भी सुनते है..और सुन लेंगे...उनके बच्चे को बहलाने फुसलाने का इल्जाम भी सुन लेंगे"...रमेश ने कहा "नहीं मामा जी..आप ने तो इतना साथ दिया है...मैं ही परेशानी से दूर भाग रहा था...मुझे अब उनका सामना करना ही पड़ेगा.."...तभी फ़ोन बजा..निम्मो बुआ का फ़ोन था..रमेश ने बात की.."बेटा रमेश अब तू घर आजा..नहीं तो यह आदमी न मुझे और न तेरे भाइयो को चैन से जीने देगा..पूरा घर सर पे उठा रखा है..पता नहीं क्या अनाप शनाप बोले जा रहा है...तू घर आ जा..वो तुझे कुछ नहीं कहेंगे..बस घर आजा.."
फिर रमेश ने घर जाने का फ़ैसला किया...सीमा के पापा और सीमा की माँ भी उसके साथ गए..ताकि रमेश को ज्यादा न सुन न पड़े....सीमा के पापा को रमेश के पापा ने खूब सुनाया और गन्दी-गन्दी गालियाँ दी...जो की सीमा की माँ को अच्छी नहीं लगी....पर वहां बोलने का कोई फ़ायदा नहीं था क्योंकि गलती तो सीमा के माँ और पापा की थी...उन्होंने बहुत बड़ी बात जो रमेश के पापा से छिपाई थी...और सीमा की माँ पहले से ही जानती थी की रमेश को अपने घर यूँ छिपा कर रखना ठीक नहीं था..पर सीमा के पापा के फैसले के आगे वो कुछ नहीं बोली थी..पर अब उनको लग रहा था की बोलना चाहिए था..कम से कम इतना सुन न तो न पड़ता...
सीमा की माँ घर आ कर सीमा के पापा को बोली अब वहां कोई नहीं जाएगा...आप बड़े हो और वो आपको इतना कुछ सुनायेंगे...तब सीमा के पापा बोले.."अगर रमेश अकेला जाता तो उसको खूब सुनना पड़ता..हम थे इसलिए उनका सारा गुस्सा हम पर उतर गया..."...सीमा की माँ बोली.."हाँ हमने उनको बहन दी है..गालियाँ और बातें सुन ने के लिए ..और अब हम ही गालियाँ सुने...निम्मो भी चुप चाप खड़ी थी कुछ नहीं बोली...ऐसे ही रोज़ सुनाता है क्या वो....और निम्मो को तो जैसे सुनने की आदत पड़ गई हो.....अरे यह निम्मो भी न जाने क्यों उस जैसे इंसान के साथ है..क्यों नहीं अलग हो जाती..." सीमा के पापा बोले.."वो उसका फ़ैसला है उसी पे छोड़ दो...हमें तो बस साथ देना है..."......"पर मैं नहीं सुनूंगी उनकी गालियाँ...नहीं सुन न चाहती इसलिए अच्छा होगा हम उनसे दूर ही रहे...अब उनके यहाँ नहीं जाना हमें...क्या गालियाँ ही सुनते रहे पूरी ज़िन्दगी...वैसे भी रोज़ ही सुनाता होगा गालियाँ निम्मो को...और हमें..."...सीमा की माँ गुस्से में यह भी भूल गई थी की वो उनके दामाद थे...उनका रिश्ता बड़ा था।
फिर क्या सीमा की माँ को बहुत गुस्सा था मगर रिश्तेदारी की वजह से कुछ नहीं कर सकती थी..बस अपने बच्चो और अपने पति को ही वहां जाने से मना ही कर सकती थी...सीमा को भी कॉलेज के बाद सीधे घर आने को कहती थी...कही सीमा कॉलेज के बाद रमेश या निम्मो बुआ से मिलने वहां न चली जाए..डरती थी...कुछ हफ्तों बाद रमेश उनके घर आया...सीमा की माँ ने उस से कम ही बात की...
