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Saturday, November 29, 2008

आख़िर क्यों

क्यों आज इंसान खुद ही एक वेहेशी जानवर बन गया है।
क्यों वो आज भी मज़हब के नाम पे लड़ता रह गया है॥
क्या सच में यहाँ कोई मुस्लिम या कोई हिन्दु रह गया है।
क्या एक दुसरे को मारना काटना धर्म का मतलब यही रह गया है॥
क्या यह गीता में लिखा है कि जो हिन्दू है वही इंसान रह गया है।
क्या यह कुरान में लिखा है कि मुस्लिम कौम ही बस एक मज़हब रह गया है॥
क्या इस्सू मसि ने यह कहा है कि रोटी की जगह गोलियाँ ही बांटना रह गया है।
क्या गुरु नानक ने सिखाया है कि दुसरे के घर घुस वहां दहशत बचाना रह गया है॥
कितना कत्ले आम किया अब तो लड़ना छोडें हम अब एक दुसरे को फिर से गले लगना रह गया है।
शान्ति बनाये एकजुट हो जाए एक मानव धर्म निभाए फिर इस धरती माँ को गले लगना ही रह गया है॥
उन वीर जवानों ने अपना धर्म निभाया है अब उनकी इस अनकहीं कुर्बानी का क़र्ज़ निभाना रह गया है।
धरती माँ के वो पूत कुछ करने आए थे जिस मिटटी संग खेले बचपन में उसी में समाना रह गया है॥

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