अब यह जहाँ रहने लायक कहाँ रहा
कहाँ वो भाई चारा कहाँ वो इंसान रहा
वो प्यार माँ के लिए पिता के लिए स्नेह अब कहाँ रहा
इतनी जमीन मेरी इतनी है तेरी धरती माता को बाँट इंसान रहा
जहाँ रहतें थे सब मिलजुल कर सब कहते थे हम एक है
वही परिवार अब बट गया बोले आधा-आधा ही ठीक है
यहाँ अब भाई भाई के खून का प्यासा है
सबका प्यारा दुलारा तो अब सिर्फ़ पैसा है
जियो और जीने दो जैसे नारा अब कहाँ
इंसानियत का कोई नही साथी हर मजहब के लोग जहाँ
सब है करते अपने अपने धर्म की बातें यहाँ
हिंदू रहे हिंदू मुस्लिम रह गए मुस्लिम यहाँ
अब गुरुनानक जी और इशु मसी के बोल कहाँ
सब इंसान कहते ख़ुद को पर इंसानियत है कहाँ
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