सीमा ने जब रमेश से पुछा की अब सब वहां ठीक है की नहीं...तो वो बोला मैं यहाँ अपने पापा की गालियों की माफ़ी मांगने आया हूँ..उनकी तरफ़ से.....माफ़ कर दो...मैं नहीं चाहता यह सब हो...शायद घर से चुप चाप भाग जाना मेरा फ़ैसला ठीक नहीं था...सीमा के पापा शाम को घर आ गए...तब रमेश ने उनसे भी माफ़ी मांगी...सीमा के पापा ने कहा.."नहीं बेटा..ऐसा कुछ नहीं है... अगर तू अकेला जाता तो वो तुझ पैर बरसते...हम थे साथ में इसलिए उनका गुस्सा हम पर उतर गया..मैं तो बड़ा हूँ..हम तो शुरू से ही सुनते आए है..और हमेशा सुनते ही रहेंगे...हमारा रिश्ता भी कुछ ऐसा है...तुम बस अब अपनी माँ और अपने भाइयो का ध्यान रखो.."
रमेश अब अक्सर चुप चुप कर सीमा के घर आने लगा...उसको यहाँ आ कर अच्छा लगता था..क्योंकि यहाँ वो जो चाहे कर सकता था...अपने घर तो वो बस बूत बन जाता था न किसी से बोलना न किसी से हसना....बस अब उसके पापा उस से सवाल जवाब नही करते थे..की तू कहाँ गया था..क्यों गया था....पर अब इस सबका असर उसके भाइयो पर हो रहा था..अब वो कहीं आ जा नही सकते थे..उसके पापा ने जो मना किया हुआ था...उनको लगता था कही उनके दुसरे दोनों बेटे भी कुछ ऐसा न करें...रमेश सभी रिश्तेदारों के यहाँ बिना बताये चला जाता था...बस रात होते ही घर चला जाता था...अपने दादा दादी के यहाँ....अपने चाचा-चाची के यहाँ नही जाता था....जैसे उसके तो मामाओं और मौसाओं-मौसियों के इलावा कोई और रिश्तेदार हो ही नही।
धीरे धीरे समय बीतता गया...अब सीमा B।A. के बाद M.A. के first year में थी॥उधर रमेश भी post graduation कर रहा था...सीमा के दोनों भाई भी कॉलेज में आ गए थे...रमेश का छोटे भाई भी 11th और 12th में थे...राजेश भी एक दो बार project कंप्यूटर पे बनाने के लिए सीमा के यहाँ आ जाता था..एक दो दिन रह जाता था...वहां निम्मो बुआ फुफ्फाजी को बोल देती की वो अपने दोस्त के यहाँ है project complete करने गया है...कई बार राजेश भी PCO से फ़ोन कर देता की वो फलाना दोस्त के घर है...
सीमा अक्सर राजेश की मदद करती थी...क्योंकि सीमा को तो कंप्यूटर पर काम करने का शौक जो था॥उसके physics project में diagrams बनाना..उसके लिए project का layout बनाना..वगरह वगरह....और राजेश thank you कह कर चला जाता था....अब राजेश भी कॉलेज में आ गया था..सीमा का भी MA first year complete होने को था...अब बारी राकेश की थी वो भी सीमा से मदद मांगने उसके यहाँ आया....उसको भी किसी project में सीमा की मदद की ज़रूरत थी...
सीमा का भाई सूरज college tour पे जा रहा था उसको सुबह सुबह ही train पकड़नी थी...स्टेशन सीमा के मामा के घर के पास था इसलिए सीमा के पापा और उसका भाई सूरज सीमा के मामा के घर गए हुए थे...उसका दूसरा भाई नील भी किसी दोस्त की birthday party में गया हुआ था...अब घर में सिर्फ़ सीमा की माँ,सीमा और राकेश ही थे....सीमा को नील का फ़ोन आया की वो आज रात घर नही आएगा..उसके दोस्त ने बहुत बड़ी party दी है..और उसको party में देर हो जायेगी...इसलिए वो वही सो जाएगा...अगले दिन सीमा का birthday था..तो सीमा ने नील को कहा कल घर जल्दी आ जाना...
सीमा राकेश का काम खत्म करने लगी...राकेश उसे बताता जाता वो करती रहती..बहुत देर तक काम करने पर काम पुरा हो गया..सीमा ने राकेश को floppy में project की soft copy डाल कर दे दी....dinner time होने वाला था...राकेश ने कहा की वो यही रुक जाता है...सीमा ने कहा "ठीक है..मगर घर फ़ोन कर दो".... राकेश ने घर अपनी माँ को फ़ोन करके बता दिया..की वो सुबह आएगा..सीमा की माँ भी खाना बनने लगी...और सीमा और राकेश TV देखने लगे...सीमा राकेश को बीच बीच में समझाने भी लगती की उसको board के exams की कैसी तैयारी करनी चाहिए....राकेश थोड़ा सा डरा हुआ था..जैसा की उसके पापा ने उसको 80% से उपर marks लाने को कह रखा था...
TV पे गाने आते तो सीमा भी साथ साथ में गुनगुनाने लगती...फिर तीनो ने मिल कर खाना खाया...और फिर तीनो थोड़ा सा TV देखने लगे.....तभी सीमा की माँ ने कहा की वो कुछ ज़रूरी सामान लेने बाज़ार जा रही है और TV देखने के बाद सीमा को बर्तन साफ़ करने है....सीमा ने कहा ठीक है वो कर देगी...
सीमा की माँ चली गई...सीमा तो TV देख रही थी..वो सोच रही थी..की कल उसका birthday है..वो क्या क्या करेगी...इस बार वो अपना birthday दोस्तों के साथ नही...माँ और पापा के साथ मनाना चाहती थी..उसने राकेश को भी बोला की वो कल पूरा दिन यही रुक जाए...
सीमा यादों में इतना खो गई थी की कब पीहु ज़ोर ज़ोर से रोने लगी उसे पता ही नही चला...शायद पीहु को भूख लगी थी...सीमा रसोई में गई और उसके लिए ढूध बोत्तल में डाल कर ले आई...पीहु को ढूध की बोत्तल पकड़ा कर उसने टाइम देखा तो... 2:30 बज चुके थे...
to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
Monday, September 29, 2008
"निम्मो बुआ" (part 2)
रसोई का काम ख़त्म कर जब सीमा अपने कमरे में पहुची तो पीयूष सो चुका था...और पीहू को भी क्षितिज सुलाने की कोशिश कर रहा था....क्षितिज पीयूष को माँ के पास छोड़ कर आया और इधर पीहू को सीमा ने सुला दिया....
"क्या बात है॥तुम निम्मो बुआ जी के आने की बात से परेशान हो..वो बस invitation ही तो देने आ रही है" क्षितिज ने पुछा। सीमा बोली "मगर क्षितिज वो...निम्मो बुआ जी..यहाँ क्यूँ आ रही है..पापा के घर invitation दे दिया तो यहाँ क्यूँ..तुम तो जानते हो निम्मो बुआ जी के सामने में बिल्कुल अजीब सा behave करने लगती हूँ"...क्षितिज सीमा को समझाने लगा.."हाँ मैं जानता हूँ तुमको वो अच्छी नही लगती...तुम क्यूँ बार बार पुरानी बातें सोचती हो...invitation ले लेना..अब शादी में जाना ना जाना तुम पर है ना..."
क्षितिज थोडी देर तक सीमा को समझाता रहा॥फिर वो ऑफिस से थका हारा घर आया था..इसलिए सीमा ने सोने को कह दिया....क्षितिज ने उसे भी सोने को कहा....सीमा और क्षितिज दोनों लेट गए...क्षितिज थोडी देर में सो गया....मगर सीमा की आंखों में नींद कहाँ थी..बार बार पुरानी यादें जो उसका पीछा नही छोड़ रही थी...हर बार जब भी निम्मो बुआ या उनके घर से कोई भी ख़बर उसके पास आती थी तो सीमा को बार बार वो बातें याद आती थी जिनको वो चाह कर भी भूला नही पाती थी..और अब इस बार तो निम्मो बुआ ख़ुद उसके घर आ रही थी...
निम्मो बुआ बहुत ही शांत सवभाव की थी...सीमा के पापा के बाद वही घर की बड़ी थी..उनकी शादी किसी गाँव के घर हुई थी....उनको शादी के बाद एक गाँव में ले जाया गया मगर वहां बुआ को अच्छा नही लगता था...और सीमा के फूफाजी भी बड़े ही गुस्सेल मिजाज़ के थे....फिर वो बार बार माँ के घर आ जाती थी...सीमा की माँ ने उसे बताया था की उसकी बुआ कितने महीनो-महीनो तक रह रह कर जाती थी..हर बार वहां से लड़ कर आ जाती थी..फुफ्फाजी भी बड़े नाटक किया करते थे.... उनको ले जाने आते थे...पर यहाँ कर लड़कर चले जाते थे....और सीमा के पापा बुआ को फुफ्फाजी के साथ समझा भुजा कर भेज देते थे॥
फिर वो यही शहर में ही किराये का मकान ले कर रहने लगे..बुआ जी ने आस पास ही कोई छोटी सी नौकरी ढूंढ ली थी...फूफ्फा जी भी बैंक में काम करने लग गए थे...दोनों यहाँ शहर में अपनी गृहस्थी चला रहे थे.....मगर बीच बीच में उनके बीच कहा सुनी होती रहती थी...बुआ जी जितने शांत सवभाव की थी उतने ही फुफ्फाजी गुस्सेल थे...बुआ का अपने मायके में आना जाना चालू था.. सीमा की माँ ने उसे बताया था..बुआ अपने बच्चो को भी सीमा की माँ के पास छोड़ कर बहार काम करने जाती थी....बुआ जी के तीन बेटे थे...रमेश, राजेश और राकेश..रमेश सीमा की उमर का ही था..वो रमेश से 6 महीने ही बड़ी थी...फिर राजेश जो की 2 साल छोटा था....और फिर राकेश जो 4 साल छोटा था...वैसे सीमा के भी दो छोटे भाई थे... सूरज 1 साल छोटा..और नील 3 साल छोटा....सीमा एक joint family में बड़ी हुई थी...उसके चाचा चाची के बच्चे भी थे...सब मिल जुल कर खेला करते थे..खूब मज़े करते थे..सीमा तो सबकी लाडली थी...माँ , पापा, दादा और चाचा सब उसे सबसे जयादा प्यार करते थे...पापा की लाडली तो थी ही...निम्मो बुआ भी बहुत लाड करती थी..निम्मो बुआ को तो हमशा से एक बेटी चाहती थी..सीमा बड़ी थी इसलिए वो सब बच्चो का अच्छे से ख्याल रखती थी॥
सीमा की चाची सीमा की माँ से हमेशा छोटी छोटी बातों पर कलेश करती थी... इसलिए सीमा के पापा ने अलग घर ले कर रहने का फ़ैसला किया और सीमा अपने माँ, पापा और भाइयो के साथ अलग रहने लगी...अब निम्मो बुआ के घर छुट्टियों में ही जाना होता था...बुआ के घर बदलते रहते थे...बुआ उसको प्यार से रखती थी....रमेश तो उसका दोस्त जैसा था...और बाकी दोनों राजेश और राकेश वो अपने भाइयो जैसे ही प्यार करती थी....सब साथ में खेलते रहते थे...इसलिए सभी सीमा को नाम से बुलाते थे..बस फूफाजी से थोड़ा डर लगता था...तीनो बच्चे बहुत डरते थे फूफ्फा जी से...सीमा को तो ऐसे डरे डरे माहोल में रहने की आदत नही थी..वो तो बिल्कुल बिना डरे फुफ्फाजी के साथ भी बात कर लेती थी...फूफ्फा जी भी उस से प्यार से बात करते थे..क्योंकि वो उनके घर मेहमान थी और लड़की थी....वो सीमा की छोटी छोटी बातों को नज़र अंदाज़ कर देते थे..मगर अगर वही चीजे अगर उनके बच्चो ने की होती तो उनको खूब सुनाते थे...
सीमा यह सब सोच रही थी की तभी अचानक रसोई में से आवाज़ आई....सीमा अपनी पुरानी यादों से बाहर आई...और रसोई में देखने चली गई...वहां माँ fridge से पानी ले रही थी.."अरे बहु तुम अभी तक सोयी नही...पीहू तंग कर रही है क्या"..माँ ने सीमा को देख कर पुछा...सीमा बोली "नही माँ वो तो सो रही है...बस रसोई की आवाज़ सुन कर नींद टूट गई...." सीमा वापस अपने कमरे में आई तो देखा 1:30 बज चुका था....सीमा को सुबह जल्दी उठाना था...इसलिए वो फिर सोने की कोशिश करने लगी...
to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
Friday, September 26, 2008
"निम्मो बुआ" (part 1)
रात के 9 बजे थे और सीमा हर रोज़ की तरह खाने के लिए dinning table लगा रही थी. "क्षितिज, माँ, पीयूष..सभी लोग आ जाओ। खाना तयार है।" सीमा ने ज़ोर से आवाज़ लगाई।
"आ रहे है।" क्षितिज का जवाब आया। माँ भी पीयूष और पीहू के साथ आ गयी। माँ ने पीहू को सोफ्फे पर बिठा कर सीमा से कहा "पीहू को भी भूख लगी है। उसके लिए दूध की बोत्तल तैयार कर लो बहु।"
"जी माँ।" सीमा ने प्यार से कहा और दूध की बोत्तल तैयार करने रसोई में चली गई। क्षितिज भी हाथ मुह धो कर टेबल पे आ गया। फिर सभी टीवी देखते देखते खाना खाने लगे। "सीमा कहाँ हो..सुनो तुम भी टेबल पे आ जाओ।" क्षितिज ने कहा। सीमा रसोई से निकलते हुए बोली "आ रही हूँ।"
सीमा और क्षितिज की शादी हुए 8 साल हो चुके थे. पीयूष (5 साल) और पीहू (1+ साल) दो बच्चो के साथ उनकी ग्रहस्थी ठीक-ठाक चल रही है। क्षितिज की माँ सीमा को दिलोजान से चाहती है। दिनभर बस बहु के गुणगान करती रहती है।
सीमा पीहू को बोत्तल थमा कर खाना खाने के लिए आ गई। "पीयूष बेटे तुमने हलवा तो लिया ही नही। चलो जल्दी से इसे भी ख़त्म करो।" सीमा ने उसकी प्लेट में हलवा डालते हुए कहा। सीमा जानती थी की पीयूष को गाज़र का हलवा बिल्कुल पसंद नही पर वो चाहती थी पीयूष सभी कुछ खाए..बढ़ते बच्चो को सभी कुछ खाना चाहिए।
करीब 10 बजे सभी का खाना ख़त्म हो गया था। सीमा रसोई में कुछ काम करने चली गई। पीहू का दूध भी ख़त्म हो गया था और अब वो खेल रही थी। क्षितिज ने उसे उसके सारे खिलोने ला कर दे दिए थे। पीयूष भी ball से खेल रहा था।
"trin trin....trin" तभी फ़ोन की घंटी बजी। क्षितिज ने फ़ोन उठाया और बात करने लगा। फिर थोडी देर में बोला। "सीमा तुम्हारा फ़ोन है..पापा का।" सीमा रसोई से बाहर आ कर फ़ोन क्षितिज से लेकर बोली "हेल्लो! पापा। हाँ बोलो। आप कैसे हो? सब ठीक है ना...मम्मी की तबियत कैसी है..." बातों बातों में सीमा को पता चला की कल छुट्टी के दिन निम्मो बुआ उसके घर आ रही है। उनके छोटे बेटे राकेश की शादी है। वो उसी अवसर का निमंत्रण पत्र देने आ रही है।
निम्मो बुआ का नाम सुनते ही सीमा कुछ परेशान सी हो उठी। न जाने उसे क्या हो गया था। आगे की बातें भी उसने ध्यान से नही सुनी। राकेश की शादी!! राकेश की शादी!! निम्मो बुआ घर आ रही है!! निम्मो बुआ घर आ रही है!! बस बार बार यही शब्द दिमाग में घूमने लगे....
to be continue....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.